5वां राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे: बिहार के बच्चों में बढ़ा कुपोषण, लॉकडाउन के कारण स्थिति हुई बदतर

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Published : Sep 6, 2021, 7:37 PM IST

कुपोषण

कोरोना महामारी (Corona Pandemic) ने बिहार में कुपोषण (Malnutrition) की स्थिति को और चिंताजनक बना दिया है. प्रदेश में कुपोषण के कारण बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. कुपोषण के मामले में बिहार की स्थिति पहले से और ज्यादा खराब हुई है. पढ़ें ये रिपोर्ट..

पटना: बिहार में कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) आने की सुगबुगाहट है और इसी बीच प्रदेश में कुपोषण (Malnutrition) के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है. कुपोषण के कारण बच्चों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. ऐसी स्थिति में कोरोना की संभावित तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग (Health Department) पोषण के लिए बड़ा अभियान चलाने की तैयारी कर रहा है.

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स्वास्थ्य विभाग की तरफ से बीते सप्ताह पोषण माह की शुरुआत की गई, क्योंकि कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन से उत्पन्न हुए हालातों की वजह से प्रदेश में कुपोषण काफी बढ़ा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) की रिपोर्ट की माने तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2014-15) की तुलना में बिहार की स्थिति पहले से खराब हुई है और इसके बाद लॉकडाउन की वजह से स्थिति और बदतर हुई है.

देखें रिपोर्ट

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़े अधिकारी ने जानकारी दी कि कोरोना काल के दौरान कोरोना की रोकथाम में स्वास्थ्य विभाग जुटा रहा है. ऐसे में पोषण से जुड़ी हुई जो योजनाएं चल रही थी, वो बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. गरीब परिवारों में लॉकडाउन से आई आर्थिक तंगी की वजह से बच्चों को भरपेट भोजन नहीं मिला. सरकार की तरफ से राशन कार्ड द्वारा काफी राशन भी दिया गया, लेकिन उसमें भी काफी अनियमितताएं रही हैं. कई लोगों को राशन कार्ड नहीं होने की वजह से सरकार से मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ा, इस वजह से कई गरीब परिवार पौष्टिक आहार से वंचित रहे.

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 की रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण के मामले में देशभर में बिहार का दूसरा स्थान है और यहां 42.9% कुपोषण है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के मामले में बिहार देशभर में सबसे पिछड़ा राज्य है और ऐसे में यह पहले स्थान पर है. जहां 5 वर्ष से कम उम्र के 41 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.

प्रदेश में कुपोषण को दूर करने के लिए सरकार और कई संस्थाओं द्वारा करोड़ों की लागत से पोषित आहार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और इसी कड़ी में पीएमसीएच के शिशु विभाग में पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई. जिसमें 6 माह से 12 साल के कुपोषित बच्चों को पोषित आहार और उपचार कर कुपोषण से दूर करना है. हालांकि, यह केंद्र अपने निर्माण के उद्देश्य को पूरा करने में विफल नजर आ रहा है. पीएमसीएच में महीने में हजारों बच्चों का इलाज होता है और अधिकांश बच्चे अंडरवेट रहते हैं.

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लेकिन, इन बच्चों को इस केंद्र का लाभ नहीं मिलता. वर्तमान समय में इस केंद्र में दो बच्चे एडमिट हैं, जबकि 8 से 10 बच्चों के एडमिट होने की व्यवस्था है. यहां एडमिट होने वाले बच्चों को पोषित आहार और चिकित्सीय इलाज के माध्यम से कुपोषण से मुक्त किया जाता है. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक इस केंद्र से महीने में 10 से 15 की संख्या में बच्चे ही लाभान्वित हो पाते हैं.

पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि कुपोषण एक गंभीर मामला है और कुपोषण के खिलाफ सरकार को बड़ा कदम उठाने की आवश्यकता है. कुपोषित बच्चों में वायरल और अन्य प्रकार की बीमारियां ज्यादा अटैक करती है. ऐसे में कोरोना की संभावित तीसरी लहर में इन बच्चों पर खतरा ज्यादा है.

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''कुपोषण की वजह से बच्चों का शरीर कमजोर हो जाता है और उनका इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है. ऐसे में उनका शरीर वायरल बीमारियों से जूझ नहीं पाता और इसकी चपेट में बहुत जल्द आ जाता है. लॉकडाउन की वजह से उत्पन्न हालातों के कारण पोषण कार्यक्रम भी प्रभावित हुए. वहीं, दूसरी तरफ काफी संख्या में गरीब परिवारों में पोषित आहार की कमी देखने को मिली.''- डॉ. दिवाकर तेजस्वी, वरिष्ठ चिकित्सक, पटना

उन्होंने कहा कि अभी के समय जरूरी है कि सरकार कुपोषण को दूर करने के लिए एक निर्णायक प्रयास करें और कुपोषित बच्चों को जरूरी विटामिन और न्यूट्रिशन युक्त भोजन और दवाइयां नि:शुल्क प्रदान करें. सरकार अपने डेटा को चेक करें और जिन इलाकों में कुपोषण के मामले ज्यादा हैं, वहां इस मुहिम को अधिक बल दें.

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