पितरों को मोक्ष दिलाने में अगर आ रही है अड़चन, तो करें ऑनलाइन पिंडदान

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Published : Aug 22, 2022, 10:18 AM IST

Pitru Paksha Mela 2022 begins in Gaya

इस साल नौ सितंबर से बिहार के गया में Pitru Paksha Mela 2022 शुरू हो रहा है. सरकार ने देश विदेश में ऐसे लोगों के लिए ई पिंडदान की भी व्यवस्था की है, जो यहां नहीं पहुंच सकते. पढ़ें

गया: सनातन धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए मोक्षस्थली गया में पिंडदान करने की परंपरा है. मान्यता है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति (pinddaan to give salvation to ancestors in gaya) होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है. पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन गया शहर की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान करने पहुंचते हैं.

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पिंडदान के लिए हो रही है ऑनलाइन बुकिंग: दो साल कोरोना के कारण गया में पितृपक्ष मेला का आयोजन नहीं किया गया लेकिन इस साल नौ सितंबर से पितृपक्ष मेला शुरू हो रहा है. सरकार ने इस साल इसके लिए खास पैकेज लांच किए हैं जबकि ई पिंडदान की भी व्यवस्था (online pind daan in gaya) की है. बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा छह टूर पैकेज की घोषणा की है. इस साल देश विदेश में ऐसे लोगों के लिए ई पिंडदान की भी व्यवस्था की गई है, जो यहां नहीं पहुंच सकते. इसके तहत तीन स्थानों (वेदियों) पर विधि विधान से पिंडदान कराया जाएगा.

निगम द्वारा छह अलग-अलग पैकेज भी लांच किए गए हैं, जिसके लिए अलग-अलग राशि खर्च करने होंगे. इसके तहत एक पैकेज एक रात और दो दिनों का है. इसमें गया में पिंडदान कराकर नालंदा और राजगीर भी घुमाने की व्यवस्था दी गई है. बता दें कि पितृपक्ष के साथ-साथ तकरीबन पूरे वर्ष लोग अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष की कामना लेकर यहां पहुंचते हैं और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान और तर्पण आदि करते हैं.

कहा जाता है कि पहले गया श्राद्ध में कुल पिंड वेदियों की संख्या 365 थी, पर वर्तमान में इनकी संख्या 50 के आसपास ही रह गई है. इनमें श्री विष्णुपद, फल्गु नदी और अक्षयवट का विशेष मान है. गया तीर्थ का कुल परिमाप पांच कोस (करीब 16 किलोमीटर) है और इसी सीमा में गया की पिंड वेदियां विराजमान हैं.

गया के पंडा बताते हैं कि पितृपक्ष यानी महालया में कर्मकांड की विधियां और विधान अलग-अलग हैं. श्रद्घालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं. इस दौरान पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता है. शास्त्रों की मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर किया जाने वाला पिंडदान सीधे उन तक पहुंचता है और उन्हें सीधे स्वर्ग तक ले जाता है. माता-पिता और पुरखों की मृत्यु के बाद उनकी तृप्ति के लिए श्रद्घापूर्वक किए जाने वाले इसी कर्मकांड को पितृ श्राद्घ कहा जाता है.

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