WMO ने वैश्विक चेतावनी जारी की: CO₂ में ऐतिहासिक बढ़ोतरी, तापमान के पैटर्न में बदलाव
WMO के 21वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है.

Published : October 16, 2025 at 5:43 PM IST
सुरभि गुप्ता
नई दिल्ली: प्लेनेट एक अज्ञात क्षेत्र में प्रवेश कर गया है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अनुमान लगाया था कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा, जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों से प्रतीकात्मक +1.5°C के मील के पत्थर को पार कर जाएगा और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में +3.5 भाग प्रति मिलियन (ppm) की वृद्धि के साथ नई ऊंचाइयों को छूएगा. यह ऊंचाई 1957 में वायुमंडल की आधुनिक निगरानी शुरू होने के बाद से नहीं देखी गई है.
WMO के 21वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने ब्राजील के बेलेम में COP30 से पहले वैज्ञानिकों और नीति समुदाय दोनों को चौंका दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है, और उत्सर्जन को कम करने की प्लेनेट की प्राकृतिक क्षमता कमजोर हो रही है, जिससे गर्मी और प्रतिकूल मौसम का एक सेल्फ-रीइंफोर्समेंट साइकल शुरू हो सकता है.
रिकॉर्ड तोड़ तापमान
2024 में भूमि और समुद्र की सतह का तापमान असाधारण रूप से बढ़ा है और महासागर अपने उच्चतम रिकॉर्ड तापमान तक पहुंच गए. WMO के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वृद्धि जीवाश्म ईंधन के बढ़ते दहन, अल नीनो के कारण बढ़े सूखे और भीषण जंगली आग के संयोजन के कारण हुई है, जिसने कार्बन सिंक को नष्ट कर दिया और संग्रहीत कार्बन को वापस हवा में छोड़ दिया.

WMO के उप महासचिव को बैरेट ने कहा, "CO₂ और अन्य ग्रीनहाउस गैसों द्वारा अवशोषित ऊष्मा हमारी जलवायु को गति प्रदान कर रही है और अधिक चरम मौसम की ओर ले जा रही है." उन्होंने चेतावनी दी, "एक डिग्री अतिरिक्त तापमान वृद्धि का हर दसवां हिस्सा मायने रखता है. अब हम जो देख रहे हैं, वह दशकों की देरी का नतीजा है."
प्राकृतिक कार्बन सिंक कम प्रभावी
वन और महासागर जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक कम प्रभावी होते जा रहे हैं, जिससे संभावित रूप से स्व-प्रबलित जलवायु परिवर्तन चक्र शुरू हो रहे हैं. जिनेवा में एक ब्रीफिंग में विश्व मौसम विज्ञान संगठन की वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी और बुलेटिन की प्रमुख लेखिका ओक्साना तरासोवा ने उस भयावह प्रतिक्रिया चक्र की रूपरेखा प्रस्तुत की जो अब आकार ले रहा है.

तरासोवा ने कहा, "यह गैस (CO₂) वायुमंडल में जमा हो जाती है. इसका जीवनकाल बहुत लंबा होता है और इसके उत्सर्जित होने वाले प्रत्येक अणु का वैश्विक प्रभाव पड़ता है." उन्होंने आगे कहा कि मानव द्वारा उत्सर्जित CO₂ का लगभग आधा हिस्सा जंगलों, जमीन और महासागरों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, लेकिन ये प्राकृतिक अवरोधक अब कमजोर होने के संकेत दे रहे हैं.
अल नीनो, जंगल की आग और कार्बन सिंक का कमजोर होना
रिपोर्ट 2024 में CO₂ की वृद्धि का मुख्य कारण लैंड इको सिस्टम द्वारा कार्बन अवशोषण में कमी और रिकॉर्ड तोड़ जंगल की आग को मानती है. 2023-2024 के अल नीनो पूर्वी प्रशांत महासागर के गर्म होने के कारण दुनिया भर में वर्षा और तापमान के पैटर्न में बदलाव आया.
दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय वन सूख गए, जिससे उनकी CO₂ अवशोषित करने की क्षमता कम हो गई. दक्षिणी अफ्रीका और उत्तरी ब्राजील में सूखे की स्थिति और भी बदतर हो गई, जबकि दक्षिण एशिया और यूरोप में भीषण गर्मी की लहरें चल पड़ीं. साथ ही जंगल की आग की गतिविधियां भी बढ़ गईं, जिससे अरबों टन CO₂ हवा में फैल गई.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार महासागर, जो कुल CO₂ उत्सर्जन का लगभग एक-चौथाई हिस्सा अवशोषित करते हैं, 2023 से 2024 तक रिकॉर्ड उच्च समुद्री सतह के तापमान के कारण कम कार्बन अवशोषित करेंगे.
वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया
WMO ने पुष्टि की है कि 1850 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से 2024 सबसे गर्म वर्ष होगा, जिसने 2023 में स्थापित रिकॉर्ड को तोड़ दिया. वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के औसत से लगभग 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जिससे यह 1.5 डिग्री सेल्सियस के निशान को पार करने वाला पहला कैलेंडर वर्ष बन गया, जो पेरिस समझौते के तहत एक प्रमुख मानदंड है.
भारत का बैलेंसिंग एक्ट: विकास बनाम ग्रीन रेस्पांसिबिलिटी
WMO के निष्कर्षों की भारत के जलवायु विशेषज्ञों ने कड़ी निंदा की और इस बात की याद दिलाई कि इस वैश्विक संकट के घरेलू स्तर पर कितने दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. 1.4 अरब की आबादी और पहले से ही बढ़ रही अर्थव्यवस्था के साथ, भारत के सामने चुनौती उत्सर्जन में कटौती करते हुए सतत विकास करना है.
पर्यावरणविद् और एक्सेल जियोमैटिक्स के सीईओ राजेश सोलोमन पॉल ने ईटीवी भारत को बताया, "भारत का तेजी से बढ़ता औद्योगीकरण, शहरों का विस्तार और बढ़ती ऊर्जा खपत वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन के महत्वपूर्ण फैक्टर हैं."

उन्होंने आगे कहा, "भारत के लिए निरंतर विकास आवश्यक है, लेकिन उत्सर्जन कम करने के लिए, भारत को कोयले से दूर जाने की प्रक्रिया में तत्काल तेजी लाने, उद्योग की दक्षता पर ध्यान देने और नवीकरणीय ऊर्जा, मीथेन कैप्चर और कम उत्सर्जन वाली कृषि में भारी निवेश करने की आवश्यकता है."
जलवायु परिवर्तन सलाहकार और टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रोफेसर एसएन मिश्रा ने विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के आंकड़ों को मानव उत्सर्जन को अवशोषित करने की प्रकृति की घटती क्षमता का एक स्पष्ट संकेतक बताया. उन्होंने कहा, "CO₂-समतुल्य सांद्रता में वृद्धि पूरे ग्रह से होने वाले उत्सर्जन का एक संचयी परिणाम है. भारत, हालांकि निरपेक्ष रूप से तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, वैश्विक प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में केवल एक-तिहाई का योगदान देता है और इस पैमाने पर वैश्विक स्तर पर 106वें स्थान पर है."
मिश्रा ने व्यवस्थित और व्यक्तिगत दोनों तरह की कार्रवाई का आग्रह करते हुए कहा, "उद्योगों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, पुनर्चक्रण सामग्री और अपने संचालन में स्थिरता को शामिल करके कार्बन-मुक्त होना चाहिए. व्यक्तियों को स्वच्छ सार्वजनिक परिवहन, कारपूलिंग और ऊर्जा-कुशल उपकरणों का चयन करना चाहिए. छोटे-छोटे कार्य मिलकर बड़े जलवायु लाभ में बदल सकते हैं."
भावरीन कंधारी के लिए यह संकट केवल एक गैस का नहीं, बल्कि एक प्रणालीगत असंतुलन का है. उन्होंने कहा, "हम ग्रीनहाउस गैसों को अलग-अलग नहीं समझ सकते. एक समग्र उत्सर्जन रणनीति, जिसमें CO₂, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड को शामिल किया जाए, अनिवार्य है. इसका अर्थ है कोयले पर अंकुश लगाना, उर्वरकों के उपयोग में सुधार, लैंडफिल गैस पर नियंत्रण और सभी क्षेत्रों में कम कार्बन उत्सर्जन को प्रोत्साहित करना है."
कंधारी ने तर्क दिया कि भारत का तेज़ी से बढ़ता शहरी विस्तार और बढ़ती ऊर्जा माँग, विशेष रूप से कोयला बिजली और वाहनों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन को बढ़ा रही है।
"नीति को विकास के साथ तालमेल बिठाना होगा। भारत को कड़े दक्षता मानदंड लागू करने चाहिए, स्वच्छ ईंधन को अनिवार्य बनाना चाहिए, कम कार्बन वाले शहरों का डिज़ाइन तैयार करना चाहिए, और जलवायु प्रभाव के लिए नई औद्योगिक परियोजनाओं की कड़ाई से जाँच करनी चाहिए। यह केवल व्यक्तियों के बारे में कम और संरचनात्मक परिवर्तन के बारे में अधिक है: राज्यों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है."
पर्यावरण संरक्षणवादी और सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के संस्थापक विक्रांत तोंगड़ ने नेट-जीरो के प्रति भारत के नपे-तुले लेकिन दृढ़ दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला. तोंगड़ ने कहा, "भारत दुनिया के टॉप पांच ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है, लेकिन वैश्विक उत्सर्जन में हमारी हिस्सेदारी सिर्फ 7 प्रतिशत है, जबकि चीन का 30 फीसदी, अमेरिका का 15 फीसदी, यूरोपीय संघ का 6 प्रतिशत और रूस का 6 पर्सेंट है. कुल मिलाक ये पांच देश वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 60 प्रतिशत से ज़्यादा का योगदान देते हैं."
विज्ञान: प्लेनेट अपनी शीतलता खो रहा है
WMO बुलेटिन इस त्वरण को प्रेरित करने वाले तंत्रों पर विस्तार से प्रकाश डालता है. औद्योगिक-पूर्व CO₂ स्तर (लगभग 278 ppm) वायुमंडल, महासागरों और स्थलीय जीवमंडल के बीच संतुलन का प्रतिनिधित्व करता था. 2024 में यह संतुलन पूरी तरह से टूट गया, और वायुमंडलीय CO₂ अब औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में 52% अधिक है. अवशोषित सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष में वापस विकीर्ण ऊष्मा के बीच का अंतर बढ़ रहा है, जिससे अधिक ऊष्मा फंस रही है और चरम घटनाएं तीव्र हो रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र के एक अलग विश्लेषण के अनुसार, भारत और यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी से लेकर चीन और ब्राज़ील में बाढ़ और कनाडा तथा अमेज़न में जंगल की आग तक, 2024 में 150 से अधिक अभूतपूर्व जलवायु आपदाएं देखी गईं.
COP30 से पहले एक चेतावनी
WMO की यह रिपोर्ट COP30 से कुछ हफ़्ते पहले आई है, जहां देशों से जलवायु संबंधी मजबूत प्रतिबद्धताएं पेश करने की उम्मीद की जाती है. यह एक वैज्ञानिक रिपोर्ट होने के साथ-साथ एक नैतिक मूल्यांकन भी है. WMO ने जोर देकर कहा, "जलवायु कार्रवाई का केंद्र बिंदु शुद्ध-शून्य मानवजनित CO₂ उत्सर्जन प्राप्त करना होना चाहिए."
संगठन ने देशों से ग्रीनहाउस गैस निगरानी प्रणालियों का विस्तार करने का भी आग्रह किया और कहा कि प्रगति की पुष्टि और फीडबैक लूप पर नज़र रखने के लिए विश्वसनीय डेटा आवश्यक है.
भारत के सामने दो चुनौतियां है. इनमें लाखों लोगों तक ऊर्जा की पहुंच और आर्थिक विकास सुनिश्चित करना. साथ ही स्वच्छ ऊर्जा की राह पर आगे बढ़ना शामिल है. देश ने पहले ही 190 गीगावाट से ज़्यादा नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित कर ली है और 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है, जो कुल बिजली उत्पादन का 50 प्रतिशत से ज़्यादा होगा.
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, हाइड्रोजन ऊर्जा और वनरोपण कार्यक्रम भी विकसित हो रहे हैं, हालांकि विशेषज्ञों का तर्क है कि ये कार्यक्रम कितनी अच्छी तरह से और कितनी तेज़ी से विकसित होते हैं, यही सफलता तय करेगा.
संकट के कगार पर प्लेनेट
हालांकि, आंकड़े निराशाजनक हैं. वैज्ञानिक इस बात पर अड़े हैं कि संकट अभी भी हल हो सकता है. तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की कमी से लोगों की जान बचेगी, विस्थापन कम होगा और इको सिसटम, समाजों की स्थिरता बढ़ेगी.प्लेनेट की गर्मी पहले कभी इतना ज़्यादा नहीं थी, लेकिन यह घातक होगा या अंतत इसका इलाज संभव होगा, यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि मानवता आगे क्या करती है.
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