बगहा में एक स्कूल ऐसा, जहां बच्चे खा रहे हाेते खाना वहीं पर सुअर करता विचरण

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Published : Sep 26, 2022, 6:05 AM IST

स्कूल बदहाल.

पश्चिम चंपारण में अधिकांश विद्यालय टैगिंग व्यवस्था के तहत चल रहे हैं. किसी प्राथमिक विद्यालय को जमीन नसीब नहीं है तो कई विद्यालय भवनहीन हैं. जुगाड़ के तौर पर टैगिंग सिस्टम के जरिये लाखों बच्चों का भविष्य संवारने की नाकाम कोशिश की जा रही है. यहां तक कि बच्चों की सुरक्षा और सेहत का ख्याल भी नहीं रखा जाता. यहां बच्चे और जानवर एक साथ खाना खाते नजर आते हैं. पढ़िये etv bharat की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट...(Children and animals eat together in Bagaha school)

पश्चिम चंपारण (बगहा): बगहा अनुमंडल क्षेत्र में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा की स्थिति बदहाल है. बगहा अनुमंडल क्षेत्र में तकरीबन 114 ऐसे विद्यालय हैं जो भवन और भूमि के अभाव में दूसरे विद्यालयों से टैग कर संचालित हो रहे हैं. जिन विद्यालयों को भूमि नसीब हुआ है उनपर अतिक्रमण की वजह से भवन नहीं बन पाया है. इन टैग किये हुए अधिकांश विद्यालयों को महज एक कमरा ही नसीब हुआ है, जिसमें कार्यालय तो संचालित होता ही हैं बच्चों की पढ़ाई और मिड डे मील भी उसी कमरे में बनता है (school in Bagaha).

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स्कूल में शिक्षकाें की कमीः एक कमरे में ही मिड डे मील की व्यवस्था और पांचवीं वर्ग तक की कक्षा संचालित होती है. उसी कमरे में दफ्तर भी है. इंडो नेपाल सीमा अंतर्गत 10+2 नदी घाटी उच्च विद्यालय में एक कैम्पस में चार विद्यालय संचालित हो रहे थे. जिसमें एक टैग विद्यालय भी शामिल है, जिसकी ना तो भूमि है और ना ही भवन. इस उच्च विद्यालय कैम्पस में दो प्राथमिक, एक माध्यमिक और एक 10+2 विद्यालय का संचालन होता है. लेकिन उच्च विद्यालय को छोड़ बाकी विद्यालयों का भवन जर्जर है. जंगल के किनारे होने के बावजूद बाउंड्री नहीं है. लिहाजा यहां सुअर, गाय और भैंसों के जमावड़ा लग रहता है. यही नहीं यहां 10+2 स्कूल में तो शिक्षक ही नहीं है, लिहाजा बच्चे पढ़ने ही नहीं आते हैं. कमोबेश ऐसी ही स्थिति प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों की है, जहां शिक्षकों का घोर अभाव है.


विद्यालय के नाम पर दो कमरा हैः बता दें कि इस विद्यालय कैम्पस में एक ऐसी तस्वीर सामने आई जो देख व जानकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. यहां बच्चे मिड डे मील का खाना खाते हैं ताे आसपास में सुअर घूमता रहता है. एक तरफ बच्चे भोजन कर रहे होते हैं तो दूसरी तरफ सुअर और गाय बच्चों के द्वारा गिराए गए अन्न का दाना खा रहे होते. बता दें कि सुअर कई बीमारियों का वाहक होता है. ऐसे में इन बच्चों की सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा, किसी से छुपा नहीं है. यहां के प्रधानाध्यक विश्वनाथ प्रसाद बताते हैं कि उनके विद्यालय के नाम पर दो कमरा है, ऐसे में राजकीय प्राथमिक विद्यालय बिसहा को टैग कर दिया गया है.

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जंगली जानवरों का बना रहता भय: शिक्षकों की समस्या भी दोनों विद्यालयों में है. यही नहीं बाउंड्री नहीं होने के कारण जंगली जानवरों का भय बना रहता है. साथ ही अन्य जानवर भी घुस आते हैं. वहीं प्रखण्ड शिक्षा पदाधिकारी (अतिरिक्त) बताते हैं कि अधिकांश विद्यालय भूमि और भवनहीन हैं. रिपोर्ट भेजी गयी है. कुछ दिनों में सब व्यवस्थित हो जाएगा. वहीं अभिभावकों का कहना है कि व्यवस्था व संसाधन के अभाव में बेहतर शिक्षा कैसे मिल सकती है. बता दें कि सूबे के तकरीबन 1885 प्राथमिक विद्यालयों पर संकट मंडरा रहा है क्योंकि उनके पास ना तो भूमि है और ना ही भवन.

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