बाढ़ के बाद अब कीट-पतंगों के उत्पात से किसान बेहाल, सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल हो रही बर्बाद

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Published : Sep 25, 2021, 1:36 PM IST

Updated : Sep 25, 2021, 3:38 PM IST

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बक्सर में फसल में कीड़े लगने से पत्तियां सूखने लगी है. जिसके कारण किसानों की परेशानी बढ़ गई है. किसान कभी बाढ़, तो कभी फसलों में कीड़े लगने से परेशान हो गए हैं. जिससे किसान न तो ठीक से धान के बिचड़े डाल पा रहे हैं और न ही रोपनी कर पा रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

बक्सर: धान के कटोरे में बंपर उत्पादन की उम्मीद पाले अन्नदाता के चेहरे पर इन दिनों चिंता की लकीरें खींचने लगी हैं. किसान कभी बाढ़ के दंश से, तो कभी यूरिया की किल्लत से परेशान रहते हैं. वहीं, अब अब कीट-पतंगों के प्रकोप ने किसानों की चिंताएं और भी बढ़ा दी हैं. बिहार के बक्सर जिले में खेतों में लग रहे कीट के कारण सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल बर्बाद (Worm In Paddy Crops) हो रही है.

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सदर प्रखंड के जगदीशपुर बोक्सा और महदह पंचायत के सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसलों में बाली आने से फसल सूखने लगी है. किसानों का कहना है की बाढ़ खत्म होने के बाद अब फसलों में कीड़े लगने शुरू हो गए हैं. ऐसे में फसल में उर्वरक के छिड़काव की आवश्यकता होती है. उर्वरक न मिलने से फसलों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ने लगा है. इससे परेशानी बढ़ती जा रही है.

देखें रिपोर्ट.

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मार्च 2020 से अब तक कोरोना वैश्विक महामारी का सामना करते हुए किसान लचर व्यवस्था और अधिकारियों की लापरवाही से तंग आ चुके हैं. किसान अब अपनी किस्मत को कोस रहे हैं. आश्चर्य की बात यह है कि दो दिन पहले ईटीवी भारत (ETV Bharat) की टीम ने जिला कृषि पदाधिकारी को किसानों की समस्या की जानकारी दी थी लेकिन उन्होंने आदर्श आचार संहिता का हवाला दे दिया था.

अधिकारी ने कहा था कि समाचार पत्रों के माध्यम से किसानों को जागरूक किया जा रहा है. साथ ही उपचार का उपाय बताया जा रहा है. अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर खेतों में काम करने वाले कितने प्रतिशत किसान प्रतिदिन अखबार खरीदकर पढ़ते हैं?

किसानों ने बताया कि सूचना देने के बाद भी कृषि विभाग के कोई भी अधिकारी उनकी समस्याओं को सुनने नहीं आया. बिहार सरकार के द्वारा किसानों की सुविधा के लिए कृषि समन्वयक और कृषि सलाहकार जरूर पंचायत स्तर पर नियुक्त किया गया है. लेकिन उन्हें कोरोना ड्यूटी में लगा दिया गया है. किसानों का कहना है कि स्थानीय दुकानदारों से जानकारी प्राप्त कर अब तक हजारों रुपये की दवा का छिड़काव किया जा चुका है. उसके बाद भी फसल सुखते ही जा रहे हैं.

'धान की फसल इस वर्ष अच्छी हुई है. लेकिन पिछले 8-10 दिनों से धान की फसल में गलका लग गई है. जिससे फसल की पत्तियां किनारे की तरफ नीचे की ओर पट्टी बनाकर झुलसने लगती है. इसमें दो बीमारी आती है. पहले को जीवाणु झुलसा कहते हैं और दूसरे को गलका कहते हैं. जिसमें पत्तियां और बीज खराब हो जाती है. हालांकि किसानों को फसल बचाने का उपाय बता दिया गया है.' -रामकेवल, कृषि वैज्ञानिक

किसानों की समस्या की जानकारी जिलाधिकारी अमन समीर को दी गई. इसके बाद जिलाधिकारी ने कृषि विभाग के अधिकारियों को फटकार लगाना शुरू कर दिया. वहीं, कृषि विभाग के अधिकारी एवं वैज्ञानिक खेतों में पहुंचकर किसानों की समस्याओं को सुनने के साथ ही फसलों की जांच करने लगे. किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि यदि फसल बर्बाद हो गई, तो वे अपने परिजनों के लिए भोजन की व्यवस्था कहां से करेंगे. साथ ही कर्ज कैसे चुकाएंगे.

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि धान में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट का प्रकोप है. जिसके निवारण के लिए किसान स्ट्रेप्टोसाइक्लिन-12 ग्राम और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड-350 ग्राम दवा का प्रयोग करना है. इन दवाओं को 120 लीटर पानी में मिलाकर प्रति बीघा के दर से 7-8 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना है.

गौरतलब है कि बक्सर जिले में 1 लाख 42 हजार किसान कृषि पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं. जिनके द्वारा जिले के 11 प्रखंडो में 90 हेक्टेयर भूमि पर धान की फसल लगाई गई है. एक माह पहले अगस्त में आई बाढ़ ने 8 प्रखंड के लगभग लगभग 56 पंचायत के 7 हजार 400 हेक्टेयर भूमि में लगे फसल को प्रभावित किया है. जिसमें से 4 हजार 200 हेक्टेयर भूमि में लगी फसल 33% से अधिक क्षतिग्रस्त हो चुकी है.

बता दें कि मई महीने में याश चक्रवात के कारण सैकड़ों किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी. जिसका मुआवजा अब तक विभाग के माध्यम से किसानों को नहीं दिया गया है. किसान प्रतिदिन कृषि कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किसानों की बदहाल स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए कहा था कि 'देश के अन्नदाताओं की स्थिति काफी गंभीर है. यदि मेरी सरकार बनती है, तो उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने से लेकर योजनाओं को उनके खेतों तक पहुंचाया जाएगा.'

हैरानी की बात यह है कि 7 साल का समय गुजर जाने के बाद भी किसानों की समस्याएं ज्यों के त्यों बनी हुई हैं. इस समस्या को लेकर न तो अधिकारी उनकी बात सुन रहे हैं और न ही उन पर सरकार कोई ध्यान दे रही है. यही कारण है कि अधिकांश किसान अब कृषि पेशा को त्यागकर शहरों में पलायन कर रहे हैं.

Last Updated :Sep 25, 2021, 3:38 PM IST
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