तालाब से तस्वीर बदलने की तैयारी पर 'बहा पानी', फेल हो रहा है बिहार का ये सबसे बड़ा पायलट प्रोजेक्ट

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Published : Oct 9, 2021, 9:22 AM IST

Updated : Oct 9, 2021, 2:27 PM IST

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समस्तीपुर में पायलट प्रोजेक्ट मत्स्य पालन योजना पर ग्रहण लगता दिख रहा है. प्राकृतिक आपदा के कारण तालाब में अधिक पानी हो जाने से मछलियां बाहर निकल गई हैं. जिसके कारण मत्स्य पालकों पर संकट गहराने लगा है.

समस्तीपुर: इस साल हुई भारी बारिश (Heavy Rain In Bihar) और बाढ़ से मछली पालक किसानों को खासा नुकसान उठाना पड़ा. तालाब से तस्वीर बदलने की तैयारी थी, लेकिन बारिश और बाढ़ करोड़ों की मछलियां बहा ले गई. प्रॉफिट तो दूर इसकी वजह से लागत भी नहीं निकल पा रही है. यही हाल समस्तीपुर जिले में देखने को मिल रहा है.

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समस्तीपुर जिले के सरायरंजन प्रखंड के शहजादापुर गांव सोनमार में मत्स्य पालन योजना की शुरुआत की गई. इस पायलट प्रोजेक्ट मत्स्य पालन योजना का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था. जहां 100 एकड़ में फैले इस योजना ने किसानों को काफी फायदा भी दिया.

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इस मत्स्य पालन योजना के शुरू होते ही किसानों की दशा और दिशा दोनों में ही सुधार होनी शुरू हो गई थी. इसके साथ ही नीली क्रांति के क्षेत्र में यह योजना बिहार का सबसे बड़ा पायलट प्रोजेक्ट बना. वहीं, समय बीतने के साथ-साथ मछलियों का निर्यात जिला ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में होने लगा.

देखें रिपोर्ट.

इस योजना से शहजादापुर गांव के 50 मत्स्य पालक जुड़े हुए हैं. लेकिन इन दिनों इस योजना में ग्रहण लगने के कारण मत्स्य पालकों को काफी नुकसान पहुंच रहा है. दरअसल प्राकृतिक प्रकोप और सरकारी तंत्र की शिथिलता के कारण मत्स्य पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. करीब एक वर्ष से अधिक जलजमाव और तालाबों में पानी भर जाने से सारी मछलियां बाहर निकल गयी.

वहीं, वर्तमान हालातों से चिंतित मत्स्य पालक कौशल किशोर ठाकुर का मानना है कि सरकार ने पहले ही इस प्रोजेक्ट से जुड़ी कई सब्सिडी को समाप्त कर दिया है. अब शायद यह प्रोजेक्ट भी ध्वस्त होने की कगार पर है. जिसे लेकर मत्स्य पालकों को रोजगार की चिंता सताने लगी है.

'हमलोग इस योजना से 2009 से ही जुड़े हुए हैं. ट्रेनिंग के बाद तालाब के लिए जमीन खुदवाया गया. जिससे लोगों को रोजगार मिला. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था. लेकिन वर्तमान समय में तालाब में पानी अधिक होने से सभी मछलियां बाहर निकल गई हैं. जिसके कारण हम किसानों को रोजगार की समस्या सता रही है. लेकिन यदि सभी लोग सतर्क रहते तो ऐसा नहीं होता. पायलट प्रोजक्ट अब ध्वस्त हो गया है.' -कौशल किशोर ठाकुर, मत्स्य पालक किसान

वहीं, जिला कृषि पदाधिकारी विकास कुमार ने कहा कि कोई भी किसान योजना का लाभ ले सकता है. सरकार भी मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं. अब इन योजनाओं में एक और केंद्र प्रायोजित योजना को शामिल किया गया है. जिससे मत्स्य पालन की ओर किसानों को बढ़ावा दिया जा सके.

बता दें कि जिले में 1190 सरकारी और 2569 निजी तालाब हैं. इनमें करीब 800 सरकारी तालाबों में मछली पालन होता है. इस बार बारिश के कारण यहां के सरकारी तालाबों में से 60 फीसदी मछलियां बह गई हैं. यही स्थिति निजी तालाबों में भी देखने को मिली.

विभाजन के बाद बिहार में संसाधन के रूप में सिर्फ जल, जमीन और जानवर ही रह गए थे. कृषि और डेयरी के क्षेत्र में आई हरित क्रांति (Green Revolution) और श्वेत क्रांति (White Revolution) बिहार में भी हुआ. जिसके बाद बिहार के लोग अनाज और दुग्ध उत्पादन कर आत्मनिर्भर हुए. लेकिन देश में नीली क्रांति (Blue Revolution) के बावजूद मछली व्यवसाय के क्षेत्र में प्रगति नहीं हो पायी. इसके बाद बिहार सरकार ने मात्स्यिकी को प्राथमिकता में लेते हुए कुछ बदलाव किए और पायलट योजना (Pilot Scheme) के तहत मत्स्य पालन योजना लायी गई. इस योजना की शुरुआत करोड़ों रुपये की लागत से की गई. जिससे बेरोजगार किसानों को रोजगार मिल सके.

मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए 50 फीसदी तक अनुदान के साथ कई योजनाएं लायी गई. जिसके अंतर्गत मत्स्य पालन योजना (Fish Farming Scheme) भी लायी गई. मुख्यमंत्री मत्स्य पालन योजना के तहच छह एकड़ निजी जमीन पर तालाब बनाने का लक्ष्य रखा गया था. यह सभी आवेदन ऑनलाइन लिए गए. 'पहले आओ, पहले पाओ' की तर्ज पर चयनित मत्स्य पालकों को योजना का लाभ दिया गया.

कृषि विभाग के पहल से मत्स्य पालन के लिए नए तालाब खुदवाने वालों को 50 फीसद अनुदान दिया गया. एक किसान को एक हेक्टेयर में नया तालाब खुदवाने पर तीन लाख रुपये तक अनुदान दिए जाने की बात कही गई. नया तालाब खुदाई कराने पर अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के किसानों को 70 फीसद तक अनुदान दिया गया. इसके साथ ही अति पिछड़े वर्ग के लोगों को तालाब खुदवाने के लिए 90 फीसद तक अनुदान दिया गया. इस योजना के तहत तालाब में मछली पालन के साथ-साथ किसान मेढ़ पर बागवानी भी कर सकते हैं. लेकिन आज यह योजना संबंधित अधिकारियों की लापरवाही और प्राकृतिक आपदाओं के कारण ठंडे बस्ते में चली गई है. जिसके कारण किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई है.

Last Updated :Oct 9, 2021, 2:27 PM IST
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