सुप्रीम कोर्ट से मिली बिहार में बालू खनन की अनुमति, कहा- रोक से सरकारी खजाने को नुकसान

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Published : Nov 11, 2021, 8:21 PM IST

सुप्रीम कोर्ट

तीन जजों की पीठ ने कहा कि इस बात की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब वैध बालू खनन (Sand Mining) पर रोक है, तब अवैध खनन कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रहा है. इसके नतीजतन बालू माफिया के बीच संघर्ष, अपराधीकरण और कई बार लोगों की जान जाने जैसे मामले आते हैं.

पटना: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार सरकार को खनन विभाग (Mining Department) के जरिए बालू निकालने की गतिविधियां संचालित करने की अनुमति दे दी है. जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाले तीन जजों की पीठ ने कहा कि बालू खनन (Sand Mining) पर रोक लगाने से सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान (Huge Loss To Exchequer Due To Ban) हो सकता है.

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कोर्ट ने बुधवार को निर्देश देते हुए कहा कि बालू खनन के मुद्दे से निपटते समय पर्यावरण के सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ विकास के संतुलित तरीकों को लागू करना जरूरी है. साथ ही कहा कि इस बात से मना नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी व निजी निर्माण गतिविधियों के लिए बालू जरूरी है.

जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने निर्देश दिया कि बिहार के सभी जिलों में खनन के उद्देश्य के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की कवायद नए सिरे से की जाएगी. पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई भी शामिल हैं.

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राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के एक आदेश के खिलाफ बिहार सरकार की अपील पर ये आदेश आया है. एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि बांका के लिए नए सिरे से जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की कवायद की जाए. एनजीटी ने 14 अक्टूबर, 2020 के आदेश में यह भी कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा मान्यता बोर्ड और भारत के प्रशिक्षण/गुणवत्ता नियंत्रण परिषद की ओर से मान्यता प्राप्त परामर्शदाताओं के माध्यम से सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए.

बिहार निवासी पवन कुमार और अन्य की याचिका पर एनजीटी का आदेश आया. जिसमें कानून के अनुसार और अधिकरण के अनेक फैसलों समेत नियामक रूपरेखा के अनुरूप उचित तरीके से रेत खनन की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है.

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