VC विवाद को लेकर बिहार सरकार और राजभवन के बीच बढ़ी दूरी, पुरानी है तकरार की ये कहानी

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Published : Nov 24, 2021, 8:51 PM IST

Updated : Nov 24, 2021, 10:38 PM IST

कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के आरोप

बिहार के विश्वविद्यालयों (Universities of Bihar) में हाल के दिनों में एक के बाद एक कई खुलासों के बाद सरकार और राजभवन के बीच कड़वाहट देखी जा रही है. अब दूरी इस कदर बढ़ गई है कि 23 नवंबर को राजभवन में आयोजित चांसलर अवार्ड समारोह (Chancellor Award Ceremony) में बिहार शिक्षा विभाग (Bihar Education Department) की तरफ से कोई शामिल नहीं हुआ. जिसके बाद अब ये मामला तूल पकड़ता जा रहा है. लेकिन, ये इस तरह का पहला मामला नहीं है, बिहार सरकार और राजभवन में अक्सर वीसी नियुक्ति को लेकर तनातनी देखी गई है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

पटना: बिहार में पिछले 1 हफ्ते से राजभवन खूब चर्चा में है. लगातार लग रहे कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के आरोप (Allegations of corruption against VC) और राजभवन की चुप्पी अब बिहार को भारी पड़ने लगी है. मगध विश्वविद्यालय (Magadh University) के वाइस चांसलर पर भ्रष्टाचार के तरीके से पैसा अर्जित करना साथ ही एक अन्य वाइस चांसलर द्वारा पत्र लिखकर राजभवन को भ्रष्टाचार के बारे में सूचित करना जैसे मामलों पर राजभवन ने चुप्पी साध रखी है.

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इसके साथ ही उत्तर पुस्तिकाओं की खरीद के लिए राजभवन के निर्देश का मामला भी अब तूल पकड़ता जा रहा है, हालांकि बिहार के राज्यपाल फागू चौहान (Governor Phagu Chauhan) को दिल्ली बुलाया गया है, लेकिन बिहार का राजभवन एक बार फिर खूब सुर्खियां बटोर रहा है. विश्वविद्यालयों में वीसी की नियुक्ति और इसमें होने वाले विवाद का मामला सरकार और राज्यपाल के बीच अक्सर होता रहा है. यह कोई नई बात नहीं है. अगर बिहार के राजनीतिक सफर में वाइस चांसलर की नियुक्ति पर विवादों की कहानी को देखा जाए तो सबसे पहला मामला बिहार के मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद और उस समय के राज्यपाल गोविंद नारायण सिंह के बीच सामने आया था.

हालांकि, दोनों लोग कांग्रेस के ही नेता थे, लेकिन वाइस चांसलर की नियुक्ति के मामले पर विवाद इतना बढ़ा कि भागवत झा आजाद (Bhagwat Jha Azad) और गोविंद नारायण सिंह (Govind Narayan Singh) के बीच बातचीत तक बंद हो गई. दिल्ली में इस चीज के लिए समझौते की बैठक भी हुई, लेकिन मामला नहीं सुधरा तो अंत में केंद्र ने 1989 में भागवत झा आजाद और गोविंद नारायण सिंह दोनों को एक साथ ही हटा दिया. यह वाइस चांसलर की नियुक्ति के मामले में राजभवन और सरकार के बीच सबसे पहला और सबसे बड़ा मामला सामने आया था.

राजभवन और बिहार सरकार के बीच इस तरह का विवाद अक्सर उठता रहा है और इसको लेकर के चर्चा भी खूब होती रही है. बिहार में लंबे समय तक राज्यपाल रहे डॉक्टर ए आर कीदवाई 1979 से 1985 तक पहली बार और 1993 से 1998 तक दूसरी बार बिहार के राज्यपाल रहे. उनसे भी राजभवन और सरकार के बीच टकराव की बात आती ही रही थी. साल 2000 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की सरकार थी और बिहार में राबड़ी देवी (Rabri Devi) मुख्यमंत्री थी तो राज्यपाल के तौर पर सुंदर सिंह भंडारी को भेजा गया था और वीसी नियुक्ति के मामले पर एक नहीं कई बार राजभवन से फाइलें वापस गई थी.

हालांकि, सुंदर सिंह भंडारी के जाने के बाद विनोद चंद्र पांडे को राज्यपाल बनाया गया और विवाद यहां बहुत ज्यादा बढ़ गया. विनोद चंद्र पांडे को लेकर के उस समय के सत्ता पक्ष के लोग जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते थे और भाषा का लिखा जाना भी ठीक नहीं है, क्योंकि बिहार में कोर्ट के लगातार आरोप के बाद भी जंगलराज जैसी स्थितियां कही जाती थी. विनोद चंद्र पांडे लगातार राष्ट्रीय जनता दल के निशाने पर रहे और उस समय के सत्तापक्ष के शायद ही कोई ऐसे लोग रहे हो, जिन्होंने विनोद चंद्र पांडे के लिए वैसे शब्दों का उपयोग न किया हो जो सार्वजनिक जीवन में नहीं कहे जा सकते हैं.

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बिहार में 2005 से नीतीश की सरकार बनी तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार ने जिन राज्यपालों को बिहार भेजा उसमें सबसे ज्यादा विवादित कार्यकाल बूटा सिंह का रहा है. बूटा सिंह के निर्णय को लेकर के सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी और बूटा सिंह के निर्णय को गलत बताया था. साथ ही केंद्र सरकार को गुमराह करने का आरोप भी बूटा सिंह (Buta Singh) पर लगाया था, जो संभवत उस समय तक के किसी भी राज्यपाल के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबसे बड़ी टिप्पणी थी. बूटा सिंह 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल रहे. हालांकि, उस समय भी वीसी की नियुक्ति के मामले को लेकर विवाद ज्यादा ही रहा था.

बिहार में 2009 से 2013 तक देवेंद्र कुंवर राज्यपाल थे. 2009 से 2013 का कार्यकाल ऐसा था जब मुख्यमंत्री आवास और राजभवन के बीच वाइस चांसलर की नियुक्ति को लेकर के विवाद अखबारों की सुर्खियों में होता था. विवाद का मामला इतना ज्यादा बढ़ा कि नीतीश सरकार ने वाइस चांसलर की नियुक्ति के लिए कमेटी तक बना दी. पैनल में नाम आने के बाद राजभवन को भेजा जाता था, उसके बाद राजभवन से जिन नामों को फाइनल किया जाता था उस पर अंतिम मुहर लगाने की बात होती थी.

हालांकि, वीसी की नियुक्ति को लेकर देवेंद्र कुंवर का कार्यकाल इतना ज्यादा विवादों में रहा कि कांग्रेस के नेता होने के बाद भी 2013 में विधानसभा के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए जब उन्होंने सरकार का अभिभाषण पढ़ा था तो उस समय कांग्रेस की विधान पार्षद ज्योति सिंह ने विधानसभा और विधान मंडल के उपस्थित सदस्यों के सामने ही देवेंद्र कुंवर पर भी नियुक्ति में पैसा लेने का आरोप लगा दिया था.

दरअसल, 2013 के बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू हुआ था और सदन के दोनों सदनों को संबोधित करने के लिए राज्यपाल देवेंद्र कुंवर आए थे. राज्यपाल शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा सुधार के लिए सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को पढ़ रहे थे, इसी बीच ज्योति सिंह हंगामा करते हुए विधानसभा में खड़ी हो गई और उन्होंने देवेंद्र कुंवर पर आरोप लगाते हुए सदन में कह दिया कि यह भी बता दीजिए कि वीसी की नियुक्ति में कितना पैसा लिया जा रहा है. हालांकि, उस समय के विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए ज्योति सिंह को पत्र भी जारी किया था, लेकिन वीसी नियुक्ति के मामले को लेकर देवेंद्र कुंवर पर विवाद बना ही रहा.

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बिहार में 2013 के बाद केंद्र में मोदी सरकार बन गई और बिहार में नीतीश कुमार विरोध में बैठ गए. हालांकि, उसके बाद जो कुछ भी हुआ उसमें भी वीसी नियुक्ति को लेकर इतना बड़ा विवाद तो नहीं खड़ा हुआ, लेकिन 2017 में फिर से बीजेपी और जेडीयू के साथ आ जाने के बाद राजभवन से टकराव की स्थिति खत्म हो गई, क्योंकि उससे पहले देश के वर्तमान राष्ट्रपति बिहार के राज्यपाल हुआ करते थे और वह कार्यकाल पूरे तौर पर विवाद मुक्त था.

बिहार के नए राज्यपाल के तौर पर फागू चौहान वीसी नियुक्ति के मामले पर उतने विवाद में तो नहीं आए थे, क्योंकि समन्वय नीतीश कुमार के साथ ठीक रहा है. सरकार के साथ भी संबंध ठीक रहा है, लेकिन वीसी नियुक्ति के बाद जिस तरीके से घोटाले की बात सामने आई और उस पर जो राजभवन और राज्यपाल का रुख रहा है, उसको लेकर बिहार में बवाल खड़ा हो गया है.

राजभवन से राज्यपाल फागू चौहान के बेटे द्वारा वाइस चांसलर को गाइड किया जाता है. उत्तर पुस्तिकाओं की खरीद में भी वाइस चांसलर के बेटे का ही नाम आ रहा है. विपक्ष इस मामले पर उतना हमलावर नहीं है जितना सत्ता पक्ष के लोग ही आरोप लगाना शुरू कर दिए हैं. बिहार सरकार में शामिल हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान ने खुलकर आरोप लगा दिया कि राजभवन भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है और राजभवन में फागू चौहान के बेटे पूरे यूनिवर्सिटी में मनमानी तरीके से गलत काम करवा रहे हैं. अब राजभवन और सरकार के बीच टकराव का मामला सीधे तौर पर तो नहीं है, लेकिन राजभवन पर लग रहे आरोप की एक बड़ी कहानी कही जा सकती है.

इस मामले से बिहार सरकार ने खुद को इस आधार पर अलग कर रखा है कि बिहार के शिक्षा मंत्री ने राजभवन द्वारा कुलपतियों को लेकर आयोजित कार्यक्रम से खुद को अलग कर लिया. मामला यहीं से और ज्यादा बड़ा हो गया और यह माना जाने लगा कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था में और खासतौर से विश्वविद्यालयों में जिस तरह से भ्रष्टाचार व्याप्त है, उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है. राजभवन जो भी निर्णय लेगा सरकार उसे अमल में ला देगी.

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अब बड़ा सवाल यह है कि जिन कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं उन पर कार्रवाई करने में राजभवन लेट क्यों कर रहा है. यह लगातार सवालों में है. बहरहाल, बिहार के राज्यपाल दिल्ली तलब किए गए हैं और माना जा रहा है कि दिल्ली में जो मामले बिहार में उठे हैं, उस पर सुनवाई भी होगी और शायद कोई ठोस फैसला भी आ जाए क्योंकि नरेंद्र मोदी जीरो टॉलरेंस की नीति भ्रष्टाचार के मुद्दे पर करते रहे हैं और भ्रष्टाचार जिस तरीके से बिहार के विश्वविद्यालयों में दिखा है, अगर उस पर कोई टॉलरेंस दिखा तो इसमें दो राय नहीं कि आने वाले समय में मुद्दे और राजनीति दोनों दो रास्ते पर चले जाएं.

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Last Updated :Nov 24, 2021, 10:38 PM IST
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