इंदौर (सिद्धार्थ माछीवाल) : ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर भी तेजी से हिम स्खलन हो रहा है. इस कारण एवरेस्ट पर चढ़ाई करने कई पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है. इससे दुखी होकार एवरेस्ट फतह करने वाली निशा कुमारी ने प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ पौधरोपण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है. गुजरात के बड़ौदा की रहने वाली निशा कुमारी एकमात्र ऐसी एवरेस्टर हैं, जिन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए सबसे लंबी साइकिल यात्रा की. फिलहाल निशा देश और दुनिया के विभिन्न देशों में प्लांटेशन अभियान में जुटी हुई हैं.
एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान हुए हादसों ने झकझोरा
निशा कुमारी को बचपन से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून रहा. होश संभाला तो खेलकूद, एथलीट और दौड़ में अव्वल स्थान बनाया. स्कूलिंग से ही एनसीसी के बाद निशा ने कुछ अलग कर गुजरने के जुनून में एवरेस्ट फतह करने की जिद पकड़ी. घर वालों ने मना किया तो भी निशा नहीं मानी. इसके बाद निशा ने अपने एडवेंचर स्पोर्ट्स कोच निलेश बारोट की मदद से कठिन ट्रेनिंग शुरू करने के बाद एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का अभियान शुरू किया. इन्हीं दिनों जब निशा नेपाल के मानस्लू पर्वतमाला में 7000 फीट ऊंचाई पर माउंटेनिंग कर रही थी तो हिम स्खलन के दौरान उनके कई सहयोगियों की बर्फ में दबकर मौत हो गई. इसी दरमियान उत्तराखंड में भी हिमस्खलन के कारण 29 छात्रों की मौत हो गई.
पर्यावरण संरक्षण को जीवन का लक्ष्य बनाया
एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान ऐसे हादसों ने निशा को क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सोचने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद उन्होंने पर्यावरण और पौधरोपण को ही अपने जीवन का हिस्सा बना लिया. 7 साल की कड़ी मेहनत के बाद 17 में 2024 को निशा ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया. एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान निशा का क्लाइमेट चेंज के कारण एवरेस्ट पर पड़ते प्रभाव से सामना हुआ, जिससे व्यथित निशा ने क्लाइमेट चेंज के खिलाफ 'चेंज बिफोर क्लाइमेट' नामक पौधरोपण अभियान की शुरुआत की. इस अभियान के तहत निशा ने देशभर में पौधे लगाए.

पौधे रोपने के बाद फॉलोअप भी लेती हैं निशा
निशा के अनूठे पौधारोपण अभियान की खास बात यह है कि वह उन स्थानों पर ही पौधे लगाती हैं, जहां पौधों की सतत देखभाल होने के कारण वह पेड़ बन सकें. वह समय निकालकर अपने लगाए गए तमाम पौधों का रिकॉर्ड रखते हुए फॉलोअप भी लेती हैं. हाल ही में निशा तब चर्चा में आईं, जब उन्होंने अपने अभियान के लिए दुनिया की सबसे लंबी साइकिल यात्रा करने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने अपने कोच निलेश बारोट की मदद से लंबे अभ्यास के बाद वडोदरा गुजरात से लंदन तक की करीब 1688 किलोमीटर साइकिल चलाई. उन्होंने दुनिया की सबसे लंबी यात्रा की. 210 दिनों की यात्रा के दौरान वह 16 देशों से गुजरते हुए लोगों को क्लाइमेट चेंज और पौधारोपण के महत्व को समझाती रहीं.
एवरेस्ट से लौटकर उंगलियां खो दी
एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान निशा को फ्रास्टबिट बीमारी हो गई, जिसकी वजह से उनके दोनों हाथों की नौ उंगलियों के नाखून चले गए. सभी उंगलियों के ऊपरी हिस्से बाद में काटने पड़े. इसके बाद निशा का दिल्ली, मुंबई और काठमांडू में इलाज हुआ. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपनी उंगली नहीं होने के बाद भी उन्होंने साइकिलिंग यात्रा और माउंटेनिंग नहीं छोड़ी. अपनी यात्रा के दौरान नेपाल ,चाइना, किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, कजाकिस्तान में क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण का संदेश साइकिलिंग यात्रा के रूप में दिया.

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कोई भी मौसम निशा को नहीं डिगा सका
निशा को इस दौरान रूस में साइकिलिंग करते हुए तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसके बाद लोगों को क्लाइमेट चेंज का संदेश दिया. इस दौरान में लिथुआनिया, पोलैंड, चेक गणराज्य और जर्मनी में भी पर्यावरण का संदेश दिया. नीदरलैंड और बेल्जियम में ट्रांसलेटर के माध्यम से उन्होंने लोगों से चर्चा की और मार्ग में पौधारोपण भी किया. वहीं फ्रांस और लंदन में कोल्ड एटमॉस्फेयर में भी अपने मिशन और क्लाइमेट चेंज से लोगों को रूबरू कराया