तो फिर नरेंद्र मोदी को नहीं मिलता बिहार में वोट, यहां कास्ट की राजनीति नहीं: PK

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Published : May 5, 2022, 3:56 PM IST

Updated : May 5, 2022, 4:18 PM IST

प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर

क्या बिहार में जाति आधारित वोटिंग (Cast Factor in Bihar Politics)होती है. इस मुद्दे पर चुनावी एनालिस्ट प्रशांत किशोर मानते हैं कि बिहार में जाति के आधार पर वोट नहीं पड़ते. अगर ऐसा होता तो सबसे अधिक वोट नरेंद्र मोदी को नहीं मिलता. जबकि उनकी जाति महज एक फीसदी है. मुद्दे और चेहरे की बदौलत भी यहां वोटिंग होती है. हर जाति में अच्छे लोग हैं.

पटना : चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Political Analyst Prashant Kishore ) ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बिहार का सियासी पारा बढ़ा दिया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत किशोर ने एक के बाद एक सियासी तीर छोड़े. उन्होंने मीडिया कर्मियों के उस सवाल को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें पूछा गया था कि बिहार में कास्ट यानी जाति आधारित वोट (Prashant Kishore on cast politics in Bihar) पड़ते हैं. मीडिया कर्मियों ने पूछा कि क्या ये सही है कि बिहार में जाति को नहीं साधा तो यहां कदम जमाना मुश्किल है. प्रशांत किशोर ने सधे अंदाज में कहा कि ऐसा सोचना सही नहीं है. पीके ने एक उदाहरण देकर इसे समझाया.

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'मैं नहीं मानता हूं कि बिहार में जाति के आधार पर ही वोट पड़ता है. बिहार में सबसे अधिक वोट नरेंद्र मोदी को पड़ता है, जबकि उनकी जाति के कितने फीसदी वोट हैं. ये कहना कि बिहार में जाति आधारित वोटिंग होती तो इसे में खारिज करता हूं. बिहार में मुद्दे और चेहरे की बदौलत पर भी वोट पड़ते हैं. हर जाति में अच्छे लोग होते हैं. यही अच्छे लोग जुड़ते हैं और सरकार बदलते हैं': प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार

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बिहार में 'जाति का जंजाल' : बता दें कि बिहार में RJD के सत्ता से बाहर रहने के बाद भी यादव वोट बैंक उनसे अलग नहीं हुआ है. बिहार में मुसलमानों का वोट प्रतिशत 16% के आसपास है, उसके बाद हिंदू में सबसे अधिक यादव वोट बैंक माना जाता है जो 12% के आसपास है. यादव के साथ मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण लालू यादव के साथ शुरू से है. कोइरी जाति के 7 फ़ीसदी बिहार में हैं जो नीतीश कुमार का कोर वोटर माना जाता है. नीतीश के साथ लंबे वक्त तक मुस्लिम वोट बैंक आ गया था, लेकिन अब वह फिर तेजस्वी के साथ दिख रहा है. लोकसभा चुनाव में जरूर नरेंद्र मोदी के नाम पर यादव वोट बैंक आरजेडी से छिटक गया था और इसका असर भी 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखा था, जब आरजेडी का खाता तक नहीं खुला था. लेकिन उसके बावजूद अधिकांश वोट आरजेडी को ही मिले थे.

बिहार में जाति आबादी का प्रतिशत

ओबीसी/ईबीसी 46%
यादव 12%
कुर्मी 4%
कुशवाहा (कोइरी) 7%
(आर्थिक रूप से पिछड़े 28% जिसमें 3.2% तेली भी आएँगे)

महादलित/दलित (अनुसूचित जातियाँ) 15%
चमार 5%
दुसाध/पासवान 5%
मुसहर 1.8%

मुस्लिम 16.9% (इसमें सुरजापूरी, अंसारी, पसमांदा, अहमदिया जैसे कई समुदाय आते हैं, लेकिन टिकट अधिकतर शेखों को मिलते रहे हैं)
अगड़ी जातियाँ 19%
भूमिहार 6%
ब्राह्मण 5.5%
राजपूत 5.5%
कायस्थ 2%


अनुसूचित जनजातियाँ 1.3%
अन्य 0.4% सिक्ख, जैन, और इसाई इत्यादि

पीके को हर जाति के 'अच्छे' लोगों की तलाश : इसके बावजूद प्रशांत किशोर का मानना कि बिहार में जाति या कास्ट कोई फैक्टर नहीं तो ये समझने वाली बात होगी. बिहार में जाति की गोलबंदी चरम पर है. हाल ही में तेजस्वी ने भूमिहारों को साधने के लिए मंच से माफी मांगी थी. आरजेडी लोकसभा चुनाव के लिए 'भूमि' (BHUMY) यानि भूमिहार, मुस्लिम और यादव का इक्वेशन तैयार कर रही है. इसपर तेजी से काम भी चल रहा है. ऐसे में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का बयान कई चुनावी पंडितों के समझ से परे है. बिहार में जाति इतनी जड़ जमा चुकी है कि नीतीश को इसे तोड़ने के लिए भी 'महादलित कार्ड' लाना पड़ा. यानी जाति से उबरने के लिए जाति कार्ड ही लाना पड़ा. आज भी बिहार में जाति से अलग हटकर सियासत की सोचना मुश्किल है. अगर प्रशांत किशोर अपनी पदयात्राओं से ऐसे अच्छे लोगों की तलाश कर पाते हैं तो उनके लिए ये बड़ी उपलब्धि होगी.

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Last Updated :May 5, 2022, 4:18 PM IST
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