
अलौकिक शक्ति: 78 साल के दयाल चंद्र पांच दशक से बना रहे भगवान जगन्नाथ की आकृति
ओडिशा के दयाल चंद्र दास पिछले पांच दशकों से कागज, प्लास्टिक की बोतलों, कपड़ों आदि से भगवान जगन्नाथ की आकृति बना रहे हैं.

Published : October 18, 2025 at 9:01 PM IST
बालासोर: ओडिशा के बालासोर जिले के सेवानिवृत्त इलेक्ट्रिकल इंजीनियर 78 वर्षीय दयाल चंद्र दास पिछले पांच दशकों से भगवान जगन्नाथ की आकृति बना रहे हैं. हालांकि, उन्होंने चित्रकारी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है, लेकिन उनके हाथों से बनी भगवान जगन्नाथ की आकृति जीवंत लगती है. वह कागज, प्लास्टिक की बोतल, कपड़े आदि से जगन्नाथ की आकृति बनाते हैं. वह कागज चिपकाने के लिए किसी गोंद का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि आटे का इस्तेमाल करते हैं.
दयाल चंद्र दास अपनी पेंशन के पैसों से पेंसिल, रंग, माला, कपड़े आदि खरीदते हैं और लोगों को मुफ्त में आकृति दान करते हैं. इससे उन्हें बहुत खुशी मिलती है. उनकी आकृति बनाने के पीछे एक खूबसूरत कहानी है. 1971 में जब दयाल तालचेर थर्मल में काम कर रहे थे, तब एक दुर्घटना में उनके दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गए थे. वह ऑफिस से आना-जाना भी नहीं कर सकते थे. जगन्नाथ के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और प्रेम था.
एक दिन, तालचेर में एक महिला द्वारा जगन्नाथ की आकृति बनाने के बारे में सुनकर, वह बार-बार उसके पास जगन्नाथ की आकृति लाने गए और निराश होकर लौट आए. फिर उन्होंने घर आकर फटे कागज और बक्सों से जगन्नाथ की आकृति बनाने की कोशिश की. वह छह महीने में केवल एक आकृति बना पाए. उसके बाद, उन्होंने कपास से जगन्नाथ की आकृति बनाना शुरू कर दिया. यहीं से जगन्नाथ की आकृतियां बनाने का उनका शौक शुरू हुआ. रेमुना क्षेत्र का एक व्यापारी दयाल की हस्तनिर्मित जगन्नाथ आकृति दक्षिण अफ्रीका में बेचता है. दयाल की हस्तनिर्मित जगन्नाथ आकृतियां रेमुना क्षेत्र के लगभग हर घर और शैक्षणिक संस्थान में मिल जाती हैं. वह लगभग 55 वर्षों से आकृतियां बना रहे हैं. लेकिन वह आकृति के लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं.
दयाल भगवान जगन्नाथ की आकृतियां बनाने के लिए, फटे कागज, बक्से, प्लास्टिक की बोतलों आदि का उपयोग करते हैं. आकृति को मजबूत बनाने के लिए वह सुई और धागे का उपयोग करते हैं. वह कागज को भिगोकर उसका लेप भी बनाते हैं जिसमें आटा मिलाकर आकृतियों को टूटने से बचाते हैं.
भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी भक्ति के बारे में दयाल कहते हैं, "मेरा कोई स्वामी नहीं है, जगन्नाथ ही मेरे स्वामी हैं. मैंने सोचा है कि मैं मरते दम तक यही सेवा करके जगन्नाथ को अपना जीवन समर्पित कर दूंगा."
सेवानिवृत्त शिक्षक प्रदीप कुमार मिश्रा कहते हैं, "दयाल सर को मेरा कोटि-कोटि नमन, क्योंकि दयाल चंद्र दास एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे. वे विज्ञान के छात्र थे. विज्ञान के छात्र होने के बावजूद, उन्होंने खुद को जगन्नाथ के प्रति इतना समर्पित कर दिया है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है. निश्चित रूप से भगवान जगन्नाथ की कोई अलौकिक शक्ति उन पर है. रेमुना क्षेत्र में एक भी घर ऐसा नहीं है जहां दयाल सर द्वारा बनाई गई जगन्नाथ की आकृति न हो.
दयाल दास न केवल भगवान जगन्नाथ की आकृतियां बनाते हैं, बल्कि एक अच्छे वक्ता भी हैं. दयाल विभिन्न संस्थानों में आयोजित प्रवचन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं और भाषण देते हैं. उनसे प्रवचन सीखने वाले सत्यनारायण महारना कहते हैं, "मैं दयाल सर से प्रवचन सीख रहा हूं. ईश्वर ने उन पर ऐसी कृपा की है कि वो बचे हुए सामान से जगन्नाथ की आकृतियां बना रहे हैं. वो अपनी पेंशन की राशि जगन्नाथ मंदिर को दान करते हैं. अपनी उम्र और विकलांगता के बावजूद, ईश्वर ने उनमें ऐसी कला दी है कि उन्होंने समाज को जागरूक किया है."
दयाल की हस्तनिर्मित आकृति को घर पर रखकर उसकी पूजा करने वाली जयश्री मिश्रा ने अपने अनुभव बताते हुए कहा, "हमें जगन्नाथ की नगरी पुरी जाने का मौका तो हमेशा नहीं मिलता. लेकिन हम उनके हाथ से बनी आकृतियों में श्री जगन्नाथ को जीवंत रूप में देखते हैं. मेरा पूरा घर उनके हाथ से बनी जगन्नाथ आकृति से सजा हुआ है. सिर्फ मैं ही नहीं, मैंने इसे अपने दोस्तों और परिचितों को भी बांटा है."
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