बोधगया मठ की लाइब्रेरी में है दुर्लभ पुस्तकों का संसार, संरक्षण के अभाव में हो रहे हैं नष्ट

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Published : Aug 23, 2021, 1:02 PM IST

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ज्ञान की धरती बोधगया में बोधगया मठ (Bodhgaya Math) है. 1880 में बोधगया मठ में एक पुस्तकालय की स्थापना की गई थी. इस पुस्तकालय में ईसा पूर्व के ताड़पत्र से लेकर कई धार्मिक और साहित्यिक पुस्तकें मौजूद हैं. लेकिन वर्तमान में इस लाइब्रेरी की स्थिति काफी बदतर हो चुकी है. पढ़िए पूरी खबर..

गया: बोधगया मठ (Bodhgaya Math) में 1880 में एक पुस्तकालय (Library Bodhigaya) की स्थापना की गई थी. इसमें ईसा पूर्व के ताड़पत्र से लेकर कई धर्मों की धार्मिक और साहित्यिक पुस्तकें मौजूद हैं. लेकिन संरक्षण के अभाव में यह पुस्तकालय अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है, जिसके कारण कई प्राचीन पुस्तकें खराब हो चुकी हैं.

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इस पुस्तकालय में 2033 साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों (Rare Manuscript) और ईसा पूर्व के ताड़पत्र सुरक्षित हैं. बोधगया मठ के इस पुस्तकालय के अध्यक्ष कभी दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह (Rameshwar Singh) और उपाध्यक्ष गिद्धौर महाराज हुआ करते थे. वहीं कार्यकारी सचिव तत्कालीन जिलाधिकारी हुआ करते थे. इस पुस्तकालय में स्वामी विवेकानंद, रविन्द्र नाथ टैगोर, जगदीश चंद्र बसु भी आये थे. स्वामी विवेकानंद ताड़पत्र में लिखे वेद की रचनाओं को कॉपी करके अपने साथ भी ले गए थे.

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बोधगया मठ के महंत स्वामी विवेकानंद ने बताया कि इस पुस्तकालय का अतीत काफी गौरवशाली रहा है. इस पुस्तकालय में किताबों की गिनती करना मुश्किल है. हर एक अलमारी से सदियों पुरानी किताबें निकली जा रही हैं.

इस पुस्तकालय की स्थापना मठों के साधु संत औए विदेश से आनेवाले विद्वानों के लिए किया गया था. यहां साधु संत 1880 ई. में इंग्लिश में किताबें लिखते थे और अध्ययन करते थे. इस पुस्तकालय के बारे में साल 1922 के तत्कालीन जिलाधिकारी ने एक डॉक्यूमेंट्री पुस्तक लिखी है. जिसमे उन्होंने बताया है कि इस पुस्तकालय के अध्यक्ष दरभंगा महाराज और उपाध्यक्ष गिद्धौर महाराज थे.- स्वामी विवेकानंद, महंत, बोधगया मठ

बताया जाता है कि इस पुस्तकालय के सदस्यों में कई विदेशी स्कॉलर भी शामिल थे. सबसे ज्यादा विदेशी विद्वानों में चीन, जापान, अमेरिका, तिब्बत के विद्वान शामिल थे. महंत हेम नारायण गिरी ने इस पुस्तकालय की स्थापना की थी. उन्होंने संस्कृत के कई पांडुलिपियों का संग्रह भी किया था. वह खुद संस्कृत के विद्वान थे.

इस लाइब्रेरी में विश्व की प्रसिद्ध पुस्तकों का संकलन किया गया था. 1880 में इस पुस्तकालय में दो खंड बनाये गए थे. वैदिक और बुद्धिस्ट खंड थे. वैदिक खंड में सनातन परंपरा से जुड़ी किताबें उपलब्ध थी. बुद्धिस्ट में पाली एवं प्राकृतिक रचनाओं के साथ ही बुद्धिस्ट साहित्यों को जगह दी गई थी.

इस पुस्तकालय में 13 ईसा पूर्व का ताड़ पत्र भी है. जब कागज का निर्माण नहीं हुआ था तब ताड़ के पत्र पर पांडुलिपि लिखा जाता था. इस ताड़पत्र में वेदों की रचना लिखी गयी. लेकिन अब इसे पढ़ना आसान नहीं है क्योंकि यह नष्ट होने के कगार पर पहुंच चुका है. ऐसे में अब इसे संरक्षण किया जा रहा है.

आपको बता दें कि गौरवशाली अतीत वाले इस पुस्तकालय की वर्तमान में स्थिति बदतर है. पुस्तकालय खंडहर होने के कगार पर पहुंच गया है. दरअसल बोधगया मठ में धन उगाही और कानूनी विवाद की वजह से पुस्तकालय बंद हो गया था. अब बोधगया मठ में नए महंत के आने पर इस पुस्तकालय की किताबों और वेदों को संरक्षित किया जा रहा है. पुस्तकालय को फिर से चालू करने के लिए साधु संत पुस्तकों को विषय आधारित खंडों में संग्रहित करने में लगे हैं.

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