हैदराबाद: चीन और रूस ने 2035 तक चांद पर एक ऑटोमैटेड न्यूक्लियर पावर स्टेशन बनाने के लिए एक मेमोरेंडम साइन किया है. चांद पर न्यूक्लियर पावर स्टेशन बनाने वाले इस खास प्रॉजेक्ट के लिए रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस और चीन की स्पेस एजेंसी चाइना नेशनल स्पेस एजेंसी के बीच समझौता और डील तय की गई है. यह न्यूक्लियर पावर स्टेशन इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन यानी अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (ILRS) को एनर्जी मुहैया कराएगा. पहली बार इसका ऐलान 2017 में किया गया था.
चांद पर इस न्यूक्लियर पावर स्टेशन को साउथ पोल के 100 किलोमीटर के दायरे में स्थापित किए जाने की प्लानिंग की जा रही है. इसमें लंबे समय तक कई ऑटोमैटेड मिशन्स यानी मानवरहित मिशन का संचालन किया जाएगा. रोस्कोस्मोस ने 8 मई 2025 को दिए गए अपने एक बयान में बताया था कि, ILRS का सबसे बड़ा मकसद चंद्रमा पर फंडामेंटल स्पेस रिसर्च करना और ऐसी टेक्नोलॉज़ीस की टेस्टिंग करना है, जिसके जरिए लंबे टाइम तक इंसानों के बिना स्पेस मिशन्स को चलाया जा सके.
कई देश मिशन का हिस्सा
चांद पर बनने वाले न्यूक्लियर पावर स्टेशन को चांद की सतह और कक्षा में बनाया जाएगा. इसमें चांद की खोज समेत कई खास मिशन को किया जाएगा. आईएलआरएस के बारे में आपको बता दें कि यह एक अंतरराष्ट्रीय कॉलेबरेशन प्रोजेक्ट है, जिसमें वेनेजुएला, बेलारूस, अजरबैजान, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, निकारागुआ, थाईलैंड, सर्बिया, पाकिस्तान, सेनेगल, और कजाकिस्तान जैसे देशों का नाम शामिल है. हालांकि, चीन और रूस की स्पेस एजेंसियों ने अपने-अपने बयान में कहा था कि उनके इस प्रोजेक्ट में देश-दुनिया के बाकी देश भी हिस्सा ले सकते हैं.
चांद पर एनर्जी यानी उर्जा यानी बिजली आपूर्ति को पूरा करना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि वहां पर रात पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होती है. ऐसे में सोलर पैनल के जरिए पर्याप्त एनर्जी बनाना और उसे जमा करना आसान नहीं है. इस वजह से न्यूक्यिलर पावर स्टेशन को चांद पर एनर्जी की आपूर्ति को लंबे समय तक पूरा करने का एक सटीक और अच्छा विकल्प माना गया है. रूसी स्पेस एजेंसी के हेड यूरी बोरिसोव ने बताया कि यह पावर स्टेशन पूरी तरह से ऑटोमैटिक होगा और इसे इंसानों की उपस्थिति के बिना ही चांद की सतह पर स्थापित किया जाएगा. इसके अलावा रूसी स्पेस एजेंसी के प्रमुख ने दावा किया है कि इस प्रोजेक्ट के लिए तमाम जरूरी टेक्निकल रिसोर्सेज़ को लगभग तैयार कर लिया गया है. हालांकि, उन्होंने पिछले साल बताया था कि इस प्रोजेक्ट के लिए एक टेक्निकल प्रॉब्लम है, जिसका सॉल्यूशन अभी तक नहीं मिल पाया है और वो परमाणु रिएक्टर को ठंडा करना है.
इस प्रॉजेक्ट की सबसे बड़ी चुनौती
यूरी बोरिसोव ने बताया था कि परमाणु रिएक्टर को ठंडा करने की टेक्नोलॉजी को छोड़कर इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में काम आने वाली लगभग सभी टेक्नोलॉजी को तैयार कर लिया गया है. हालांकि, अंतरिक्ष में रिएक्टर को ठंडा करना काफी मुश्किल है और इसके बिना यह प्रोजेक्ट पूरा भी नहीं हो सकता है. इस कारण यह इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी बाधा है.
हमने आपको ऊपर बताया कि रूस और चीन मिलकर किसी इंसान को भेजे बिना ही चांद पर न्यूक्लियर पावर स्टेशन बनाएंगे. ऐसे में आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ऐसा कैसे होगा. इसके लिए रूस और चीन एक परमाणु-संचालित कार्गो स्पेसक्राफ्ट को भी बना रहे हैं. यह स्पेसक्राफ्ट चांद पर पावर स्टेशन बनाने के लिए सभी जरूरी सामान को पृथ्वी से चांद की उस तय सतह तक लेकर जाएगा. रूसी स्पेस एजेंसी के मुताबिक, इस स्पेसक्राफ्ट को बनाने के लिए सभी टेक्निकल सॉल्यूशन को डेवलप किया जा रहा है. उनके मुताबिक, यह स्पेसक्राफ्ट काफी भारी सामान को भी चांद तक लेकर जा सकता है, जिनका यूज़ चांद के साउथ पोल वाले क्षेत्र में ऑटोमैटिक न्यूक्लियर पावर स्टेशन बनाने में किया जाएगा.
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