बिहार में शराबबंदी कानून लागू करने लिए पानी की तरह बहाया जा रहा पैसा, पढ़ें कैसे

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Published : Aug 20, 2022, 8:04 PM IST

Updated : Aug 20, 2022, 9:36 PM IST

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बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बावजूद राज्य में पूरी तरह से शराबबंदी लागू नहीं हो पा रही है, जिसका नतीजा है कि आए दिन जहरीली शराब से लोगों की मौत हो रही है. शराबबंदी कानून के तहत आए दिन बिहार के किसी न किसी जिले में बड़ी मात्रा में शराब पकड़ी जा रही है और लोगों की गिरफ्तारी हो रही है. तकरीबन 3.30 लाख से ज्यादा लोगों को अब तक जेल भेजा जा चुका है. इस साल अब तक 39 दूसरे राज्यों के बड़े शराब माफिया की गिरफ्तारी हुई है.

पटना : शराबबंदी के बाद भी अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में शराब की खपत ज्यादा (Alcohol consumption is high in Bihar) हो रही है. ये बात राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), 2020 की रिपोर्ट में कही गई है. इसके अनुसार, ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं. (Bihar is more drunk than Maharashtra) आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते है. महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसद ही है. अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं.

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शोध का विषय बन गया शराबबंदी : बिहार में शराबबंदी राज्य सरकार के लिए एक शोध का विषय बन गया है, शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने के लिए नए- नए तरीके इजाद किए जा रहे हैं पर उसका परिणाम फेल के रूप में दिख रहा है. शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने के लिए राज्य सरकार पैसे पानी की तरह बहा रही है, फिर भी परिणाम न के बराबर देखने को मिल रहा है. शराबबंदी कानून लागू होने के बाद बिहार में तेलंगाना से ट्रेनिंग दिलवा कर लाए गए 20 खोजी कुत्ते जिसकी कीमत लगभग 60 लाख है. सूत्रों के अनुसार, एक कुत्ते पर राज्य सरकार प्रति माह लगभग 1.15 लाख रुपये खर्च कर रही है. बिहार पुलिस मुख्यालय की ओर से मिल रही जानकारी के अनुसार, 20 कुत्तों में से अभी 12 कुत्ते सक्रिय है बाकी 8 ट्रेनिंग ले रहे हैं. राज्य सरकार शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने के लिए हेलीकॉप्टर, ड्रोन, सेटेलाइट फोन, गंगा के दियारा इलाके में बोट के माध्यम से तरह-तरह के अभियान चला रही है. जिस पर पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं.

पानी की तरह बहाया जा रहा पैसा : पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास ने ईटीवी भारत की टीम से खास बातचीत के दौरान बताया, ''बिहार सरकार शराबबंदी को अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़ ली है, शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करवाने के लिए राज्य सरकार नए-नए तरीकों का प्रयोग कर रही है पर परिणाम न के बराबर देखने को मिल रहा है. उन्होंने बताया कि शराब से आने वाले टैक्स से राज्य सरकार चाहती तो कई तरह की लाभकारी योजना जनता के लिए ला सकती थी. राज्य सरकार ने मद्य निषेध कानून के तहत ऊर्जा विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर बिहार के सभी जिलों के सभी प्रखंड सभी गांव तक लगे बिजली के खंबे पर मद्य निषेध कानून को लेकर टोल फ्री नंबर लिखवाया था. इसका मुख्य उद्देश्य था कि शराबबंदी कानून को लेकर आम लोग किसी भी तरह की सूचना कंट्रोल रूम तक पहुंचा सकें, जिसके बाद शराब बेचने वालों पर कार्रवाई की जाएगी. मद्य निषेध कानून के तहत मद्य निषेध विभाग ने पुलिस मुख्यालय से समन्वय स्थापित कर बिहार पुलिस में से एक नई टीम का गठन किया था, जिसका नाम एंटी लिकर टास्क फोर्स था.''

ध्वस्त हो गई एंटी लिकर टास्क फोर्स : पिछले जनवरी महीने में इसकी स्थापना की गई थी जो अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है. इससे मिलने वाली मद्य निषेध विभाग की तरफ से मोबाइल फोन और वाहन जैसी सुविधा को वापस ले लिया गया है. कह सकते हैं कि एंटी लिकर टास्क फोर्स पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है. दरअसल बिहार में कुल 233 एंटी लिकर टास्क फोर्स का गठन किया गया था जिसमें करीबन 3000 पुलिसकर्मी तैनात थे. इसमें होमगार्ड से लेकर दरोगा रैंक तक के अधिकारी थे. एक टीम में लगभग 10 से 12 पुलिसकर्मी थे. मद्य निषेध विभाग लगभग हर एक टीम पर 50 हजार रुपये खर्च करता था. उनके अनुसार प्रतिमाह लगभग एंटी लिकर टास्क फोर्स पर 1 करोड़ रुपये खर्च हो रहा था. यानी पिछले 6 महीने में मद्य निषेध विभाग ने 6 करोड रुपए एंटी लिकर टास्क फोर्स पर खर्च किया है परंतु मद्य निषेध विभाग के अनुसार एंटी लिकर टास्क फोर्स से रिजल्ट नहीं मिल पा रहा है. जिस वजह से उन्हें देने वाली सभी सुविधाओं को वापस ले लिया गया है. कहीं न कहीं आम लोगों की ओर से शराब से जुड़ी सूचनाएं कंट्रोल रूम में देने के बाद एंटी लिकर टास्क फोर्स को संबंधित सूचना दी जाती थी. उसके बाद एंटी लिकर टास्क फोर्स की ओर से कार्रवाई की जाती थी. अब कंट्रोल रूम से यह कॉल एंटी लिकर टास्क फोर्स को न दे कर संबंधित थानों को दी जा रही है, जिससे थानों पर अधिक बोझ बढ़ गया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बिहार जैसे गरीब राज्‍य जहां लोगों के विकास के लिए स्‍पेशल पैकेज और स्‍पेशल स्‍टेटस की मांग को लेकर आंदोलन होते रहे हैं, वहां शराबबंदी कानून को पालन कराने के लिए प्रति दिन 5 लाख से 7 लाख रुपए ड्रोन उड़ा कर खर्च किए जा रहे हैं. यह बात जान कर हैरानी तो जरूर हुई होगी. मगर बिहार की अर्थव्‍यवस्‍था पर और बिहार के टैक्‍स पेयर्स पर ये दोहरे बोझ जैसा जरूर है.

राजस्‍व के नुकसान और खर्च की दोहरी मार : एक तरफ शराबबंदी से राजस्‍व का नुकसान, दूसरी ओर ड्रोन उड़ाकर शराब पकड़ने पर प्रति दिन 5 से 7 लाख का खर्च. कुत्तों पर प्रतिमाह लगभग 20 लाख का खर्च. हेलीकॉप्टर पर प्रति घंटे 75 से 1लाख रुपये का खर्च. एंटी लिकर टास्क फोर्स पर प्रतिमाह 1 करोड़ खर्च के अलावे सेटेलाइट फोन और गंगा में नौका माध्यम पर किए जा रहे हैं खर्च के बावजूद परिणाम न के बराबर देखने को मिल रहा है. शराब से बिहार सरकार को मिलने वाले राजस्व की बात करें तो राज्य उत्पाद शुल्क उन पांच करों (बिक्री कर, स्टैम्प एवं निबंधन शुल्क, राज्य उत्पाद शुल्क, माल एवं यात्री कर और वाहन कर) में से एक था जिनसे बिहार की अर्थव्यवस्था को 93 फ़ीसद टैक्स की प्राप्ति होती थी. साल 2010-11 में राज्य उत्पाद शुल्क से 1523 करोड़, 2011-12 में 1981, 2012-13 में 2430, 2013-14 में 3168, 2014-15 में 3217, 2015-16 में 3142, 2016-17 में ये 30 करोड़, 2017-18 में -3 करोड़ हो गया. इसी तरह से जो बीते साल की अपेक्षा वृद्धि दर जो 2010-11 में 30 फ़ीसद थी, वो 2014-15 में घटकर -2.3 (ऋणात्मक) फ़ीसद हो गई.साफ़ है कि बिहार के राजस्व को नुकसान हुआ. और ये नुकसान दूसरे राज्यों (ख़ासतौर पर पड़ोसी राज्यों के लिए) मुनाफ़ा साबित हुआ.

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Last Updated :Aug 20, 2022, 9:36 PM IST
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