दाने-दाने के लिए क्यों मोहताज हुआ श्रीलंका, क्या राजपक्षे ब्रदर्स हैं जिम्मेदार?

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Published : Apr 4, 2022, 6:07 PM IST

Sri Lanka Economic Crisis

पड़ोसी देश श्रीलंका की अर्थव्यवस्था घुटनों के बल रेंग रही है. हालत यह है किआर्थिक तंगी और बदहाली से परेशाम आम नागरिक सड़कों पर आ गए हैं. श्रीलंका के नागरिक राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के खिलाफ उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं. देश में करीब एक साल पहले से ही आर्थिक आपातकाल लागू है. आशंका जताई जा रही है कि दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे श्रीलंका का वित्तीय संकट मानवीय संकट में भी तब्दील हो सकता है. जानिए क्यों हुई ऐसी हालत.

नई दिल्ली : 1948 में ब्रिटेन से आज़ादी मिलने के बाद श्रीलंका की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. पेट्रोल-डीजल से लेकर दूध, राशन, दवा इतनी महंगी हो गई हैं कि लोग खरीद नहीं पा रहे हैं. श्रीलंका में पेट्रोल और डीजल खत्म हो चुका है. श्रीलंका में पेट्रोल 254 रुपये प्रति लीटर और 1 किलो दूध 263 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है. एक ब्रेड की कीमत फिलहाल 150 रुपये है. 710 रुपये में एक किलो मिर्च और 200 रुपये में एक किलो आलू मिल रहा है. श्रीलंका में डॉलर की कीमत 300 रुपये हो गई है. ब्लैक मार्केट में एक डॉलर 400 रुपये में मिल रहा है.

नेशनल कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2022 में महंगाई दर एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 18.7 फीसदी पर पहुंच गई है. राशन की दुकानों में लंबी लाइन लगने के बाद भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि राशन मिल ही जाए. रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के कारण दुनिया भर में कच्चे तेल के दामों को रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. श्रीलंका के पास इतने पैसे नहीं बचे हैं कि बड़े स्तर पर तेल की खरीद कर सके. डीजल की किल्लत होने की वजह से सारे बड़े पावर प्लांट बंद हो गए हैं. अब वहां 13-14 घंटों तक बिजली गुल रहती है.

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बेकाबू महंगाई से परेशान श्रीलंका के नागरिकों ने कोलंबो में हिंसक प्रदर्शन किया था. फाइल फोटो

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, करीब तीन साल पहले श्रीलंका के पास पहले श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था.जुलाई 2021 में महज 2.8 बिलियन डॉलर रह गया था. पिछले साल नवंबर तक 1.58 बिलियन डॉलर ही बचा था. जबकि श्रीलंका को 2022 में 7 .3 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज चुकाना है, जिसमें 5 अरब डॉलर चीन का है. हालत यह है कि वह अपने कर्जों का ब्याज का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है. श्रीलंका कच्चे तेल और अन्य चीजों के आयात पर एक साल में खर्च 91 हजार करोड़ रुपये खर्च करता है. यानी अब पीएम महिंदा राजपक्षे की सरकार विदेशों से कुछ खरीदने की हालत में नहीं है.

जनता इस हालात के लिए राजपक्षे सरकार की नीतियों को जिम्मेदार मान रही है. उग्र आंदोलन के कारण देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है. सरकार ने शहरों में कर्फ्यू लगा दिया है और सोशल मीडिया पर भी पाबंदी लगा दी है. इकोनॉमिक क्राइसिस से उबरने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने विपक्ष को सरकार में शामिल होने का न्योता दिया है. इससे पहले रविवार को देश के सभी 26 मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि इसके बाद चार नए मंत्री भी बनाए गए. इस नए मंत्रिमंडल में राष्ट्रपति ने अपने भाई और पिछली कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे बासिल गोटाबाया को जगह नहीं दी है. इस बीच श्रीलंका के केंद्रीय बैंक गवर्नर अजित निवार्ड काबराल ने सोमवार को ट्विटर के जरिए अपने इस्तीफे की घोषणा की है.

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श्रीलंका की सरकार अब तक 600 प्रदर्शनकारी को गिरफ्तार कर चुकी है.

चीन के कर्ज के जाल में फंसा श्रीलंका

श्रीलंका पर चीन, जापान, भारत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारी कर्ज है. एक्सपर्ट मानते हैं कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की हालत चीन के कर्ज के जाल में फंसने के कारण हुई. राजपक्षे सरकार सत्ता में आने के बाद चीन की करीबी बन गई. गोटबाया राजपक्षे की सरकार ने विकास कार्यों के लिए चीन से काफी लोन लिए. चीन भी इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के नाम पर लोन देता रहा. मगर श्रीलंका में लोन लिए गए पैसे का बंदरबांट हो गया. चीन को कर्ज नहीं चुका पाने के कारण हम्बनटोटा का बंदरगाह गिरवी रखना पड़ गया. इस पर चीन ने कब्जा कर लिया. श्रीलंका के कुल कर्ज में चीन की हिस्सेदारी 10 फीसदी है. जबकि खुदरा बाजार से श्रीलंकाई सरकार ने 40 फीसदी कर्ज ले रखा है. कर्ज देने में चीन के बैंकों की बड़ी हिस्सेदारी है.

पहले कोविड, फिर यूक्रेन युद्ध ने कमर तोड़ दी : श्रीलंका की जीडीपी में टूरिज्म की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा है. कोरोना महामारी की वजह से यह सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. कोविड की वजह से वहां के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट दर्ज की गई. रही सही कसर रूस और यूक्रेन के युद्ध ने पूरी कर दी. लड़ाई के कारण यूरोप से आने वाले टूरिस्टों ने भी श्रीलंका से मुंह मोड़ लिया. रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है. युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने चाय की खरीद बंद कर दी. इससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई और अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त ही हो गई.

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सरकार के खिलाफ आंदोलन में एक दिन के नवजात को सांकेतिक तौर पर शामिल किया गया.

आर्गेनिक खेती की जिद से बढ़ा खाद्य संकट : राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका को 100 फीसदी आर्गेनिक खेती वाला दुनिया का पहला देश बनाने की जिद ठान ली. इसके बाद सरकार ने खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया, जिससे किसानों को डबल रेट में ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर खरीदना पड़ा. आर्गेनिक खेती के चलते देश की सारी खेती चौपट हो गई. खेती में लागत बढ़ने के कारण कृषि उत्पादन में कमी आ गई . कई इलाकों में कृषि उत्पादन 40 से लेकर 60 प्रतिशत तक गिर गया. श्रीलंका के लोकल मार्केट से आने वाले फसल, दलहन और तिलहन की आवक अचानक कम हो गई. अनाज की कमी को श्रीलंका सरकार ने आयात से पूरा करने का फैसला किया, इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर अचानक दबाव बढ़ गया.

कोरोना के बाद टैक्स में कटौती : 2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने टैक्स कम कर दिया था. इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ. सरकार का राजस्व एक तिहाई राजस्व खत्म हो गया. घाटे को भरने के लिए सरकार ने नोट छापने शुरू कर दिए. एक्सपर्ट इसे सबसे बड़ा भूल मानते हैं.

फिलहाल श्रीलंका अब एक संकट के मुहाने पर खड़ा है. जिस पर अगर काबू नहीं पाया गया तो उसका भारत के सुरक्षा हालात पर गंभीर असर होगा. एक तो श्रीलंका से आने वाले शरणार्थियों का बोझ भारतीय इकोनॉमी को उठाना होगा. दूसरा, इस मौके का उपयोग चीन अपने पक्ष में कर सकता है. कर्ज के जाल में उलझे श्रीलंका के लिए चीन की फिसलने की संभावना हमेशा बनी रहेगी. भारत नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत श्रीलंका को एक बिलियन डॉलर की लोन देने की घोषणा की है. फरवरी में भी भारत सरकार ने कोलंबो को पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद में मदद करने के लिए 50 करोड़ डॉलर का लोन दिया था. इसके अलावा वहां खाद्यान्नों की आपूर्ति भी कर रहा है.

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