बिहार में कहर बनकर टूट रही आसमानी आफत, 7 साल में 1625 लोगों की मौत, अब तक 200 की गई जान

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Published : Aug 2, 2022, 9:24 PM IST

आकशीय बिजली से कई लोगों की मौत

बिहार में इस बार औसत से 40 फीसदी कम बारिश (Below Average Rain In Bihar) हुई है. लेकिन इसके बावजूद आकाशीय बिजली से इस साल अब तक लगभग 200 का आंकड़ा पहुंच चुका है. आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार बिहार में 7 सालों में सोलह सौ लोगों की जाने आकाशीय बिजली गिरने से हुई है. पढ़ें पूरी खबर...

पटना: बिहार में इस बार मानसून ने जरूर धोखा दिया है और इसके कारण औसत से 40 फीसदी कम बारिश हुई है. लेकिन इसके बावजूद आकाशीय बिजली से मरने वालों की संख्या (People Died Due To Lightning in Bihar) कम नहीं हो रही है. इस साल अब तक लगभग 200 का आंकड़ा पहुंच चुका है. आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों के अनुसार बिहार में 7 सालों में सोलह सौ लोगों की जाने आकाशीय बिजली गिरने के कारण गई है. अब डॉप्लर रडार और अर्थ नेटवर्क सेंसर लगने से काफी पहले जानकारी मिल जा रही है लेकिन उसके बाद भी लोगों की मौतें रूक नहीं रही है.

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वज्रपात से 7 साल में सोलह सौ लोगों की मौत : बिहार में आकाशीय बिजली यानी वज्रपात से लोगों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है. बिहार सरकार की ओर से वज्रपात की जानकारी के लिए पटना सहित खगड़िया, रोहतास, नवादा, पूर्वी चंपारण, दरभंगा और पूर्णिया में कुल आठ अर्थ नेटवर्क सेंसर लगाए गए हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से पटना, गया, दरभंगा में अलग से अर्थ नेटवर्क सेंसर लगे हुए हैं. मौसम विभाग बिहार सरकार (Meteorological Department Government of Bihar) का आपदा विभाग और सूचना जनसंपर्क विभाग के तरफ से यह लगातार दावा होता रहा है कि 3 घंटा पहले वज्रपात और मौसम की जानकारी मुहैया कराई जा रही है.

वज्रपात से नहीं थम रहा मौतों का सिलसिला : आकशीय बिजली से लोगों को जानकारी मिले इसके लिए बिहार सरकार की ओर से विशेष रूप से इंद्रव्रज ऐप बनाया गया है, तो वहीं भारत सरकार का दामिनी ऐप भी है. ऐप के माध्यम से किलोमीटर की परिधि में आकाशीय बिजली गिरने की स्थिति में 40 से 45 मिनट पूर्व सूचना मिल जाती है. लोगों को सूचना देने के लिए रेडियो, टेलीविजन, विभिन्न प्रचार माध्यमों की मदद लेने की बात कही जाती रही है. लेकिन सच्चाई यही है कि इस बार बिहार में मानसून कमजोर है. बारिश कम हो रही है लेकिन अकाशीय बिजली से मरने वाले लोगों की संख्या 200 के करीब पहुंच गई है और इसमें से 90 फीसदी से अधिक ग्रामीण इलाकों में मौत हो रही है. मरने वालों में सबसे अधिक किसान और मजदूर है.

ईटीवी Gfx.
ईटीवी Gfx.

लोगों को जागरुक करने की कवायद : बिहार सरकार का आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Disaster Management Authority of Bihar Government) और ए एन सिन्हा इंस्टिट्यूट लगातार प्रशिक्षण का कार्यक्रम पिछले कई सालों से चला रहा है. जिसमें पंचायत स्तर से राज्य स्तर तक अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई है. इसमें कई सुझाव भी दिए जाते रहे हैं. विशेषज्ञ विद्यार्थी विकास का कहना है कि आकाशीय बिजली से बचाव के लिए लगातार सरकार प्रशिक्षण का कार्यक्रम चला रही है. पंचायत स्तर पर कम्युनिटी वॉलंटियर भी तैयार किए गए हैं. अब आवश्यकता हैंड मेड तड़ित चालक लगाने की है. इसके लिए सरकार को आदेश देना होगा, जिससे लोकल स्तर पर अधिकारी लगा सकें.

'एक हैंड मेड तड़ित चालक 1 किलोमीटर एरिया को कवर कर सकता है. खासकर मैदानी इलाकों में यह बहुत ही कारगर हो सकता है. पंचायत भवन, स्कूल और जितने भवन हैं, उसके साथ-साथ खेती के दूरदराज इलाकों में भी तड़ित चालक लगाकर लोगों की जान-माल बचाया जा सकता है. दूसरा सायरन सिस्टम की व्यवस्था है लेकिन सायरन ऐसी होनी चाहिए कि किसानों तक उसकी आवाज पहुंच सके अभी नहीं पहुंच रहा है और इसी के कारण उनकी मौत हो रही है.' - डॉ विद्यार्थी विकास, विशेषज्ञ एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट

तमाम उपायों के बाद भी मौतों का बढ़ता आंकड़ा : बिहार सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन विभाग सूचना एवं जनसंपर्क विभाग विभिन्न माध्यमों से लोगों तक आकाशीय बिजली की पूर्व सूचना देने का दावा किया जाता रहा है. लेकिन सच्चाई यही है कि जहां तक यह सूचना पहुंचना चाहिए वहां पहुंच नहीं रही है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मंत्री संजय झा का कहना है कि- 'मुख्यमंत्री लगातार इसकी समीक्षा करते रहे हैं और आपदा विभाग को पहले भी कई निर्देश दिया गया है. विभाग के साथ-साथ सरकार की मंशा है कि लोगों की जान और माल की सुरक्षा हो उसके लिए प्रयास भी किया जा रहा है.' - संजय झा, मंत्री, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग

आकाशीय बिजली गिरने से जान-माल को भारी नुकसान : भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिक आनंद शंकर ने बातचीत में कहा कि 45 मिनट पूर्व सूचना आकाशीय बिजली की हम लोग भारत सरकार के दामिनी एप पर भी डाल देते हैं. इसके अलावा 3 घंटा पहले वेदर अलर्ट भी जारी करते हैं उसमें भी आकाशीय बिजली की चेतावनी दी जाती है लेकिन सच्चाई यही है किसानों को इसकी जानकारी नहीं मिल पाती है. यहां तक कि उन्हें तो यह भी पता नहीं है कि मौसम विभाग भी है उनके लिए कोई ऐप भी काम कर रहा है.

पिछले 7 साल का आंकड़ा देखें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी आकाशीय बिजली से हर साल लोग मर रहे हैं-


वर्ष मौत
2016 114
2017 180
2018 140
2019 253
2020 459
2021 280
2022 200 (अब तक)

राजधानी में भी आकशीय बिजली कई लोगों की मौत : 2020 में 459 लोगों की मौत आकाशीय बिजली से हुई थी और उसके बाद 2021 में संख्या घटी इस साल भी 200 के करीब पहुंच चुका है और अभी 2 महीने का समय बचा है. राजधानी पटना में भी 2016 में 7, 2017 में 9, 2018 में 4, 2019 में 5, 2020 में 19, 2021 में 19 और इस साल भी एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. पटना में आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी के अनुसार पालीगंज, दुल्हिन बाजार, फतुहा, बख्तियारपुर, बाढ़, पंडारक और मोकामा प्रखंड अधिक प्रभावित रहे हैं. आकाशीय बिजली, वज्रपात या ठनका से बचाव के लिए आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से कई उपाय बताए गए हैं.-

आकाशीय बिजली से बचने के उपाय-
1. वज्रपात की आशंका होने पर खुले में न रहे
2. खेती से जुड़े कार्यों को तत्काल बंद कर देना चाहिए
3. तालाब नदी नहर या किसी भी जल निकाय में जानवरों को धोने या मछली पकड़ने गए हो तो कार्य बंद कर दें
4. नौका का परिचालन भी बंद कर देना चाहिए
5. घर में छत पर नहीं जाना चाहिए. साथ ही घर में खिड़की के पास या दरवाजे के बाहर खड़ा नहीं होना चाहिए.
6. बिजली के उपकरणों के प्लग निकाल देनी चाहिए

बिजली गिरने से किसानों की मौत : ऐसे तो सबसे अधिक मौत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में होती है. पिछले कुछ सालों से भारत सरकार और राज्य सरकारों ने इसे गंभीरता से भी लिया है. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने 2017 में पुणे के मौसम वैज्ञानिक गोपाल कृष्ण को इस पर बातचीत के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया था. उस समय कई राज्यों में सेंसर लगे हुए थे. आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र में इस पर काम हो रहा था और उसके बाद बिहार की ओर से अर्थ नेटवर्क सेंसर लगाने की पहल हुई और आज 11 स्थानों पर अर्थ नेटवर्क सेंसर काम कर रहा है. जिससे ससमय सूचना मिल रही है. साथ ही पटना में लगे डॉप्लर रडार से भी काफी सटीक जानकारी मिल रही है लेकिन उसे सही ढंग से लोगों तक पहुंचाने में सरकार सफल नहीं हो पा रही है. बिहार में भागलपुर, कैमूर, जमुई, बांका, गया, औरंगाबाद, नवादा, पूर्वी चंपारण और बक्सर में सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं.

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