पटना में पारंपिक गीतों के साथ मंदिरों और घरों में मनाया गया जिउतिया पर्व

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Published : Sep 30, 2021, 1:13 AM IST

पटना में मनाया गया जिउतिया पर्व

पटना में धुमधाम के साथ जिउतिया पर्व मनाया गया. इस पर्व को लेकर महिलाएं अपने घरों और मंदिरों में पूजा-अर्चना कर अपने संतान की लंबी उम्र की कामना की. पढ़ें पूरी खबर.

पटना: देश के कई हिस्सों में जीवित्पुत्रिका व्रत (Jeevitputrika Festival) यानि जिउतिया पर्व (Jiutia Festival) पूरे हर्षोल्लास के साथ सभी माताओं ने मनाया. जीवित्पुत्रिका व्रत साल के आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इसी कड़ी में गुरुवार को इस पर्व के अष्टमी तिथी की शाम में राजधानी पटना (Patna) और उससे सटे सिटी इलाके के मंदिरों और घरों में महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना को लेकर पौराणिक भजनों को गाकर विधिवत पूजा-अर्चना करती नजर आई.

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तीज की तरह ही यह व्रत भी बिना आहार के निर्जला रख कर मनाया जाता है. यह पर्व तीन दिनों तक महिलाएं मनाती हैं. सप्तमी तिथि को नहाए खाए के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं अपने बच्चों के सुख और समृद्धि और उन्नति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और इसके बाद नवमी तिथि यानी कि अगले दिन व्रत का पारण कर इस व्रत को महिलाएं समाप्त करती हैं.

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इसी कड़ी में अष्टमी की शाम में राजधानी पटना के मंदिरों और घरों में जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर महिलाओं की भीड़ नजर आई. इस पर्व के दौरान महिलाओं ने पारंपरिक भजन और पौराणिक कथा सुनकर भगवान की पूजा-अर्चना कर अपने संतान के सुख समृद्धि की कामना की.

वहीं इस व्रत को लेकर पंडित हरी भूषण मिश्रा ने बताया कि जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से है. उन्होंने बताया कि युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज थे. बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गए और शिविर के अंदर सो रहे पांच बच्चों को उन्होंने पांडव समझ कर मार डाला. कहा जाता है कि वह सभी पांचो संतान द्रोपदी के संतान थे.

जिसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसके सर से दिव्य मणि छीन ली. जिसपर क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला. ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देखकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनः जीवित कर दिया. भगवान श्री कृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तभी से संतान की लंबी उम्र की कामना करने वाली महिलाएं इस व्रत को करती आ रही है.

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