चुनाव आयोग से कर्नाटक में SIR को रोकने का आग्रह, नागरिक समूहों ने उठाए कई सवाल
नागरिक समूहों ने चेतावनी दी कि कर्नाटक में SIR प्रक्रिया लाखों गरीब और हाशिए पर पड़े मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है.

Published : October 18, 2025 at 4:20 PM IST
|Updated : October 18, 2025 at 5:20 PM IST
बेंगलुरु: 'माई वोट, माई राइट' गठबंधन के लगभग 20 सदस्यों ने शुक्रवार को कर्नाटक के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी (जेसीईओ) योगेश से मुलाकात की और राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की तैयारी पर गंभीर आपत्तियां व्यक्त कीं. गठबंधन ने एक विस्तृत ज्ञापन सौंपकर भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से लंबित कानूनी चुनौतियों के समाधान तक राज्य में एसआईआर की तैयारियों को रोकने का आग्रह किया.
बैठक के दौरान, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी (JCEO) योगेश ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत प्रशिक्षण सत्र शुरू हो गए हैं, लेकिन अभी तक एसआईआर का कार्यान्वयन शुरू नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, "हमने भारत निर्वाचन आयोग से प्राप्त निर्देशों के अनुसार तैयारी प्रक्रिया शुरू कर दी है. हालांकि, हमें कर्नाटक में SIR लागू करने के लिए अभी तक विशिष्ट निर्देश नहीं मिले हैं."
जब प्रतिनिधिमंडल ने बिहार में SIR अभ्यास के दौरान बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाए जाने और दोहराव की ओर इशारा किया, तो योगेश ने जवाब दिया, "बिहार मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है, इसलिए मैं इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं कर सकता." संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने गठबंधन को आश्वासन दिया कि उनके ज्ञापन की जांच की जाएगी और आगे की कार्रवाई के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी को भेजा जाएगा.
हाशिए पर पड़े मतदाताओं के छूटने का डर
माई वोट, माई राइट - जो 23 से ज्यादा नागरिक समाज संगठनों, ट्रेड यूनियनों और नागरिक समूहों का एक गठबंधन है- द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन में इस बात पर चिंता जताई गई है कि एसआईआर ढांचा मतदाता पंजीकरण में प्रमाण के दायित्व को उलट देता है. नई प्रक्रिया के तहत, प्रत्येक पंजीकृत मतदाता को मतदाता सूची में अपना नाम बनाए रखने के लिए नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज जमा करने होंगे.
गठबंधन के अनुसार, यह बदलाव गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों और प्रवासियों पर असमान रूप से प्रभाव डालेगा, जिनके पास मांगे गए दस्तावेज नहीं हो सकते हैं. समूह ने कहा कि आधार, मनरेगा और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज – जिनका भारत भर में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है – नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं. ज्ञापन में कहा गया है, "इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिम समुदायों के लाखों लोगों के मताधिकार छिन जाने का खतरा है."
ईटीवी भारत से बात करते हुए 'माई वोट, माई राइट' गठबंधन के सदस्य एडवोकेट विनय श्रीनिवास ने कहा, "एसआईआर के नाम पर जो पेश किया जा रहा है, वह संशोधन नहीं, बल्कि नागरिकता का पुनर्सत्यापन है. यह सबूत पेश करने का बोझ आम लोगों पर डालता है, जो असंवैधानिक और घोर अन्यायपूर्ण है. चुनाव आयोग को बिना पूरी जनता से सलाह-मशविरा किए इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए."
गठबंधन ने यह भी बताया कि 1987 के बाद पैदा हुए लोगों के लिए नियमों में माता-पिता दोनों के जन्म और नागरिकता का प्रमाण देना अनिवार्य है - उनके अनुसार यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्रतिभू सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के अधिकार का उल्लंघन करती है. उन्होंने आगे तर्क दिया कि कड़ी समय-सीमा और डिजिटल सत्यापन प्रक्रिया के कारण मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग, खासकर छात्र और प्रवासी श्रमिक, डिजिटल पहुंच से वंचित रह जाएंगे.
"एनआरसी जैसी" प्रक्रिया
ज्ञापन में एसआईआर को 'नागरिकता के लिए खतरा' बताया गया है और इस बात पर जोर दिया गया है कि चुनाव अधिकारियों को नागरिकता अधिनियम के तहत "संदिग्ध विदेशी नागरिकों" के मामलों को सक्षम प्राधिकारी के पास भेजने का अधिकार दिया गया है. ऐसे माहौल में जहां हाशिए पर पड़े समूहों पर पहले से ही "अवैध प्रवासी" होने के झूठे आरोप लग रहे हैं, ऐसे प्रावधानों के बारे में उन्होंने चेतावनी दी है कि इससे लक्षित उत्पीड़न बढ़ सकता है.
बिहार में एसआईआर के हालिया अनुभव का हवाला देते हुए, गठबंधन ने कहा कि वहां एसआईआर प्रक्रिया के परिणामस्वरूप लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए, और कई वैध मतदाता - विशेष रूप से महिलाएं, मुस्लिम और दलित - मतदाता सूची से अपने नाम खो बैठे. बयान में कहा गया है, "यह सुनिश्चित करने के बजाय कि कोई भी योग्य मतदाता छूट न जाए, एसआईआर राज्य को अपने मतदाता चुनने का अधिकार देता है." साथ ही, इस तरह के उपाय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत को कमजोर करते हैं.
'माई वोट, माई राइट' गठबंधन की सदस्य अधिवक्ता मानवी अत्री ने कहा, "एसआईआर प्रक्रिया मूलतः एनआरसी जैसी ही एक प्रक्रिया है, जिसका दूसरा नाम भी एनआरसी ही है. यह स्थानीय अधिकारियों को लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाने के मनमाने अधिकार देती है और सत्यापन के बहाने मतदाता को सूची से बाहर करने का जोखिम पैदा करती है. हमने देखा है कि बिहार में क्या हुआ था - कर्नाटक उस गलती को दोहराने का जोखिम नहीं उठा सकता."
नागरिक समूहों के गठबंधन ने कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से आग्रह किया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट में मामला सुलझ नहीं जाता, तब तक प्रशिक्षण कार्यक्रमों सहित एसआईआर से संबंधित सभी गतिविधियां तत्काल रोक दी जाएं. उन्होंने यह भी मांग की कि चुनाव आयोग खामियों को दूर करने और मतदाता सूची प्रबंधन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नागरिक समाज समूहों के साथ परामर्श करे.
ज्ञापन के अंत में कहा गया, "मतदान का अधिकार हमारे लोकतंत्र की नींव है. सत्यापन के नाम पर गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों को मताधिकार से वंचित करना भारत के समानता के संवैधानिक वादे के मूल पर प्रहार होगा."
अधिवक्ता विनय श्रीनिवास ने कहा, "संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने हमें आश्वासन दिया कि हमारा ज्ञापन और चिंताएं मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष रखी जाएंगी, और राज्य निर्वाचन कार्यालय से निर्देश मिलने पर औपचारिक प्रतिक्रिया दी जाएगी."
अधिवक्ता मानवी अत्री ने कहा कि वे मतदाता पंजीकरण में पारदर्शिता के लिए अभियान जारी रखेंगे और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करने वाले समावेशी चुनावी सुधारों पर जोर देंगे.
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