भरतपुर: कभी आंगन और छज्जों पर आम दिखने वाली गौरैया अब धीरे-धीरे लौट रही है. दो-तीन दशक पहले जिस गौरैया की चहचहाहट शहरी गलियों से गायब हो गई थी, वह अब राजस्थान के कई इलाकों में फिर से सुनाई देने लगी है. वर्तमान में भरतपुर, जयपुर और अन्य जिलों में गौरैया की संख्या में उल्लेखनीय इजाफा देखा जा रहा है. जबकि देश के तटीय राज्यों में गौरैया अब भी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.
तटीय राज्यों में अब भी 80% तक गिरावट : लुधियाना की सीटी यूनिवर्सिटी और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के नवीनतम अध्ययन में सामने आया है कि आंध्र प्रदेश, केरल जैसे तटीय राज्यों में गौरैया की आबादी में अब भी 70 से 80% तक की गिरावट बनी हुई है. वहीं, राजस्थान में यह गिरावट तुलनात्मक रूप से काफी कम है. आईसीएआर की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान में गौरैया की आबादी में 20% तक ही गिरावट रही है और पिछले 3-4 वर्षों में ये स्थिति सुधरने लगी है.
राजस्थान में उम्मीद की किरण : पर्यावरणविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा ने बताया कि भरतपुर, जयपुर और अन्य जिलों में गौरैया की वापसी सकारात्मक संकेत है. 2007 में जिले के गांवों में जहां गौरैया के छोटे-छोटे के झुंड दिखते थे. वहीं, अब कई जगह 100 से अधिक गौरैया एक साथ देखी जा रही हैं.

डॉ. मेहरा ने बताया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण स्तर में आई गिरावट और मानव गतिविधियों में कमी के कारण गौरैया को पुनः प्रजनन और सुरक्षित आवास का अवसर मिला. वहीं, हाल के वर्षों में लोगों में संरक्षण को लेकर बढ़ी जागरूकता भी इसकी बड़ी वजह है.
जागरूकता और संरक्षण से लौटी गौरैया : डॉ. मेहरा ने बताया कि राजस्थान में कई स्थानीय नागरिक अब गौरैया संरक्षण में व्यक्तिगत भूमिका निभा रहे हैं. कई लोग घरों और होटलों में लकड़ी के बने कृत्रिम घोंसले (आर्टिफिशियल नेस्ट) लगा रहे हैं, जिनमें गौरैया सफलतापूर्वक प्रजनन कर रही है. राज्य में कई स्कूल, होटल और रिहायशी इलाके भी अब गौरैया संरक्षण अभियान में शामिल हो रहे हैं. यही कारण है कि राजस्थान के कई क्षेत्रों में गौरैया की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है.

रेडिएशन और शहरीकरण : डॉ. मेहरा ने बताया कि तेजी से हो रहे शहरीकरण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन को गौरैया की गिरती आबादी का बड़ा कारण माना जा रहा है. यूरोपियन स्टडीज में भी यह पाया गया कि मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें गौरैया समेत कई पक्षियों की जीवन प्रणाली को प्रभावित कर रही हैं. हालांकि, भारत में इस विषय पर अभी विस्तृत शोध होना बाकी है.
