जाते-जाते मिसाल दे गए शरद यादव, नदी में नहीं बहाई गई अस्थियां, मृत्यु भोज के भी खिलाफ

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Published : Jan 16, 2023, 10:26 PM IST

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मध्यप्रदेश की धरती से अपनी राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव कुछ नियमों के पक्के थे. वे लिंग भेद के खिलाफ थे. वहीं उन्होंने अपनी अस्थियों को भी नदी में बहाने से भी मना किया था. इसके अलावा एक और खास बात जो शरद यादव को अलग बनाती है, वे मृत्यु भोज के भी खिलाफ थे.

भोपाल। समाजवादी नेता शरद यादव ने जिस तरह से लीक से हटकर अपना जीवन जिया. देह त्याग देने के बाद भी उन्होंने कई परंपराएं तोड़ी और जीवन से मुक्ति का मार्ग भी उन्होंने समाजवादी ढंग से ही तय किया. शरद यादव के होशंगाबाद जिले में स्थित पैतृक गांव आंखमऊ में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ. शरद यादव लिंग भेद के खिलाफ थे, लिहाजा उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक मुखाग्नि और अंतिम संस्कार में उनके बेटे शांतनु और बेटी सुभाषिनी दोनों शामिल हुए. दोनों बहन भाई ने साथ मिलकर मुखाग्नि दी. इसी तरह इच्छा के मुताबिक उनकी अस्थियां नदी के बजाए जन्मभूमि बाबई और कर्मभूमि मधेपुरा की मिट्टी में दबाई जाएंगी. जाते जाते भी शरद यादव समाज और सियासत को मिसाल दे गए.

Ashes of Sharad Yadav buried in Madhepura
खेत की मिट्टी में दबा दी अस्थियां

मिट्टी में दबा दी जाएं मेरी अस्थियां: संस्कार में अमूमन अग्निसंस्कार की राख और अस्थियां नदियों में बहा दी जाती है. लेकिन समाजवादी नेता शरद यादव इस मामले में भी अलग थे. उनका कहना था कि राख और अस्थियों से नदी प्रूदषित होती है. लिहाजा उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ये कह दिया था कि उनकी अस्थियां और राख को नदी में नहीं बहाया जाएगा. दिवंगत समाजवादी नेता शरद यादव का अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से बेहद लगाव था. उनकी इच्छा थी कि जब वे देह छोड़ें तो उनकी अस्थियों को नदी में बहाने की बजाए, उनकी जन्मभूमि बाबई और कर्मभूमि मधेपुरा में जमीन के अंदर दबा दिया जाए. उनका मानना था कि अस्थियों को नदी में बहाने से वह दूषित होती हैं और यह प्रकृति के विरुद्ध है. लिहाजा उनकी भावनाओं के मुताबिक ही उनकी अस्थियों को दो कलश के भीतर संग्रहित किया गया. एक कलश उनके पैतृक गांव में जहां उनका दाहसंस्कार हुआ है, वहां स्थापित कर दिया गया है और दूसरे कलश को उनकी कर्मभूमि मधेपुरा पटना से सड़क मार्ग से लेकर जाया जाएगा. ताकि उनके समर्थक अपने नेता के अंतिम दर्शन कर सकें. उसके बाद मधेपुरा में ये कलश जमीन के भीतर दबा दिया जाएगा. शरद यादव की पत्नी डॉ रेखा यादव बेटी सुभाषिनी और बेटे शांतनु की ओर से ये जानकारी दी गई है.

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बेटे और बेटी ने दी मुखाग्नि

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बेटे बेटी ने मिलकर किया अंतिम संस्कार: दिवंगत नेता शरद यादव पूरे जीवन लिंग भेद के खिलाफ रहे. उनकी बेटी सुभाषिनी का कहना है कि उनका हमेशा ये मानना था कि लड़का और लड़की में फर्क नहीं होना चाहिए. उन्हें समान अधिकार मिलना चाहिए. वे कहते थे कि उन्हें जब मुखाग्नि दी जाए तो उनके बेटे के साथ उनकी बेटी भी इसमें शरीक हो. दोनों अपने हाथों से मुखाग्नि दें. सुभाषिनी ने कहा कि इसीलिए उनकी इच्छा अनुरुप हम बहन भाई ने साथ मिलकर मुखाग्नि दी.

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मृत्यु भोज के खिलाफ थे शरद यादव: शरद यादव की बेटी सुभाषिनी के मुताबिक पिता शरद यादव मृत्यु भोज के भी खिलाफ थे. उनके मुताबिक इससे समाज में खाई बढ़ती है. जो सक्षम है, वो भोज का आयोजन कर लेते हैं और फिर गरीबों को भी इसका अनुसरण करना पड़ता है. यही वजह है कि गरीबों पर मृत्यु के शोक में भी कर्ज और आर्थिक दबाव बढ़ जाता है. सुभाषिनी ने बताया कि पिताजी की इच्छा के मुताबिक हमने मृत्यु भोज का कार्यक्रम नहीं रखने का निर्णय लिया है. दिल्ली में मृत्यु भोज के बजाए शोक बैठक का आयोजन किया जाएगा.

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