बिहार में पकड़ुआ विवाह: हर साल औसतन 3000 मामले होते दर्ज, जानें इसके पीछे का सच

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Published : Feb 4, 2022, 5:43 PM IST

बिहार

बिहार में पकड़ुआ विवाह का प्रचलन एक बार फिर बढ़ा है. विवाह के मौसम में उत्तरी बिहार के कुछ जिलों में जबरन शादी की प्रथा है. स्थानीय लोगों के सहयोग से विवाह को वैधानिक जामा पहना दिया जाता है. पुलिस को तब भनक लगती है जब विवाह कार्यक्रम संपन्न हो चुका होता है. बिहार में औसतन हर साल 3000 जबरन शादी की घटनाएं होती है.

पटना : बिहार में पकड़ुआ विवाह (forced marriage practice in Bihar) में एक बार फिर तेजी आई है. उत्तरी बिहार के कुछ जिले पकड़ुआ विवाह के लिए चिह्नित भी हैं. बेगूसराय के अलावा समस्तीपुर, खगड़िया जिले में ऐसे मामले ज्यादा दर्ज होते हैं. हर साल औसतन 3000 से ज्यादा पकड़ुआ विवाह के मामले (cases of forced marriage practice in bihar) दर्ज होते हैं.

बेगूसराय के अलावा मोकामा, पंडारक, बाढ़, बख्तियारपुर और खगड़िया जिले में पकड़ुआ विवाह बहुतायत होते हैं. पकड़ुआ विवाह में गांव या परिवार के दबंग लोग किसी संभ्रांत और सुखी परिवार के युवक को बहला-फुसलाकर या फिर हथियार के बल पर अपहरण कर लेते हैं और फिर हिंदू विधि विधान से उसकी शादी जबरन करायी जाती है. विरोध करने पर कई बार युवक की पिटाई भी की जाती है.

बिहार में फिर चला पकड़ुआ विवाह की प्रथा

बिहार में पकड़ुआ विवाह के मामलों पर डालें एक नजर :-

केस-1 : 30 जनवरी को समस्तीपुर का युवक अपनी बहन के ससुराल में गया तो उसकी जबरदस्ती शादी करा दी गई. दुल्हन कोई और नहीं बल्कि उसके जीजा की बहन थी. युवक जब घर लौटा तो कोहराम मच गया.

केस-2 : 29 जनवरी को बेगूसराय में एक युवक जब अपनी प्रेमिका से मिलने गया तो स्थानीय लोगों ने और दबंगों ने मिलकर उसकी शादी उसी लड़की से करा दी. विदाई में लड़के को ये सख्त हिदायत दी गई कि अगर उसने लड़की को जरा भी नुकसान पहुंचाया तो अंजाम बुरा होगा.

केस-3 : साल 2021 में छठ के दौरान एक युवक प्रसाद देने बहन के घर गया हुआ था. उसके रिश्तेदारों ने वहीं पकड़ लिया और उसकी बिना घर वालों और उसकी रजामंदी से शादी करा दी.

केस-4 : नवादा में भी एक युवक को शादी समारोह में बंधक बना लिया. जब उसने विरोध किया तो उसे लोगों ने खूब पीटा. बेहोशी की हालत में उसकी शादी करा दी गई. लड़के को होश आया तो उसने खुद को अस्पताल में पाया. ये मामला साल 2019 का है. पकड़ुआ विवाह में नाते रिश्तेदारों की भूमिका होती है.

ज्यादातर मामलों में हथियार का भय दिखाकर शादी संपन्न करा दिया जाता था. उसके बाद दूल्हा-दुल्हन की विदाई कर दी जाती थी. दबाव के बाद कई मामलों में विवाह को सामाजिक मान्यता भी दे दी जाती थी. 1970 से 90 के दशक में पकड़ुआ विवाह का प्रचलन बहुत ज्यादा था. अगर गांव में किसी कुंवारे की नौकरी लग जाती थी, तो परिवार वाले उसे नाते रिश्तेदार या फिर घर से बाहर निकलने से मना कर देते थे.

बिहार में पकड़ुआ विवाह के औसतन 3000 केस : बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 में पकड़ुआ विवाह से संबंधित 2526 मामले दर्ज हुए. वहीं, साल 2015 में 3000 पकड़ुआ विवाह की घटनाएं दर्ज की गईं. वहीं, साल 2016 में 3070 मामले दर्ज कराए गए थे. इधर, साल 2017 में 3405 शादी के लिए अपहरण की घटनाएं दर्ज की गईं. औसतन तीन हजार ऐसी घटनाएं बिहार में होती हैं. बिहार में 70 प्रतिशत अपहरण की घटनाएं साधना या प्रेम प्रसंग से संबंधित होती हैं.

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पर्दे पर पकड़ुआ विवाह : हाल के दिनों में बेगूसराय, लखीसराय और खगड़िया में पकड़ुआ विवाह के लिए अपहरण की घटनाएं सामने आई हैं. पकड़ुआ विवाह को लेकर कई फिल्में भी बनी हैं. 'अंतर्द्वंद' फिल्म भी पकड़ुआ विवाह को लेकर बनाई गई है. जिसमें लड़की को विरोध करते दर्शाया गया है.

क्या कहते हैं जानकार? : एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्राध्यापक डॉ विपुल कुमार का मानना है कि पकड़ुआ विवाह फ्यूडल सोसाइटी की देन है. यह दहेज प्रथा का प्रतिफल है. दहेज प्रथा राजघरानों से शुरू हुई और यह गरीबों तक पहुंच गई हैं. ऐसे परिवारों को उन्हें अपनी बेटी की शादी करनी होती है तो वैसे ही स्थिति में वह पकड़ुआ विवाह का सहारा लेते हैं. समाज के दबंग लोग उन्हें सहयोग भी करते हैं.

पकड़ुआ विवाह एक चुनौती : बुद्धिजीवी डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि पकड़ुआ विवाह सभ्य समाज के सामने बड़ी चुनौती है. लड़का और लड़की दोनों के लिए स्थिति नारकीय हो जाती है. कई बार मामला कोर्ट तक पहुंच जाता है. आर्थिक रूप से जो संपन्न नहीं होते हैं, वही पकड़ुआ विवाह का सहारा लेते हैं. बाद में विवाह को सामाजिक मान्यता भी दे दी जाती है.

पकड़ुआ विवाह की वजह : ऐसे विवाह को प्रोत्साहन उन इलाकों में मिलता है जहां बेहद गरीबी है. लड़की पक्ष अगर सक्षम नहीं होता है, तो वैसी स्थिति में किसी होनहार, धनाढ्य या नौकरी पेशे वाले लड़के की पहचान कर अपहरण कर लिया जाता है और उसकी शादी करा दी जाती है. ऐसे विवाह में रिश्तेदारों की भूमिका अहम होती है. बाद में सामाजिक मान्यता भी मिल जाती है.

पकड़ुआ विवाह में रिश्तेदारों की भूमिका : वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि पकड़ुआ विवाह में नाते रिश्तेदारों की भूमिका होती है. ऐसी स्थिति समाज में आर्थिक विषमता और सामाजिक जकड़न की वजह से आती है. दान दहेज नहीं दे पाने की स्थिति में लोग बेटी का पकड़ुआ विवाह कराते हैं. भले ही कई बार उसके नतीजे नकारात्मक क्यों ना निकले, आज की परिस्थितियों लड़का-लड़की की सोच एडवांस होने की वजह से पहले के मुकाबले पकड़ुआ विवाह में कमी आई है.

पकड़ुआ विवाह एक सामाजिक बुराई : इस विवाह से सबसे ज्यादा लड़का-लड़की को नुकसान उठाना पड़ता है. लड़की के पिता कम खर्च में लड़की को अच्छे घर में विदा कर देते हैं. लेकिन ससुराल पहुंचकर लड़की का जीवन नर्क बन जाता है. ससुराल में उसे कोई पसंद नहीं करता. उसे घर में घुलने मिलने में काफी वक्त लगता है. इसके नाकारात्मक असर भी दिखाई देने लगते हैं. लड़की को पूरे जीवन काल में पति का प्यार नहीं मिल पाता. लड़का भी मानसिक रूप से परेशान रहता है. इसे सामाजिक साख से जोड़कर कभी कभी लड़का और लड़की की हत्या तक हो जाती है.

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