शराबबंदी के मुद्दे पर विपक्ष को मिला BJP का साथ, एक सुर में कानून वापस लेने की उठी मांग

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Published : Nov 23, 2021, 8:12 PM IST

BJP statement on withdrawal of liquor ban in bihar

बिहार में शराबबंदी को लेकर विपक्ष के साथ ही अब बीजेपी भी नीतीश कुमार को आंखें दिखा रही है. बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर बचौल (MLA Hari Bhushan Thakur) के शराबबंदी पर दिए बयान के बाद सियासी संग्राम छिड़ गया है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना: जहरीली शराब से मौत (Poisonous Liquor Death Case) के बाद बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Ban In Bihar) पर बहस शुरू हो गई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर शराबबंदी कानून को रोलबैक (Withdrawal Of Liquor Ban In Bihar) करने के लिए दबाव बढ़ गया है. भाजपा की तरफ से भी चरणबद्ध तरीके से हमला बोला जा रहा है.

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2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू किया था. शराबबंदी लागू होने के बाद भी बिहार में जहरीली शराब से मौत के मामलों ने लोगों को चिंता में डाल दिया है. खासतौर पर राजनीतिक दल सवाल खड़े कर रहे हैं. पिछले 5 साल के दौरान तकरीबन 200 से ज्यादा लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या मात्र 125 के आसपास है.

शराबबंदी कानून वापस लेने की मांग

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जहरीली शराब से मौत के मामले को भाजपा ने गंभीरता से लिया है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शराबबंदी कानून की समीक्षा करने की नसीहत तक दी गई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों के साथ बैठक की और शराबबंदी को कड़ाई से लागू करने के आदेश दिए, बावजूद इसके जहरीली शराब से मौत का सिलसिला नहीं थमा.

इतना ही नहीं. नीतीश की पुलिस भी होटल और शादी विवाह स्थल में जाकर तांडव मचा रही है. नीतीश ने पुलिस को शराबबंदी लागू करने के लिए सख्ती बरतने के आदेश दिए हैं. इस आदेश का पुलिस गलत इस्तेमाल भी करती नजर आ रही है. ऐसे कई वीडियो भी वायरल हुए हैं, जिसमें पुलिसिया जुल्म का नजारा दिखा है.

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शराबबंदी कानून को लेकर भाजपा पूरी तरह हमलावर है. पहले प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को नसीहत दी और फिर उसके बाद पार्टी के विधायक हरि भूषण ठाकुर ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया. अब पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष ने नीतीश सरकार पर हमला बोल दिया है.

अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अजीत चौधरी ने कहा है कि "अगर प्रधानमंत्री किसी कानून को जनहित में वापस ले सकते हैं तो नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को क्यों वापस नहीं ले रहे हैं. शराबबंदी कानून सिर्फ नाम का कानून बनकर रह गया है और अधिकारी जेब भर रहे हैं. गरीब और दलितों पर शराबबंदी के आड़ में जुल्म ढाया जा रहा है. हम नीतीश कुमार से मांग करते हैं कि वह अविलंब शराबबंदी कानून वापस लें."

वहीं राजद विधायक रामानुज प्रसाद ने कहा है कि "शराबबंदी हम लोगों ने इस उम्मीद के साथ लागू किया था कि इससे आम लोगों को फायदा होगा. लेकिन शराबबंदी अधिकारियों के लिए अवैध कमाई का स्रोत बन गया है. अगर नीतीश कुमार से नहीं संभल रहा है तो उन्हें शराबबंदी कानून वापस ले लेना चाहिए."

बता दें कि लालू प्रसाद यादव ने भी शराबबंदी कानून वापस लेने की मांग की है. वहीं जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा है कि शराबबंदी को बिहार में सख्ती से लागू किया जाएगा. जो कोई भी लापरवाह पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

"भाजपा के कौन से नेता क्या बोलते हैं, इसकी चिंता हम नहीं करते हैं. पूर्ण शराबबंदी के साथ कोई समझौता नहीं होगा.बीच रास्ते में हमारे सहयोगियों ने अपनी मानसिकता को उजागर कर दिया. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कभी इस तरह का कोई बयान नहीं दिया है." - अभिषेक झा, जदयू प्रवक्ता

शराबबंदी कानून को लेकर समाजसेवी प्रकाश राय ने कहा है कि शराबबंदी की बजाय लोगों को जागरुक करने की जरूरत है. नीतीश सरकार के अधिकारी शराबबंदी की हवा निकाल रहे हैं. अधिकारी भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं और शराबबंदी को कमाई का जरिया बना लिया है. भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए बगैर शराबबंदी सफल नहीं हो सकती.

बता दें कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने महिलाओं से शराबबंदी का वादा किया था. इसका एक उद्देश्य घरेलू हिंसा को रोकना था. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपना वादा निभाया. एक अप्रैल 2016 बिहार निषेध एवं आबकारी अधिनियम के तहत बिहार में शराबबंदी लागू कर दी गई. तब से सरकार के दावे के बावजूद शराब की तस्करी और बिक्री धड़ल्ले से हो रही है. इसका प्रमाण शराब की बरामदगी और इस धंधे से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी है.

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