
कार्डियक अरेस्ट को न करें नजरअंदाज, पहले से दिखाई देते हैं ऐसे लक्षण
बीते एक सप्ताह में चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग से जुड़े तीन चिकित्सकों की मौत साइलेंट किलर (कार्डियक अरेस्ट) से हो गई थी.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : May 31, 2025 at 9:48 AM IST
लखनऊ : आमतौर पर देखा जाता है कि सर्दियों के मौसम में कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक के मरीज बढ़ जाते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है. गर्मी के मौसम में भी कार्डियक अरेस्ट के केस बढ़ रहे हैं. हाल ही में लखनऊ में चार ऐसे मामले सामने आए जिसमें मरीज को अचानक खांसी आई, पसीना छूटा और सांसें थम गईं. विशेषज्ञ के मुताबिक कार्डियक अरेस्ट साइलेंट किलर होता है. ऐसा नहीं है कि शरीर में लक्षण नहीं दिखते हैं. नॉर्मल लक्षण कुछ दिन पहले ही दिखाई देने लगते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि व्यक्ति उन लक्षणों को समझ नहीं पाते हैं और नजर अंदाज कर देते हैं. ऐसे लक्षणों और सवालों को उजागर करती ईटीवी भारत की खास खबर...
हाल ही में स्वास्थ्य विभाग से जुड़े तीन लोगों की साइलेंट किलर 'कार्डियक अरेस्ट' से मौत हो गई. एक सप्ताह के भीतर लोहिया संस्थान के रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. विवेक पांडेय (28), केजीएमयू के सहायक प्रशासनिक अधिकारी प्रदीप कुमार (32) और केजीएमयू के नेत्ररोग विभाग के नर्सिंग ऑफिसर राजेंद्र यादव (29) की मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई. तीनों की उम्र 40 वर्ष से कम थी. इसके बाद से विशेषज्ञ साइलेंट किलर को लेकर काफी सतर्क हैं और लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

सिविल अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ एवं सीएमएस डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव मुताबिक अमूमन सर्दियों के दिनों में कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या अधिक रहती है. हालांकि गर्मी के मौसम में भी अब कार्डियक अरेस्ट के केस आ रहे हैं. इसके पीछे मुख्य कारण लोगों की दिनचर्या और उनका खानपान है. मरीजों की काउंसिलिंग के दौरान पता चल रहा है कि यह समस्या रहन-सहन, खान-पान, दिनचर्या में अनियमितता की वजह से हो रही है.

शरीर देता है संकेत : डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि कार्डियक अरेस्ट आने से पहले व्यक्ति का शरीर संकेत देता है. जब भी कार्डियक अरेस्ट या हार्ट अटैक मरीज को आता है. उससे पहले मरीज को घबराहट, बेचैनी चलने में दिक्कत होना, चलते समय सीने में भारीपन महसूस होना, सीने में दर्द होना या यूं ही बैठे या लेटे हुए सीने में दबाव महसूस होना. इस तरह के लक्षण मरीजों में दिखाई देते हैं. इसके अलावा हर इंसान की पर्सनैलिटी अलग है और उनकी सहन करने की क्षमता अलग है. इसलिए हर व्यक्ति को एक समान लक्षण कभी नहीं आते हैं. ऐसे में अक्सर मरीज ऐसे लक्षणों को नजर अंदाज कर देते हैं. बहरहाल इनमें से कोई लक्षण दिखाई दें, तो तत्काल कार्डियोलॉजिस्ट से परामर्श लें तो इस साइलेंट किलर से बचा जा सकता है.

केजीएमयू के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अक्षय प्रधान ने बताया कि हार्ट अटैक के कुल मरीजों में से 25 फीसदी की उम्र 40 वर्ष से कम होती है. दिल का दौरा पड़ने से जान गंवाने वालों में 50 प्रतिशत की उम्र 50 वर्ष से कम होती है. धूम्रपान और खराब जीवन शैली कम उम्र में हार्ट फेल के प्रमुख कारण हैं. डॉ. अक्षय के मुताबिक इसकी शुरुआत धीरे धीरे होती है. 10 साल की उम्र से धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमना शुरू होता है. शुरुआत में इसके लक्षण नहीं होते हैं. 30-35 साल की उम्र के बाद लक्षण दिखने लगते हैं तो तब तक काफी देर हो चुकी होती है. जिम में कसरत और डांस करते हुए अचानक हार्ट अटैक के मामले इसी कारण होते हैं.

डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. भुवन तिवारी के मुताबिक युवाओं में अचानक होने वाली हार्ट फेल्योर की घटनाओं को गंभीरता से लेने की जरूरत है. जोखिम कारकों के साथ धूम्रपान और खराब जीवनशैली इसकी प्रमुख वजह हैं. दिल का दौरा पड़ने पर उसे पहचानने की जरूरत है. इसका प्राथमिक इलाज खून पतला करने वाली एस्पिरन की दवाई है. इसके बाद मरीज को पास के डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए.

