नीतीश ने यूं ही नहीं सौंपी सवर्ण समाज से आने वाले ललन सिंह को JDU की कमान, भरोसे की वजह समझिए

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Published : Jul 31, 2021, 7:12 PM IST

Lalan Singh

दिल्ली में जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ललन सिंह (Lalan Singh) को आरसीपी सिंह की जगह पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है. सरकार से लेकर संगठन तक का काम संभाल चुके ललन सवर्ण समाज से आते हैं. वे नीतीश कुमार के बेहद करीबी तो हैं ही पॉलिटिकल क्राइस मैंनेजमेंट में भी माहिर माने जाते हैं.

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) पर भरोसा करते हुए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष (JDU President) की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. आरसीपी सिंह (RCP Singh) की जगह ललन सिंह को पार्टी की कमान देना, कई मायनों में खास है. जातिगत समीकरण से परे जाकर नीतीश ने उन्हें पार्टी का 'बॉस' बनाया है.

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जेडीयू में ललन सिंह का कद वैसे तो हमेशा से बड़ा रहा है. आरसीपी सिंह के पहले तक वे नीतीश कुमार के बाद नंबर-2 की हैसियत भी रखते थे, लेकिन जातिगत समीकरण के कारण वे कभी पार्टी के बॉस नहीं बन पाए. ललन सिंह सवर्ण समाज से आते हैं. वे भूमिहार जाति से हैं. ऐसे में उन्हें जेडीयू की कमान सौंपने का फैसला कोई मामूली घटनाक्रम नहीं है.

नीतीश कुमार और जेडीयू की राजनीति को गौर से देखें तो साफ पता चलता है कि पिछड़ों और दलितों को ध्यान में रखकर ही रणनीति और समीकरण तैयार किए जाते हैं. ऐसे में किसी सवर्ण समाज से आने वाले नेता को पार्टी का 'चेहरा' बनाना एक बड़ी बात है. हालांकि ये भी सच है कि ललन सिंह जिस भूमिहार जाति से आते हैं, उस समाज से हाल तक जेडीयू को अच्छा-खासा वोट मिलता था.

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ललन सिंह मजबूत जनाधार वाले नेता के साथ-साथ कुशल रणनीतिकार तो हैं ही, क्राइस मैनेजमेंट में भी काफी माहिर हैं. आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के खिलाफ मुहिम चलाने से लेकर चिराग पासवान (Chirag Paswan) को सबक सिखाने तक में ललन सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी के 5 विधान पार्षदों को जेडीयू में शामिल कराने में भी उनका ही रोल था.

अभी हाल में चिराग पासवान की पार्टी में बगावत और पशुपति पारस की अगुवाई में 5 सांसदों के अलग होने के अभियान का सूत्रधार भी ललन सिंह को माना जाता है. कहा जाता है कि नीतीश कुमार को जब भी कोई राजनीतिक सेंधमारी करनी हो या वो किसी मुश्किल में होते हैं, ललन सिंह ही उनके काम आते हैं.

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आपको याद दिलाएं कि लालू प्रसाद यादव की अवैध संपत्ति को लेकर सुशील मोदी ने खुलासा किया था, लेकिन उन्हें डॉक्यूमेंट उपलब्ध कराने में ललन सिंह की ही भूमिका मानी जाती है. नीतीश कुमार से नजदीकियों को लेकर विपक्ष के कई नेताओं ने उन पर कई तरह के आरोप लगाए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी उनपर कई गंभीर आरोप लगाए थे. उसको लेकर मामला कोर्ट में गया था. बाद में जब आरजेडी और जदयू की सरकार बनी तो मामला सुलझा लिया गया था.

ललन सिंह को नीतीश कुमार का सबसे भरोसेमंद माना जाता है. कहा जाता है कि ललन सिंह 1970 के दशक में नीतीश कुमार के संपर्क में आए थे. लालू के खिलाफ और शरद यादव की नाराजगी मोल लेते हुए नीतीश ने जब अलग पार्टी बनाने की ठानी थी तो ललन सिंह, नीतीश कुमार के साथ थे. हालांकि बीच में कुछ सालों के लिए दोनों के बीच मनमुटाव हुआ था, लेकिन यह भी ज्यादा दिन नहीं चला था. नीतीश कुमार सत्ता में रहें या नहीं, लेकिन ललन सिंह हमेशा उनके साथ रहे.

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अभी हाल में ही जब मोदी मंत्रिमंडल में ललन सिंह के बजाय आरसीपी सिंह को शामिल किया था, तब माना जाता है कि ललन सिंह काफी नाराज हुए थे. मगर उन्होंने धैर्य रखा. नीतीश कुमार भी ललन सिंह की उपयोगिता समझते हैं, यही वजह है कि उन्हें आरसीपी की जगह पार्टी की कमान सौंप दी. यहां ये समझना होगा कि आरसीपी उस कुर्मी जाति से आते हैं, जिससे खुद नीतीश कुमार भी आते हैं. कुर्मी और कोइरी की बजाय नीतीश ने भूमिहार नेता ललन सिंह पर भरोसा किया.

66 साल के ललन सिंह फिलहाल मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. वे बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावे पार्टी की बिहार इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. इस वक्त वे संसदीय दल के नेता भी हैं.

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