फर्जी डिग्री से लेकर टॉपर घोटाला तक, बिहार से बाहर तक फैली है गोरखधंधे की जड़

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Published : Oct 14, 2021, 4:18 PM IST

फर्जी डिग्री

मार्च 2018 में भी विजिलेंस टीम बिहार की मगध यूनिवर्सिटी (Magadh University) में फर्जी डिग्रियों की जांच कर चुकी है. उस दौरान संबंधित डिग्री धारकों का कोई रिकॉर्ड विश्वविद्यालय में नहीं मिला था, लेकिन एफआईआर (FIR) के बाद भी उस दौरान कोई कार्रवाई नहीं हुई थी. अब फिर से नाम सामने आने के बाद ये सवाल तो अहम हो ही जाता है कि क्यों बार-बार फर्जीवाड़ा का यह खेल यहां के शिक्षण संस्थानों के नाम पर खेला जा रहा है.

पटना: फर्जी डिग्री को लेकर बिहार की मगध यूनिवर्सिटी (Magadh University) एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि खुलासा हुआ है कि इस विश्वविद्यालय के नाम पर फर्जी डिग्री (Fake Degree) हासिल कर हिमाचल प्रदेश में कई लोग अहम पदों पर अपनी सेवा दे रहे हैं. एक स्कूल प्रिंसिपल और एक दर्जन पूर्व सैनिक भी इसमें शामिल बताए जा रहे हैं. हालांकि ये कोई पहला केस नहीं है, जब फर्जी डिग्री को लेकर बिहार से कनेक्शन (Bihar Connection of Fake Degree) जुड़ा है. यहां तो इसकी लंबी फेहरिस्त है.

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दरअसल, फर्जी डिग्री के खेल में कई बार बिहार के मगध विश्वविद्यालय का नाम जुड़ा है. 90 के दशक में यह उत्तरी राज्यों तक सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे उत्तर भारत से होते हुए फर्जी डिग्री का गिरोह दक्षिण के राज्यों में भी सक्रिय हो गया. अब तो समूचे भारत में फर्जी डिग्री का ये बाजार पसर चुका है. इस बात का खुलासा समय-समय पर होता भी रहता है. वहीं, विश्वविद्यालय मुख्यालय में जब डिग्री सत्यापन का विभिन्न विभागों से आवेदन प्राप्त होता है, तो आवेदन के संलग्न प्रमाण पत्र प्रथम दृष्टया में ही फर्जी प्रतीत होता है. चाहे वो छात्र का अंक पत्र हो या फिर मूल प्रमाण पत्र.

सबसे हैरत की बात तो ये है कि ऐसे ही फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर लोग तमाम जगहों पर विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में कार्यरत हो जाते हैं. हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग से प्राप्त आवेदन के आलोक में निगरानी की एक टीम 12 फर्जी डिग्री का सत्यापन करने के लिए मगध विश्वविद्यालय के मुख्यालय पहुंची थी. दस्तावेज देखते ही परीक्षा नियंत्रक डा. भृगुनाथ ने कहा कि ये डिग्री पूरी तरह से फर्जी है.

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आपको याद होगा कि साल 2015 में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार में कानून मंत्री रहे जितेंद्र सिंह तोमर को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. तोमर पर आरोप था कि उनकी डिग्री फेक है. खास बात ये है कि तोमर की बिहार के तिलकामांझी विश्वविद्यालय की भी डिग्री फर्जी पायी गई थी. उस वक्त तिलकामांझी विश्वविद्यालय के कुलपति ने साफ किया था कि तोमर को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय ने किसी तरह की कोई डिग्री जारी नहीं की है. बाद में उनकी एलएलबी (LLB) की डिग्री रद्द कर दी गई.

फर्जी डिग्री के जरिए पास करने के तो कई केस सामने आते रहे हैं, लेकिन फर्जी तरीके से टॉपर बनने का भी बदनुमा दाग बिहार से जुड़ चुका है. साल 2016 को याद करिए जब वैशाली जिले के भगवानपुर का शर्मा अमर गांव उस समय सुर्खियों में आया. शिक्षा जगत के क्षेत्र में देश की सबसे बड़ी शर्मसार करने वाली इंटर टॉपर घोटाला का मामला उजागर हुआ था. दरअसल इसी छोटे से गांव ही रहने वाली है रूबी राय को शिक्षा माफियाओं ने 2016 में इंटर का साइंस टॉपर बना दिया था, लेकिन शिक्षा माफियाओं की करतूत 31 मई 2016 को उजागर हो गई जब इंटर परीक्षा परिणाम के बाद मीडिया ने इंटर साइंस टॉपर का खिताब हासिल करने वाली रूबी राय का साक्षात्कार किया था. उसमें इंटर साइंस टॉपर के रूप में रूबी राय ने जो जवाब दिया था उससे देशभर में बिहार की जग हंसाई हुई और मीडिया ने जब इस खबर को प्रमुखता से दिखाना शुरू किया तो शिक्षा विभाग ने माफिया राज का परत दर परत खुलासा होता चला गया.

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वहीं, उसके पहले भी इंटर आर्ट्स टॉपर गणेश कुमार का फजीवाड़ा समाने आया था. 2017 में बिहार बोर्ड की आर्ट्स परीक्षा के इस टॉपर ने 1992 में कॉमर्स संकाय से परीक्षा पास की थी. उसने नाम और जन्मतिथि बदलकर फिर परीक्षा दी थी. वैसे बिहार में न केवल फर्जी डिग्री का खेल बल्कि पेपर वायरल होने का भी पुराना इतिहास है. मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित कई अन्‍य प्रवेश परीक्षाओं में भी ऐसा होता रहा है. 2002 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पेपर लीक मामले में 22 नवंबर 2003 को दिल्ली से डॉ. रंजीत उर्फ सुमन कुमार सिंह को सीबीआइ ने गिरफ्तार किया था. रंजीत डॉन नाम से प्रसिद्ध यह शिक्षा माफिया नालंदा जिले का निवासी है.

फर्जी डिग्री लेकर लोग अलग-अलग विभागों में कार्यरत हैं. बिहार में बड़े पैमाने पर लोग शिक्षक भी बने बैठे हैं. कई लोग तो प्रधानाध्यापक भी बन चुके हैं. हालांकि समय-समय पर इसको लेकर कार्रवाई भी होती रही है. 2010 से लेकर 2015 तक बिहार में कथित फर्जी डिग्री पर बहाल 3000 नियोजित स्कूली शिक्षकों को इस्तीफा भी देना पड़ा था. वैसे फर्जी सर्टिफिकेट का मामला सिर्फ यहीं खत्म नहीं होता है. अभी हाल में ही छठे चरण के प्राथमिक शिक्षक नियोजन के दौरान करीब 38000 शिक्षकों की काउंसलिंग हुई है. उनमें भी बड़ी संख्या में फर्जी सर्टिफिकेट की पहचान हुई है. शिक्षा विभाग ने फर्जी सर्टिफिकेट की भरमार को देखते हुए इस बात को स्पष्ट किया है कि जब तक चयनित शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच नहीं हो जाती, तब तक उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिलेगा. जाहिर है फर्जी डिग्री और उसके माध्यम से नौकरी में बहाली का खेल पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है.

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अभी जिस मामले को लेकर फिर से चर्चा शुरू हुई है, असल में उसका तार साल 2004-05 में प्रदेश शिक्षा विभाग में अध्यापकों की भर्तियों से जुड़ा हुआ है. इस मामले की शिकायत राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो शिमला में की गई थी. इसके बाद हमीरपुर से विजिलेंस टीम मार्च 2018 में मगध विवि पहुंची थी. टीम ने विवि में अध्यापकों की डिग्रियों से जुड़े रिकॉर्ड खंगाले, लेकिन प्रवेश और परीक्षाओं से जुड़े दस्तावेज नहीं मिले. विजिलेंस ने रिपोर्ट मार्च में ही विजिलेंस मुख्यालय शिमला में जमा करवाई, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी शिक्षा विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस मामले में एफआईआर के बाद कोर्ट में चालान पेश होना था, लेकिन अब दोबारा जांच होने और रिपोर्ट शिमला कार्यालय में जमा होने के बाद फर्जी डिग्री धारक सरकारी कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई होनी तय है. विजिलेंस थाना हमीरपुर के डीएसपी लालमन शर्मा ने कहा कि फर्जी डिग्रियों की जांच के लिए चार सदस्यीय टीम बिहार की मगध यूनिवर्सिटी भेजी गई थी, जो अब वापस आ चुकी है.

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