बिहार में नवविवाहिताएं मनाती हैं मधुश्रावणी का पर्व, जानें क्या है खासियत

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Published : Jul 31, 2019, 7:50 PM IST

मधुश्रावणी के पर्व में नवविवाहिता सुबह से शाम तक घूम-घूम कर बगीचों से फूल चुन कर लाती हैं.उसके बाद फूलों को मनोरम तरीकों से सजाती है. नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए भगवान की पूजा-अर्चना करती है. इस पर्व में और क्या कुछ खास है, पढ़ें पूरी खबर.

नई दिल्ली/दरभंगा: मिथिलांचल में वैसे तो कई लोक पर्व हैं, जिसे यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें से एक है मधुश्रावणी. मिथिलांचल में मधुश्रावणी की एक अलग ही अहमियत है. ब्राह्मण और कायस्थ जाती में वर्ष भर की जितनी भी नवविवाहिता हैं, वो बड़े ही शौक से अपने पति के अखंड सौभाग्य रक्षा और दीर्घायु की कामना से मधुश्रावणी पूजन करती हैं.

मधुश्रावणी मनाती नवविवाहिता से हुई बातचीत

बगीचों से फूल चुन कर लाती हैं
इस दौरान नवविवाहिता सुबह से शाम तक घूम-घूम कर बगीचों से फूल चुन कर लाती हैं और उसे मनोरम तरीकों से सजाती है. इसके साथ ही दर्जनों की संख्या में एकजुट होकर भगवान के गीतों को गाते हुए मंदिर में पूजा पाठ करती हैं. पूजा अर्चना के बाद वे अपने सजे फूलों के थाल को लेकर अपने घर आती हैं और पूरी विधि विधान से अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करती हैं. इसमें नवविवाहिता को उसके परिवार वाले भी सहयोग करते हैं.

madhushravani festival in bihar etv bharat
नवविवाहिताओं द्वारा सजाए गए फूल

मधुश्रावणी के दिन पति अपनी पत्नी को पुनः करते हैं सिंदूरदान
दरअसल, संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में नवविवाहिता का मधुश्रावणी पर्व जारी है. इसका समापन तीन अगस्त को अंतिम पूजा के साथ होगा. उस दिन नवविवाहिता के पति की लंबी आयु के लिए दीप से दागने की रस्म पूरी की जाएगी. मधुश्रावणी के दिन पति अपनी पत्नी को पुनः सिंदूरदान करते हैं. जिससे मिथिलांचल में तृतीय सिंदूरदान के नाम से जाना जाता है. प्रथम सिंदूरदान विवाह के दिन, दुतीय चतुर्थी विवाह के दिन और तृतीय सिंदूरदान मधुश्रावणी के दिन करने की प्रथा मिथिलांचल में प्रसिद्ध है.

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प्रत्येक दिन बासी फूल से पूजा किए जाने का है रिवाज
इस दौरान नवविवाहिता अपनी सखियों के संग सोलह सिंगार कर फूल लोढ़ती हैं और लोढ़े गए फूल को किसी देव स्थल पर एकत्रित होकर डाला में सजाती हैं. प्रत्येक दिन नवविवाहिता अहले सुबह उठकर विषहरा की पूजा करती है. इस बीच महिलाएं गौरी पूजा, भगवती गीत, विषहरा पूजा सहित अन्य देवी देवताओं के गीत भी गाती हैं. जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है. इस पूजा में प्रत्येक दिन बासी फूल से पूजा किए जाने का रिवाज है.

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मधुश्रावणी का पर्व मनाती नवविवाहित महिलाएं

13 से 15 दिनों तक चलती है यह पूजा
बता दें, सावन के नाग पंचमी से यह पूजा अर्चना शुरू होती है और यह पर्व सावन में 13 से 15 दिनों तक चलती है. इन दिनों नवविवाहिता अपने मायके का एक दाना तक नहीं खाती हैं. इस दौरान वो अपने ससुराल से आए खाद्य पदार्थ का सेवन करती हैं. विशेष नियम निष्ठा के तहत प्रत्येक दिन नवविवाहिता अरवा पदार्थ का ही सेवन करती हैं. इस पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसमें पुरुष पंडित के स्थान पर महिला पंडिताइन पूजा कराती हैं.

प्रतिदिन होती है अलग-अलग कथा
इस दौरान नवविवाहिता श्रद्धा भाव से पहले गौरी पूजा, फिर विषहर पूजन कर दूध, लावा आदि प्रसाद चढ़ाती है. साथ ही इस अवसर पर प्रतिदिन अलग-अलग कथा होती है. जिसका वाचन महिला पंडित ही करती है. कथा के समय नवविवाहिता सहित घर और पड़ोस की अन्य महिलाएं भी श्रद्धा भाव के साथ कथा सुनती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से मां पार्वती प्रसन्न होती हैं और उनके सुहाग की रक्षा करती हैं.

Intro:मिथिलांचल में वैसे तो कई लोक पर्व हैं, जिसे यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसमें से एक है मधुश्रावणी। मिथिलांचल में मधुश्रावणी की एक अलग ही अहमियत है। ब्राह्मण और कायस्थ जाती में वर्ष भर की जितनी भी नवविवाहिता हैं, बड़े ही चाव से अपने अखंड सौभाग्य रक्षा एवं पति के दीर्घायु की कामना से मधुश्रावणी पूजन करती हैं।

इस दौरान सुबह से शाम तक घूम घूम कर नवविवाहिता बगीचों से फूल चुन कर लाती है और उसे मनोरम तरीकों से सजाती है और दर्जनों की संख्या में एकजुट होकर भगवान के गीतों को गाते हुए मंदिर में पूजा पाठ करती है। पूजा अर्चना के उपरांत वे अपने सजे फूलों के थाल को लेकर अपने घर आती है और पूरी विधि विधान से अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करती है। इसमें नवविवाहिता को उसके परिवार वाले भी सहयोग करते हैं।




Body:दरअसल संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में नवविवाहिता का मधुश्रावणी पर्व शुरू हो गया है। जिसका समापन 3 अगस्त को अंतिम पूजा के साथ होगा। उस दिन नव विवाहिता के पति की लंबी आयु के लिए दीप से दागने की रस्म पूरी की जाएगी। मधुश्रावणी के दिन पति अपनी पत्नी को पुनः सिंदूरदान करते हैं। जिससे मिथिलांचल में तृतीय सिंदूरदान के नाम से जाना जाता है। प्रथम सिंदूरदान विवाह के दिन, दुतीय चतुर्थी विवाह के दिन एवं तृतीय सिंदूरदान मधुश्रावणी के दिन करने की प्रथा मिथिलांचल में प्रसिद्ध है।

इस दौरान नवविवाहिता ने अपनी सखियों के संग सोलह सिंगार कर फूल लोढती है और लोढ़े गए फूल को किसी देव स्थल पर एकत्रित होकर डाला में सजती है। प्रत्येक दिन नवविवाहिता अहले सुबह उठकर विषहरा की पूजा करती है। इस बीच महिलाएं गौरी पूजा, भगवती गीत, विषहरा पूजा सहित अन्य देवी देवताओं के गीत भी गाती है। जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। इस पूजा में प्रत्येक दिन बासी फूल से पूजा किए जाने का रिवाज है।





Conclusion:सावन के नाग पंचमी से यह पूजा अर्चना शुरू होती है और यह पर्व सावन में 13 से 15 दिनों तक चलता है। इन दिनों नवविवाहिता अपने मायके का एक दाना तक नहीं खाती है। इस दौरान नवविवाहिता अपने ससुराल से आए खाद्य पदार्थ का सेवन करती है। विशेष नियम निष्ठा के तहत प्रत्येक दिन नवविवाहिता अरवा पदार्थी ही सेवन करती है। इस पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसमें पुरुष पंडित के स्थान पर महिला पंडिताइन पूजा कराती है।

इस दौरान नवविवाहिता श्रद्धा भाव से पहले गौरी पूजा, फिर विषहर पूजन कर दूध, लावा आदि प्रसाद चढ़ाती है। साथ ही इस अवसर पर प्रतिदिन की अलग-अलग कथा होती है। जिसका वाचन महिला पंडित ही करती है। कथा के समय नवविवाहिता सहित घर व पड़ोस की अन्य महिला महिलाएं भी श्रद्धा भाव के साथ कथा सुनती है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से मां पार्वती प्रसन्न होती है और उनके सुहाग की रक्षा करती है।

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गीता झा, नवविवाहिता
रूपी मिश्रा, परिजन


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