लखनऊ : होम्योपैथिक एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है. कुछ समय के लिए लोगों का भरोसा डगममाया जरूर था, लेकिन, कोरोना काल के समय से प्रदेश सरकार की पहल पर दोबारा से इस पर विश्वास कायम हुआ है. होम्योपैथी में कुछ बीमारियों का इलाज बिल्कुल सटीक होता है. एलोपैथ दवाओं का तुरंत प्रभाव तो होता है. लेकिन, वह लंबे समय तक नहीं रहता है. यही कारण है कि अब मरीज होम्योपैथिक चिकित्सा की तरफ रुख कर रहे हैं. चिकित्सकों का दावा है कि होम्योपैथिक विद्या में कुछ गंभीर बीमारियों का शत प्रतिशत इलाज है. इसके बारें में हर व्यक्ति को मालूम होना चाहिए.
मरीजों का भरोसा बढ़ा: चिकित्सकों के मुताबिक राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय में हजारों की संख्या में मरीज इलाज करने के लिए पहुंच रहे हैं. जहां एक तरफ एलोपैथ दवाओं का दुष्प्रभाव होता हैं, वहीं, दूसरी तरफ होम्योपैथिक दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. यही कारण है कि यहां लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है. कोरोना से पहले यह मरीजों की संख्या कम होती थी, लेकिन, कोरोना काल के बाद लोगों का विश्वास दोबारा होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति पर बढ़ा है. अब तो आलम ही है कि यहां पर सुबह से दोपहर 3 बजे तक करीब दो हजार मरीज रोजाना इलाज करने के लिए पहुंच रहे हैं.
कोरोना काल के बाद बदली तस्वीर: राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. विजय पुष्कर ने बताया कि अस्पताल में इन दोनों काफी ज्यादा भीड़ हो रही है. अस्पताल की कुछ ओपीडी ऐसी है जहां पर हमेशा भीड़ होती है. जिसमें चर्म रोग विभाग, गठिया रोग विभाग व मानसिक रोग विभाग शामिल है. उन्होंने कहा कि एक दौर ऐसा था. जब किसी भी विधा में लोगों ने इलाज नहीं लिया. सिर्फ आयुष के ऊपर लोगों ने विश्वास रखा. कोरोना काल में हर कोई इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका कि आयुष विधा में हर बीमारी का इलाज संभव है. अस्पताल में बहुत से ऐसे मरीज आते हैं, जो अन्य चिकित्सा विधा से इलाज कराकर थक चुके होते हैं. फिर उसके बाद होम्योपैथिक में आते हैं. और यहां से बिल्कुल ठीक होकर जाते हैं. कहीं न कहीं यह लोगों का विश्वास ही है, जो काफी ज्यादा बड़ा है.
कई बीमारियों में है रामबाण: उन्होंने बताया कि रोजाना डेढ़ हजार मरीज से अधिक मरीज इलाज करने के लिए आते हैं. मरीज अच्छा फीडबैक देकर जाते हैं. हमें उस वक्त बहुत सुकून मिलता है, जब मरीज को आराम मिलता है और वह यह बोलकर जाता है कि वह बिल्कुल ठीक है. इस समय जिस तरह से परिवेश बदल रहा हैं. समय बदल रहा है. लोगों को अपने करियर की चिंता सता रही है. किसी को डिप्रेशन हो रहा है तो किसी को एंजायटी हो रही है. ऐसे दौर में लोग होम्योपैथिक में इलाज करने के लिए आ रहे हैं और बिल्कुल ठीक होकर वह वापस लौट रहे हैं. हालांकि, होम्योपैथिक में हमेशा से मानसिक रोग विभाग का इलाज रहा है. लेकिन, लोगों में जागरूकता की कमी रही है. लोग हर चीज को जल्दी से जल्दी हासिल करना चाहते हैं फिर चाहे वह कोई चीज हो या फिर शरीर का कष्ट दूर करना हो. लोगों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए कि एलोपैथ की दावों का दुष्प्रभाव पड़ता है. वहीं होम्योपैथी की दवा का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है. थोड़ा समय जरूर लगता है, पर होम्योपैथिक जड़ से बीमारी को समाप्त करता है.
आधुनिक चिकित्सा के साथ होम्योपैथी का समन्वय: कहा कि होम्योपैथी और आधुनिक चिकित्सा के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा दिया जा रहा है. कई बड़े मेडिकल एलोपैथिक चिकित्सकों से हमारा एमओयू साइन है. जैसे हमारे अस्पताल में आने वाली बहुत सारे ऐसे मरीज होते हैं जो एलोपैथ की दावों को करते हुए थक जाते हैं, लेकिन उनकी बीमारी ठीक नहीं होती है और फिर वह होम्योपैथिक चिकित्सालय में आते हैं तो यहां पर गंभीर बीमारी के इलाज के लिए आवश्यक जांच करने की आवश्यकता पड़ती है. हम उन एलोपैथ चिकित्सा को का सहारा लेते हैं. उनके यहां पर जांच करते हैं. एलोपैथिक और होम्योपैथी का समन्वय अच्छे से हो, इसके लिए दोनों तरफ से पहल रहती है.
संस्थाओं और संगठनों का योगदान : कहा कि जागरुकता को बढ़ावा देने के लिए बहुत सारी ऐसी संस्थाएं और संगठन अपना योगदान दे रही हैं. क्योंकि, पिछले कुछ सालों में लोगों का रुझान ज्यादातर अंग्रेजी दवाओं और चिकित्सा पद्धति पर रहा, लेकिन, कोरोना कर के समय से प्रदेश सरकार ने भी आयुष चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दिया. इसका नतीजा यह निकला कि आज के समय में किसी गंभीर बीमारी का इलाज करने के लिए लोग होम्योपैथिक का रुख करते हैं. अगर किसी मरीज को त्वचा की गंभीर बीमारी है तो वह एलोपैथ की दवा न करके होम्योपैथिक की दवा करना उचित समझते हैं. यह सब जागरूकता के कारण ही हो रहा है. क्योंकि, समय-समय पर प्रदेश सरकार, आयुष विभाग और साथ में संस्थाएं एवं संगठनों ने जागरूकता कार्यक्रम किए हैं. अपना विश्वास जताया है. शहरीय और ग्रामीण क्षेत्र में कैंप लगाए गए हैं. जिसके कारण आम जनमानस में होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति को लेकर के काफी विश्वास बढ़ा है.
समाज में होम्योपैथी की स्थिति : बताया कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में होम्योपैथी चिकित्सा की पहुंच और स्वीकार्यता है. ग्रामीण और शहरीय इलाकों में होम्योपैथी के प्रति लोगों की जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए कैंप लगाए जाते हैं. जब कोई संस्था या संगठन हमारे यहां आते हैं और वह जागरूकता के लिए कैंप लगाने का सुझाव देते हैं या कहते हैं तो हम अपने मेडिकल कॉलेज से चिकित्सक और स्टाफ की टीम को तैयार करते हैं और संस्था के व्यक्ति के साथ कैंप आयोजित किया जाता है. महीने में चार से पांच कैंप आराम से किसी न किसी क्षेत्र में जरूर लगते हैं. संस्था के लोग हमें प्रदेश के उन जिलों के ग्रामीण क्षेत्र के बारे में भी अवगत कराते हैं, जो काफी ज्यादा पिछड़ा होता है.
कराते हैं सर्वे: बताया कि जो संस्थाएं हमारे पास कैंप लगाने के लिए आती हैं, सबसे पहले उनसे हम उसे क्षेत्र के लोगों की बीमारी के बारे में एक सर्वे करवा लेते हैं, जिससे हमें पता चल जाता है कि सबसे अधिक कौन सी बीमारी है, क्या समस्या है. उसके आधार पर विशेषज्ञों की टीम बनाई जाती है. उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादातर लोग खेती किसानी करने वाले होते हैं, उनमें ज्यादातर को त्वचा संबंधित बीमारी रहती है. जानकारी के अभाव में वह इसका इलाज नहीं करवा पाते हैं. अंग्रेजी दवा से कुछ समय के लिए त्वचा की दिक्कत दूर होती है लेकिन दोबारा उभर आती है. ऐसे में मेडिकल कॉलेज की टीम कैंप लगती है. स्थानीय लोग इलाज करने के लिए आते हैं. पहले से अपनी काफी ज्यादा बदलाव आया है.
कारगर इलाज के जरूरी है खुश रहना: उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में इन मरीजों को खुश रहने की आदत डालनी होगी ताकि बीमारी से उभर सकें. खुश रहने के लिए जरूरी है कि मरीज के दिमाग में ऐसी कोई भी बातें न चलें, इससे तबीयत और गंभीर हो सकती हैं. घर का एनवायरनमेंट अच्छा हो. लड़ाई झगड़े नोकझोंक से बचें. क्योंकि जब घर में इस तरह का माहौल रहता है तो मरीज के मस्तिक में यही बातें घर बना लेती हैं. जिसके चलते वह अपनी बीमारी से तो परेशान रहता ही है और इसी के साथ बाकी बातों को भी जोड़ता चलता है. दिमाग में सभी चीजें एक साथ चलने के बाद मरीज पूरी तरह से अवसाद से ग्रसित हो जाता है. उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि वह कभी ठीक हो पाएगा या नहीं या डिप्रेशन में चला जाता है. इस तरह की भावनाएं नहीं आनी चाहिए.
कॉलेजों में सीटें भी बढ़ीं: कहा कि प्रदेश में पहले होम्योपैथी की सीटें बहुत कम होती थीं. पहले से अब मैं बहुत बदलाव आया है. पहले किसी में 30 तो किसी में 40 सीट होती थी, लेकिन अब 90 सीट हो गई है. वहीं पीजी में 51 सीटें हो गई हैं. दिन-ब-दिन यह सीटें और भी बढ़ रही हैं. लगातार आयुष अस्पतालों में बदलाव आ रहा है. इस दौरान उन्होंने कहा कि आज इस पदभार को संभाला है और देखा कि क्या यहां पर दुश्वारियां हैं. मरीज को कहां दिक्कत होती है. उन तमाम दिक्कतों को दूर करना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. अभी हॉस्टल और कैंपस ओपीडी का काम प्रगति पर है, काम चल रहा है.
रिसर्च पर दिया जाएगा अधिक ध्यान : उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में होम्योपैथिक के ऊपर लोगों का विश्वास अधिक रहा है. जिद्दी से जिद्दी त्वचा रोग बीमारी भी होम्योपैथ की दवाओं से ठीक होता है. कोशिश पूरी यह है कि रिसर्च पर ज्यादा ध्यान दिया जाए और रिसर्च के क्षेत्र में भी राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय एवं मेडिकल कॉलेज आगे बढ़ें.
होम्योपैथिक दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं: चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. डीके सोनकर ने बताया कि पिछले कुछ सालों में लगातार होम्योपैथिक की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है और बड़ी संख्या में अब लोग यहां पर इलाज करने के लिए आते हैं. पहले 200 300 मरीज आते थे. लेकिन, अब रोजाना 1500 से अधिक मरीज ओपीडी में इलाज करने के लिए आ रहे हैं. लोगों का विश्वास होम्योपैथी के ऊपर बढ़ा है. किडनी, लीवर, चर्म, तील को हटाना, गठिया इत्यादि का इलाज यहां पर अच्छे से होता है और भारी संख्या में मरीज यहां पर इन बीमारियों के इलाज करने के लिए आते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे यहां पर ऐसे मरीजों की संख्या अधिक होती है. होम्योपैथिक दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता. बीमारी को जड़ से समाप्त करता है.
लाइलाज बीमारियों को ठीक करने का दावा: मेडिसिन फार्मेसी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार पाण्डेय कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में मरीजों की संख्या बढ़ी है. ऐसे मरीज जिन्हें डायलिसिस की जरूरत पड़ती है, यानी अंग्रेजी दवाओं का सेवन करते हैं और चिकित्सक उन्हें जवाब दे देते हैं. किडनी खराब हो चुकी है. ऐसे मरीजों का इलाज हमारे यहां पर होता है और बिना डायलिसिस के हम उनकी बीमारी सही करते हैं. राजकीय होम्योपैथिक चिकित्सालय में लिवर, किडनी गठिया, चर्म रोग विभाग, महिलाओं में होने वाली गंभीर बीमारी का इलाज होता है. पहले और अब में काफी बदलाव है. प्राचीन चिकित्सा पद्धति है. लेकिन पिछले कुछ सालों में होम्योपैथी के ऊपर लोगों का अटूट विश्वास है.
इलाज में खर्च भी कम, पूरी देखरेख: डॉ. राजकुमार कश्यप ने कहा कि जो मरीज यहां पर इलाज करने के लिए आते हैं, उनकी पूरी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की होती है. जो मरीज यहां पर ओपीडी में दिखाने आते हैं, उनका सिर्फ ₹1 का पर्चा बनता है. उन्हें निशुल्क दवा मिलती है. वही जो मरीज इलाज के लिए यहां पर भर्ती होते हैं, उनका दोनों समय का नाश्ता खाना निशुल्क प्राप्त होता है. उनकी दवा, उनका ट्रीटमेंट सब निशुल्क होता है. इसके अलावा मरीजों की पूरी देखरेख स्टाफ नर्स चिकित्सक के अंतर्गत होता है. यानी जब तक मरीज हमारे मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं, तब तक वह हमारी जिम्मेदारी होती है.
होम्योपैथी इलाज से चलने-फिरने में हुए सक्षम: अस्पताल में भर्ती सोनभद्र निवासी श्रीप्रकाश पाण्डेय ने बताया कि एक सड़क दुर्घटना के दौरान उनका पैर क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके कारण उन्हें काफी दिक्कत परेशानी हो रही थी. चलने फिरने में असमर्थ थे. अंग्रेजी दवा चलाई. लेकिन, दवाओं से चोट सही नहीं हुई. जिसके कारण राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में इलाज करने के लिए पहुंचे. यहां पर पिछले दो महीने से इलाज चल रहा है. यहां की दवा बहुत असरदार है. अब मैं धीरे-धीरे चलना शुरू कर दिया हूं. पहले में बिल्कुल चलने में असमर्थ था. अस्पताल में भर्ती होने के बाद सारी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन ने उठाई. खाना-पीना, दवा सब चीज अस्पताल की ओर से मिल रहा है. पहले से आपने काफी आराम हुआ है.
किडनी के मरीज को मिला जीवनदान: रायबरेली निवासी संजू ने बताया कि वह पति का इलाज करने के लिए रायबरेली से राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में आई हैं. बताया कि पति को किडनी में दिक्कत थी. रायबरेली में कई अस्पताल में दिखाया. फिर उसके बाद लोहिया और केजीएमयू में दिखाया. कई दिनों तक बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराया. जहां पर चिकित्सकों ने डायलिसिस की सुझाव दी. फिर उसके बाद एक सगे संबंधी ने होम्योपैथी अस्पताल में दिखने की सलाह दी. जब यहां पर इलाज करने के लिए आए तो आसानी से इलाज मिलने लगा डॉक्टर के कहने पर यहीं पर पति को भर्ती कर दिया. अब उनका इलाज यहां पर चल रहा है. पहले से अपने काफी बदलाव हुआ है, जबकि ऐलोपैथिक चिकित्सकों ने कहा था कि उन्हें डायलिसिस की जरूरत है.
इन बीमारी का सटीक इलाज: चिकित्सकों के मुताबिक गठिया की समस्या, चर्म रोग की समस्या, पेट दर्द की समस्या, बीपी बढ़ने और घटना की समस्या, किडनी की समस्या, लीवर की समस्या, अगर किसी व्यक्ति को मस्सा है तो उसे हटाने का इलाज होता है. ऐसे मरीज जो अंग्रेजी दावों को करते हुए बिल्कुल ठीक होने की उम्मीद छोड़ देते हैं, उन मरीजों को दोबारा जीने की उम्मीद मिलती है. इन सब बीमारियों का बिल्कुल सटीक इलाज राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में होता है. चिकित्सकों के मुताबिक इन दावों का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होता है. थोड़ा समय जरूर लगता हैं. लेकिन, बीमारी जड़ से समाप्त होती है.