नक्सली कमांडर भूपति उर्फ सोनू कौन है, महाराष्ट्र पुलिस के सामने सरेंडर क्यों किया, जानें
10 करोड़ रुपये के इनामी कुख्यात नक्सली भूपति ने अपने 60 साथियों के साथ महाराष्ट्र पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है.

Published : October 15, 2025 at 8:55 PM IST
नागपुर: सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों की जान लेने वाले नक्सली कमांडर भूपति ने आखिरकार महाराष्ट्र पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोनू एक दशक से भी ज्यादा समय तक नक्सली आंदोलन के रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता था. 10 करोड़ रुपये का इनामी कुख्यात नक्सली भूपति ने अपने 60 साथियों के साथ गढ़चिरौली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया.
भूपति तेलंगाना के पेद्दापल्ली का रहने वाला है. वह अर्थशास्त्र में स्नातक है. उसका बड़ा भाई किशनजी भी एक बड़ा नक्सली नेता था. 2011 में पश्चिम बंगाल में एक मुठभेड़ में वह मारा गया था. किशनजी की मौत के बाद, नक्सली आंदोलन को और आक्रामक बनाने वाला भूपति न केवल एक सैन्य कमांडर था, बल्कि उसे संगठन का 'दिमाग' और 'वैचारिक नेता' माना जाता है. 1980 के दशक में, वह रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन से नक्सलियों के पीपुल्स वार समूह में शामिल हो गया. उसने भाकपा (माले) पीपुल्स वार की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई. आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी और विशाखापट्टनम जिलों में नक्सली आंदोलन को स्थापित करने के बाद, 1987 में उसने बस्तर के जंगलों में पूर्व लिट्टे सैनिकों से विशेष सैन्य प्रशिक्षण लिया. बाद में, उसने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली आंदोलन की नींव रखने और दंडकारण्य क्षेत्र का नेतृत्व करने में प्रमुख भूमिका निभाई.

2004 में सीपीआई (माओवादी) के गठन के बाद, उसे संगठन की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था, पोलित ब्यूरो और केंद्रीय सैन्य कमान के प्रमुख का पद दिया गया. भूपति इस पद पर 28 वर्षों से अधिक समय तक कार्य किया. 2010 में प्रवक्ता आजाद की मृत्यु के बाद, उसने 'अभय' नाम से संगठन के मुख्य प्रवक्ता का पदभार संभाला. महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर प्लाटून गाइड के रूप में कार्य करते हुए, वह कई बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड रहा है.
प्रेम से विवाह तक
नब्बे के दशक में, भूपति ने गढ़चिरौली के अहेरी तालुका निवासी, एक साथी महिला नक्सली, विमला सिदाम उर्फ तारक्का से विवाह किया. तारक्का ने इसी साल 1 जनवरी को बीमारी का हवाला देते हुए आत्मसमर्पण कर दिया. 62 वर्षीय तारक्का दंडकारण्य विशेष जोनल कमेटी की सदस्य और दंडकारण्य संभाग की चिकित्सा टीम की प्रभारी थी. नक्सली आंदोलन में अपने 38 साल के करियर के दौरान वह एक बड़ा आतंक थी. उन्होंने 8 नवंबर, 2010 को लाहेरी-मालमपोदूर गांवों के बीच हुई मुठभेड़ का नेतृत्व किया था, जिसमें 17 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. उसने इसका वीडियो भी वायरल किया था. 13 सितंबर को, भूपति की भाभी सुजाता ने भी बीमारी का हवाला देते हुए मुख्यधारा को चुना. आंदोलन में रहते हुए ही सुजाता ने 1984 में किशनजी से विवाह कर लिया था. किशनजी की मृत्यु के बाद वह और अधिक सक्रिय हो गई.
पत्नी और परिवार के सदस्यों के आत्मसमर्पण के बाद भूपति पर दबाव बढ़ गया. वहीं, सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाइयों से नक्सल आंदोलन बिखर गया. इसके चलते भूपति ने केंद्र सरकार को सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से स्थगित करने और शांति के लिए बातचीत करने का प्रस्ताव दिया और उसने कई वर्षों के सशस्त्र संघर्ष को अपनी सबसे बड़ी गलती माना. उसके इस रुख के कारण नक्सल संगठन में बड़े वैचारिक मतभेद पैदा हो गए. अंत में भूपति ने हथियार डालने का फैसला किया. इसके साथ ही दंडकर्ण जंगल में भूपति के रहस्य, आतंक और खूनी अध्याय का अंत हो गया.
2010 में छत्तीसगढ़ में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल पर जानलेवा हमला हुआ था. इसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. भूपति उस घटना का मास्टरमाइंड था. सोनू उर्फ भूपति को नक्सली संगठन का एक प्रभावशाली रणनीतिकार माना जाता है. वह कई वर्षों तक महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ सीमा पर प्लाटून का मार्गदर्शक रहा. हालांकि, पिछले कुछ महीनों में संगठन के शीर्ष नेतृत्व के साथ उसके मतभेद बढ़ गए थे. सशस्त्र संघर्ष को निरर्थक मानते हुए, उसने एक पर्चे में अपील की कि 'संघर्ष नहीं, बल्कि बातचीत ही एकमात्र विकल्प है.' संगठन के कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने भूपति के रुख का विरोध किया. महासचिव थिप्पारी तिरुपति उर्फ देवजी के नेतृत्व वाले समूह ने सशस्त्र संघर्ष जारी रखने का फैसला किया था. आखिरकार दबाव बढ़ने पर भूपति ने संगठन छोड़ने की घोषणा की और अपने 60 साथियों के साथ आत्मसमर्पण का रास्ता चुना. सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास योजना के तहत उन्हें सुरक्षा की गारंटी दी गई है.
नक्सली आंदोलन का अंतिम चरण?
राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति ने नक्सल आंदोलन की नींव हिला दी है. पिछले दो दशकों में गढ़चिरौली में 700 से ज्यादा नक्सली हथियार डाल चुके हैं. सुरक्षा एजेंसियों ने संकेत दिया है कि केंद्रीय स्तर के नक्सली नेता भूपति के आत्मसमर्पण के बाद दंडकर्ण में नक्सलवाद का अंतिम अध्याय शुरू हो गया है.
गढ़चिरौली में सफेद झंडा फहराया
मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ भूपति उर्फ सोन, जिसने वर्षों तक दंडकर्ण के घने जंगलों में बंदूक की नोक पर राज किया था. हिंसा उसका प्रयाय बन गई थी. लेकिन अब, जैसे-जैसे गढ़चिरौली की धरती पर दशकों से चल रहा लाल संघर्ष धीमा पड़ने लगा है, भूपति समेत नक्सल आंदोलन में सक्रिय नक्सलियों ने आत्मसमर्पण का रास्ता चुनना शुरू कर दिया है. यह राज्य के इतिहास का शायद सबसे बड़ा 'टर्निंग पॉइंट' होने वाला है.
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