मकर संक्रांति 2022 : कोरोना और महंगाई की मार के बीच फिर सज गया तिलकुट का बाजार, दुकानदारों की उम्मीद पर कहीं फिर ना जाए पानी

author img

By

Published : Jan 10, 2022, 7:23 AM IST

Updated : Jan 10, 2022, 3:42 PM IST

गया का तिलकुट बाजार

मकर संक्रांति को लेकर गया का तिलकुट बाजार गुलजार (Gaya Tilkut Market For Makar Sakranti) है, लेकिन अब इस कारोबार पर भी कोरोना और महंगाई ने सेंध लगा दी है. गया के तिलकुट बाजार पर कोरोना का साया देखा जा सकता है. इस मुश्किल घड़ी में दुकानदारों ने सरकार से तिलकुट को जीआई टैग देने और रात्रि कर्फ्यू की समय सीमा बढ़ाने की गुजारिश की है. पढ़ें पूरी खबर

गया: जैसे-जैसे मकर संक्रांति का पर्व ( Makar sankranti 2022 ) करीब आ रहा है, वैसे-वैसे बाजारों में गुड़, तिल और तिलकुट की सौंधी खुशबू बढ़ती जा रही है. हर तरफ सड़क किनारे तिलकुट, लाई, चूड़ा और तिल की दुकानें सज गई हैं. विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी गया में मकर संक्रांति पर विशेष मिष्ठान के रूप में तिलकुट की एक अलग पहचान है. विदेशी पर्यटक भी तिलकुट का स्वाद चखने के लिए बेताब रहते हैं. वैसे तो यहां सालभर तिलकुट की ब्रिकी होती है, लेकिन सर्द मौसम आते ही इसकी मांग बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें- बाजारों में महकने लगी तिलकुट की सौंधी खुशबू, दुकानों पर सहसा ही चले आ रहे हैं लोग

जनवरी में गया की प्रसिद्ध तिलकुट (Famous Tilkut of Gaya) की मांग बढ़ते ही सन्नाटे को चिरती धम-धम की आवाज और सौंधी महक से शहर गुलजार हो जाता है. यह किसी फैक्ट्री या किसी अन्य मशीनों की आवाज नहीं होती है, बल्कि हाथ से तिलकुट कुटने की आवाज होती है. तिलकुट को गया का प्रमुख सांस्कृतिक मिष्ठान के रूप में जाना जाता है, लेकिन अपनी विशिष्टता के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला तिलकुट सरकार की उपेक्षा और जिला उद्योग केन्द्र के उपेक्षित रवैये के कारण अपेक्षा के अनुरूप फैलाव नहीं हो पा रहा है.

तिलकुट पर कोरोना की तीसरी लहर का असर

वहीं, तिलकुट पर कोरोना की तीसरी लहर का असर (Effect of corona on Tilkut) पड़ रहा है. साथ ही महंगाई के कारण लोग बहुत कम खरीदारी कर रहे हैं. आगामी 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार है. इस दिन तिलकुट खाने का धार्मिक प्रावधान होता है. इसे लेकर गया शहर का तिलकुट बिक्री के लिए माने जाने वाला मुख्य बाजार रमना रोड और टेकारी रोड गुलजार हो चुका है. लोग अभी से ही तिलकुट की खरीदारी कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- विदेशों तक पहुंच रही बाढ़ की 'लाई' की खूशबू

''भौगोलिक दृष्टिकोण से गया की जलवायु,आबोहवा और पानी इस उद्योग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है. यहां के बने तिलकुट न केवल काफी दिनों तक खाने योग्य रहते हैं, बल्कि इसे नमी से बचाकर रखा जाए तो काफी दिनों तक खाया जा सकता है. आगामी 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व है. मंकर संक्राति जैसे महापर्व पर तिल की बनी वस्तुओं के दान और खाने की धार्मिक परंपरा रही है. इसी महत्व को ध्यान में रखकर अरसे से तिलकुट का निर्माण किया जाता है.'' - विद्या नंदन प्रसाद गुप्ता, दुकानदार

प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 150 साल गया शहर के रमना रोड मोहल्ले में तिलकुट बनना शुरू हुआ था. तिलकुट की शुरूआत करने वाले लोगों के वंशज भी इसी मौसमी कुटीर उद्योग को आगे बढ़ा रहे हैं. अब तो शहर के रमना रोड, टेकारी रोड, कोयरीबारी, राजेन्द्र आश्रम, चांदचौरा, सरकारी बस स्टैड, स्टेशन रोड आदि में तिलकुट का निर्माण किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- मकर संक्रांति को लेकर सजे लखीसराय के बाजार, कारीगरों ने बताई मशहूर तिलकुट बनाने की विधि

वैसे तो तिलकुट देश के कई हिस्सों में बनाया जाता है, लेकिन गया में बने तिलकुट की खास बात होती है. यहां चीनी की अपेक्षा तिल को ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है. जिस कारण यह शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है. तिलकुट खाने से कब्जियत दूर होती है. इसे बनाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. गुड़ या चीनी की चासनी बनाकर उसे कूट-कूट कर तिलकुट तैयार किया जाता था. फिर तिल को बड़े पात्रों से भुनकर चासनी के ठंडे टुकड़ों के साथ मिलाकर उसे कूट-कूट कर तैयार किया जाता था.

गया शहर के अलावा जिले के टिकारी और मोहनपुर प्रखंड के डंगरा बाजार का गुड़ का बना तिलकुट भी अपनी अलग और परंपरागत पहचान बन चुका है. यहां के तिलकुट बिहार के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र आदि राज्य के छोटे-बड़े शहरों में भेजे जाते हैं. इस व्यवसाय से गया में करीब 10 हजार लोग जुड़े हैं. बावजूद इसके सरकार इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कोई मदद नहीं कर रही है.

उन्होंने कहा कि ओमीक्रोन की तीसरी लहर को लेकर रात 8 बजे तक ही दुकान खोलने की अनुमति है. इस कारण लोग खरीदारी कम कर रहे हैं. हम लोगों ने जिलाधिकारी से मांग की है कि आगामी 14 जनवरी तक रात्रि 10 बजे तक दुकान खोलने की इजाजत दी जाए, लेकिन अभी तक अनुमति नहीं मिली है. जो लोग विदेशों में रहते हैं, वे अपने स्तर से तिलकुट खरीद कर ले जाते हैं, लेकिन सरकार अगर हम लोगों को जीआई टैग उपलब्ध करा देती है, तो हम लोग विदेशों तक डायरेक्ट तिलकुट को भेज सकते हैं. इसके लिए भी हम लोग पिछले कई महीनों से मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से जीआई टैग देने को लेकर अब तक कोई पहल नहीं की गई.

''गया के तिलकुट का स्वाद यहां के पानी के कारण सबसे अलग है. यही वजह है कि लोग गया का तिलकुट पसंद करते हैं, लेकिन पिछले 2 सालों से कोरोना ने इस व्यवसाय को चौपट कर दिया है. अब कोरोना की तीसरी लहर के कारण भी लोग कम खरीदारी कर रहे हैं. महंगाई के कारण जो लोग पहले 5 किलो खरीदते थे, अब मात्र ढाई किलो ही खरीद रहे हैं.''- शुभम नंदन, तिलकुट दुकानदार

ये भी पढ़ें- तिलकुट पर कोरोना का असर, फिर भी तिलकुट बनाने में जुटे कारोबारी

गया के बाजार में चीनी का तिलकुट 260 रुपये प्रति किलो, गुड़ से निर्मित तिलकुट 280 रुपये प्रति किलो और खोवा का तिलकुट 360 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. हम सरकार से मांग करते हैं कि तिलकुट व्यवसाय से जुड़े लोगों की मदद करें. बता दें कि मकर संक्रांति पर चूरा दही गुड़ के साथ साथ तिलकुट की बहुत ही डिमांड होती है. मंडी में तिल कुटाई का काम जोर-शोर से चल रहा है. हालांकि, कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के साथ ही सरकार के निर्देशानुसार रात्रि 8 बजे तक ही दुकान खुली रहेगी, ऐसे में अब देखना होगा कि दुकानदारों पर इसका कितना असर पड़ता है.

विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

Last Updated :Jan 10, 2022, 3:42 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.