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विश्व पार्किंसंस दिवस : इन लक्षणों को भूलकर भी न करें नजरअंदाज, भारत में बढ़ रहे यंग पार्किंसंस के मामले - WORLD PARKINSONS DAY 2025

पार्किंसंस दिमाग से जुड़ी एक गंभीर समस्या है, जिससे आज बहुत से लोग प्रभावित दिख रहे हैं.

विश्व पार्किंसंस दिवस
विश्व पार्किंसंस दिवस (फोटो ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : April 11, 2025 at 11:40 AM IST

2 Min Read

जयपुर. 11 अप्रैल विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना है. पार्किंसंस एक मस्तिष्क यानि न्यूरो संबंधी बीमारी है. किसी कारण से मस्तिष्क के सब्सटांशिया नाइग्रा नामक हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने के कारण डोपामाइन के निर्माण में कमी या समस्या होने पर यह रोग होता है. दरअसल मस्तिष्क के इसी हिस्से में डोपामाइन का निर्माण होता है.

जयपुर के वरिष्ठ चिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. वैभव माथुर का कहना है की आम तौर पर पार्किंसंस बीमारी 60 साल से अधिक के उम्र के लोगों में होती है लेकिन बीते कुछ सालों में 40 से 50 साल की उम्र लोगों में यह बीमारी देखने को मिल रही है, जिसे यंग पार्किंसंस कहा जाता है. भारत में तेजी से कम उम्र के लोगों में यह बीमारी होना चिंता का विषय है.

इसे भी पढ़ें: हेल्थ टिप्स: संयमित जीवन शैली और सात्विक भोजन से मधुमेह पर पाया जा सकता है नियंत्रण- डॉ बीएल मिश्रा

बीमारी के कारण : चिकित्सकों का कहना है की पुरुषों में पार्किंसंस रोग का जोखिम महिलाओं की तुलना में अधिक होता है. कुछ शोध से पता चला है की यह बीमारी अनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है, इसके अलावा बिगड़ती लाइफ स्टाइल के कारण भी यंग एज में इस बीमारी के मामले बढ़ रहे है, वही कीटनाशकों के संपर्क में आने पर भी पार्किंसंस का जोखिम बढ़ सकता है.

लक्षण और उपचार :-

  • पीड़ित मरीज की सामान्य गतिविधियों में धीमापन
  • शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी
  • शरीर के कुछ अंगो के संतुलन संबंधी समस्याएं
  • मांसपेशियों में कठोरता या अकड़न
  • शरीर के कांपने जैसी समस्याएं, चलने, बात करने ,सूंघने तथा सोने में समस्या
  • कब्ज व पैरों में बेचैनी जैसी परेशानियां होने लगती हैं

चिकित्सकों का कहना है की यदि शरीर में ये लक्षण दिखाई दे तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श जरुरी है और अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव भी जरुरी है ताकि इस बीमारी को रोका जा सके, अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज मौजूद है और साधारण दवाओं से मरीज का इलाज संभव है

जयपुर. 11 अप्रैल विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना है. पार्किंसंस एक मस्तिष्क यानि न्यूरो संबंधी बीमारी है. किसी कारण से मस्तिष्क के सब्सटांशिया नाइग्रा नामक हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने के कारण डोपामाइन के निर्माण में कमी या समस्या होने पर यह रोग होता है. दरअसल मस्तिष्क के इसी हिस्से में डोपामाइन का निर्माण होता है.

जयपुर के वरिष्ठ चिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. वैभव माथुर का कहना है की आम तौर पर पार्किंसंस बीमारी 60 साल से अधिक के उम्र के लोगों में होती है लेकिन बीते कुछ सालों में 40 से 50 साल की उम्र लोगों में यह बीमारी देखने को मिल रही है, जिसे यंग पार्किंसंस कहा जाता है. भारत में तेजी से कम उम्र के लोगों में यह बीमारी होना चिंता का विषय है.

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बीमारी के कारण : चिकित्सकों का कहना है की पुरुषों में पार्किंसंस रोग का जोखिम महिलाओं की तुलना में अधिक होता है. कुछ शोध से पता चला है की यह बीमारी अनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है, इसके अलावा बिगड़ती लाइफ स्टाइल के कारण भी यंग एज में इस बीमारी के मामले बढ़ रहे है, वही कीटनाशकों के संपर्क में आने पर भी पार्किंसंस का जोखिम बढ़ सकता है.

लक्षण और उपचार :-

  • पीड़ित मरीज की सामान्य गतिविधियों में धीमापन
  • शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी
  • शरीर के कुछ अंगो के संतुलन संबंधी समस्याएं
  • मांसपेशियों में कठोरता या अकड़न
  • शरीर के कांपने जैसी समस्याएं, चलने, बात करने ,सूंघने तथा सोने में समस्या
  • कब्ज व पैरों में बेचैनी जैसी परेशानियां होने लगती हैं

चिकित्सकों का कहना है की यदि शरीर में ये लक्षण दिखाई दे तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श जरुरी है और अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव भी जरुरी है ताकि इस बीमारी को रोका जा सके, अस्पतालों में इस बीमारी का इलाज मौजूद है और साधारण दवाओं से मरीज का इलाज संभव है

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