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विश्व धरोहर परकोटा की हवेलियां, जो गुलाबी नगरी की शान थी, अपार्टमेंट्स में हो गईं तब्दील - WORLD HERITAGE DAY 2025

जिस परकोटे ने जयपुर को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाई, वह आज अव्यवस्था, अतिक्रमण और उदासीनता की भेंट चढ़ता जा रहा है.

WORLD HERITAGE DAY
जयपुर शहर (ETV Bharat Jaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : April 18, 2025 at 9:31 AM IST

6 Min Read

जयपुर: 2019 का वह ऐतिहासिक दिन जयपुर और उसके वासियों के लिए किसी सपने के साकार होने जैसा था, जब यूनेस्को ने गुलाबी नगरी के परकोटे को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया था. समूचे शहर ने इस मान्यता पर गर्व करते हुए अपनी विरासत का उत्सव मनाया था, पर दुर्भाग्यवश आज वही परकोटा अपनों की बेरुखी, अतिक्रमण और अव्यवस्था का शिकार बन गया है.

एक समय जिसे शहर की संरक्षा की मजबूत दीवार कहा जाता था, आज वह खुद जर्जरता और उपेक्षा की दीवार बन चुकी है. ऐतिहासिक बुर्ज उपेक्षा के अंधेरे में खो रहे हैं. जिन भव्य हवेलियों को संरक्षण का वादा किया गया था, वे अब अपार्टमेंट्स में तब्दील हो चुकी हैं. जहां कभी कुंड और बावड़ियों से शहरवासियों की प्यास बुझती थी, वहां अब अतिक्रमण है. जयपुर के परकोटे की आत्मा आधुनिकता की आंधी में जैसे कहीं गुम हो गई है.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार से खास बातचीत (ETV Bharat Jaipur)

इसे भी पढ़ें- 297 साल का हुआ जयपुर, ब्रह्मांड की परिकल्पना पर बसाया गया था शहर, वास्तु कला और आध्यात्म का अनूठा उदाहरण

सूझबूझ और गणना से बसा था जयपुर: सवाई जयसिंह द्वितीय और वास्तुविद विद्याधर भट्टाचार्य के अथक प्रयासों से 1727 में जयपुर बसाया गया था. भारत का पहला योजनाबद्ध शहर, जहां वास्तुशास्त्र और खगोलशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित गहन गणना के साथ निर्माण हुआ था. नौ वर्ग मील में फैले इस शहर को नवग्रहों की तरह नौ खंडों में विभाजित किया गया. मजबूत परकोटे से घिरे इस शहर में सात दरवाजे बनाए गए, जिन पर सैनिकों की तैनाती रहती थी. दीवारें 20 फीट ऊंची और 9 फीट मोटी थीं, जिनकी मजबूती दुश्मनों के लिए भी भय का कारण थी. झील क्षेत्र में बसे इस शहर में जल संरक्षण की अच्छी व्यवस्था थी. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से बहते जल को कुंड, टांके और बावड़ियों में संरक्षित किया जाता था, जिससे एक आदर्श जल आपूर्ति प्रणाली बनी थी.

WORLD HERITAGE DAY
सूझबूझ और गणना से बसा था जयपुर (ETV Bharat Jaipur)

25 हजार से 25 लाख तक का सफर: जब जयपुर का परकोटा बसाया गया था, तब यहां मात्र 25,000 की आबादी थी. आज इसी परकोटे के भीतर लगभग 25 लाख लोग रह रहे हैं. यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद उम्मीदें थीं कि इस विरासत को संजोने का गंभीर प्रयास होगा, लेकिन हकीकत इससे उलट है. अतिक्रमण, अवैध निर्माण, और प्रशासनिक उदासीनता ने परकोटे की गरिमा को गहरी चोट पहुंचाई है. आज जब विदेशी पर्यटक जयपुर आते हैं और वॉल सिटी की तलाश करते हैं, तो उन्हें कंक्रीट के जंगल और अव्यवस्था के बीच विरासत के बचे-खुचे निशान ढूंढ़ने पड़ते हैं.

इसे भी पढ़ें- जलमहल झील को नुकसान पहुंचाकर जयपुर कैसे स्मार्ट बन सकता है? : सुप्रीम कोर्ट

अपनों की उपेक्षा ने बिगाड़ा परकोटे का स्वरूप: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार, जिस परकोटे को बारीकी से नापा और योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था, वह आज अपनों की बेरुखी के कारण दम तोड़ रहा है, जहां एक समय दीवारों पर एक कील ठोकना भी मना था, वहीं अब उन पर दो-दो, चार-चार मंजिला अवैध इमारतें खड़ी कर दी गई हैं. उनका कहना है कि सूरजपोल से रामगंज की ओर बढ़ते हुए दीवारें धीरे-धीरे गायब हो जाती हैं. हीदा की मोरी पर बुर्ज पूरी तरह इमारतों के पीछे दब गए हैं. रामगंज में तो हालात इतने खराब हैं कि पूरा इलाका अतिक्रमण में डूबा नजर आता है. पुराने बरामदों पर बहुमंजिला निर्माण विरासत की अस्मिता पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगाते हैं.

1727 में जयपुर बसाया गया था
1727 में जयपुर बसाया गया था (ETV Bharat Jaipur)

सिर्फ दरवाजे रह गए प्रतीक के तौर पर: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने कहा कि सूरजपोल से चांदपोल तक बने सात दरवाजे अब सिर्फ दिखावे का प्रतीक बनकर रह गए हैं. दरवाजों के इर्द-गिर्द दीवारें अतिक्रमण और अवैध दुकानों के बीच दम तोड़ रही हैं. पुराने मोखिकाओं से अब ना तो निगरानी संभव है और ना ही इतिहास की कोई झलक. लक्ष्मीकुंड, सरस्वती कुंड और काली कुंड अब इतिहास बन चुके हैं. इन स्थलों से आज मेट्रो गुजर रही है, जो आधुनिकता के नाम पर विरासत को निगलती जा रही है.

इसे भी पढ़ें- सांस्कृतिक, बौद्धिक और शौर्य का संगम है जयपुर...यहां के हर कण में बसती है सौंधी खुशबू

ड्रोन सर्वे में उजागर हुआ सच: 2021 में करवाए गए ड्रोन सर्वे में परकोटे में 3100 अतिक्रमण चिन्हित किए गए थे. इन्हें अलग-अलग श्रेणियों में बांटकर नोटिस भी जारी किए गए थे, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात. न तो अतिक्रमण हटे और न ही कोई ठोस संरक्षण कार्य आरंभ हुआ. इतिहासकार भगत बताते हैं कि परकोटा पारंपरिक रहट पद्धति से तैयार चूने से बना था, जो मौसम के अनुकूल और टिकाऊ था. आज की मरम्मत में प्लास्टर का प्रयोग किया जाता है, जो कुछ महीनों में ही झड़ जाता है. परिणामस्वरूप दीवारें बदरंग और जीर्ण होती जा रही हैं, जिससे देशी-विदेशी पर्यटक भी निराश लौटते हैं.

विश्व धरोहर का तमगा भी खतरे में: देवेंद्र कुमार भगत ने गंभीर चेतावनी दी है कि यदि जल्द सुधार नहीं हुआ तो जयपुर भी लिवरपूल की तरह विश्व धरोहर का दर्जा खो सकता है. पुरानी हवेलियों का अपार्टमेंट में तब्दील होना और परकोटे की दीवारों पर अवैध निर्माण गंभीर संकट के संकेत हैं. हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश भी दिए थे, लेकिन हेरिटेज नगर निगम और हेरिटेज सेल निष्क्रिय बने हुए हैं. भगत ने सुझाव दिया कि परकोटे के संरक्षण के लिए अलग विभाग बनाया जाए, जो इसके संवर्धन और संयोजन का कार्य करे. अन्यथा यह ऐतिहासिक धरोहर किताबों तक सिमट जाएगी और आने वाली पीढ़ियां सिर्फ अफसोस करेंगी.

गुलाबी शहर जयपुर
गुलाबी शहर जयपुर (ETV Bharat Jaipur)

भगत ने कहा कि जयपुर का परकोटा केवल ईंट और चूने की दीवार नहीं है, बल्कि सवाई जयसिंह द्वितीय की दूरदृष्टि और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है. इसकी रक्षा न केवल प्रशासन की, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है. यदि आज भी जागरूकता और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो हम एक ऐसी धरोहर खो देंगे, जिसे फिर कभी वापस नहीं पाया जा सकेगा.

इसे भी पढ़ें- SPECIAL : विश्व विरासत जयपुर के कुछ ऐसे हिस्से...जो यादों के झरोखों में सिमट कर रह गये

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जयपुर: 2019 का वह ऐतिहासिक दिन जयपुर और उसके वासियों के लिए किसी सपने के साकार होने जैसा था, जब यूनेस्को ने गुलाबी नगरी के परकोटे को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया था. समूचे शहर ने इस मान्यता पर गर्व करते हुए अपनी विरासत का उत्सव मनाया था, पर दुर्भाग्यवश आज वही परकोटा अपनों की बेरुखी, अतिक्रमण और अव्यवस्था का शिकार बन गया है.

एक समय जिसे शहर की संरक्षा की मजबूत दीवार कहा जाता था, आज वह खुद जर्जरता और उपेक्षा की दीवार बन चुकी है. ऐतिहासिक बुर्ज उपेक्षा के अंधेरे में खो रहे हैं. जिन भव्य हवेलियों को संरक्षण का वादा किया गया था, वे अब अपार्टमेंट्स में तब्दील हो चुकी हैं. जहां कभी कुंड और बावड़ियों से शहरवासियों की प्यास बुझती थी, वहां अब अतिक्रमण है. जयपुर के परकोटे की आत्मा आधुनिकता की आंधी में जैसे कहीं गुम हो गई है.

इतिहासकार देवेंद्र कुमार से खास बातचीत (ETV Bharat Jaipur)

इसे भी पढ़ें- 297 साल का हुआ जयपुर, ब्रह्मांड की परिकल्पना पर बसाया गया था शहर, वास्तु कला और आध्यात्म का अनूठा उदाहरण

सूझबूझ और गणना से बसा था जयपुर: सवाई जयसिंह द्वितीय और वास्तुविद विद्याधर भट्टाचार्य के अथक प्रयासों से 1727 में जयपुर बसाया गया था. भारत का पहला योजनाबद्ध शहर, जहां वास्तुशास्त्र और खगोलशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित गहन गणना के साथ निर्माण हुआ था. नौ वर्ग मील में फैले इस शहर को नवग्रहों की तरह नौ खंडों में विभाजित किया गया. मजबूत परकोटे से घिरे इस शहर में सात दरवाजे बनाए गए, जिन पर सैनिकों की तैनाती रहती थी. दीवारें 20 फीट ऊंची और 9 फीट मोटी थीं, जिनकी मजबूती दुश्मनों के लिए भी भय का कारण थी. झील क्षेत्र में बसे इस शहर में जल संरक्षण की अच्छी व्यवस्था थी. नाहरगढ़ की पहाड़ियों से बहते जल को कुंड, टांके और बावड़ियों में संरक्षित किया जाता था, जिससे एक आदर्श जल आपूर्ति प्रणाली बनी थी.

WORLD HERITAGE DAY
सूझबूझ और गणना से बसा था जयपुर (ETV Bharat Jaipur)

25 हजार से 25 लाख तक का सफर: जब जयपुर का परकोटा बसाया गया था, तब यहां मात्र 25,000 की आबादी थी. आज इसी परकोटे के भीतर लगभग 25 लाख लोग रह रहे हैं. यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद उम्मीदें थीं कि इस विरासत को संजोने का गंभीर प्रयास होगा, लेकिन हकीकत इससे उलट है. अतिक्रमण, अवैध निर्माण, और प्रशासनिक उदासीनता ने परकोटे की गरिमा को गहरी चोट पहुंचाई है. आज जब विदेशी पर्यटक जयपुर आते हैं और वॉल सिटी की तलाश करते हैं, तो उन्हें कंक्रीट के जंगल और अव्यवस्था के बीच विरासत के बचे-खुचे निशान ढूंढ़ने पड़ते हैं.

इसे भी पढ़ें- जलमहल झील को नुकसान पहुंचाकर जयपुर कैसे स्मार्ट बन सकता है? : सुप्रीम कोर्ट

अपनों की उपेक्षा ने बिगाड़ा परकोटे का स्वरूप: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार, जिस परकोटे को बारीकी से नापा और योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था, वह आज अपनों की बेरुखी के कारण दम तोड़ रहा है, जहां एक समय दीवारों पर एक कील ठोकना भी मना था, वहीं अब उन पर दो-दो, चार-चार मंजिला अवैध इमारतें खड़ी कर दी गई हैं. उनका कहना है कि सूरजपोल से रामगंज की ओर बढ़ते हुए दीवारें धीरे-धीरे गायब हो जाती हैं. हीदा की मोरी पर बुर्ज पूरी तरह इमारतों के पीछे दब गए हैं. रामगंज में तो हालात इतने खराब हैं कि पूरा इलाका अतिक्रमण में डूबा नजर आता है. पुराने बरामदों पर बहुमंजिला निर्माण विरासत की अस्मिता पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगाते हैं.

1727 में जयपुर बसाया गया था
1727 में जयपुर बसाया गया था (ETV Bharat Jaipur)

सिर्फ दरवाजे रह गए प्रतीक के तौर पर: इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने कहा कि सूरजपोल से चांदपोल तक बने सात दरवाजे अब सिर्फ दिखावे का प्रतीक बनकर रह गए हैं. दरवाजों के इर्द-गिर्द दीवारें अतिक्रमण और अवैध दुकानों के बीच दम तोड़ रही हैं. पुराने मोखिकाओं से अब ना तो निगरानी संभव है और ना ही इतिहास की कोई झलक. लक्ष्मीकुंड, सरस्वती कुंड और काली कुंड अब इतिहास बन चुके हैं. इन स्थलों से आज मेट्रो गुजर रही है, जो आधुनिकता के नाम पर विरासत को निगलती जा रही है.

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ड्रोन सर्वे में उजागर हुआ सच: 2021 में करवाए गए ड्रोन सर्वे में परकोटे में 3100 अतिक्रमण चिन्हित किए गए थे. इन्हें अलग-अलग श्रेणियों में बांटकर नोटिस भी जारी किए गए थे, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात. न तो अतिक्रमण हटे और न ही कोई ठोस संरक्षण कार्य आरंभ हुआ. इतिहासकार भगत बताते हैं कि परकोटा पारंपरिक रहट पद्धति से तैयार चूने से बना था, जो मौसम के अनुकूल और टिकाऊ था. आज की मरम्मत में प्लास्टर का प्रयोग किया जाता है, जो कुछ महीनों में ही झड़ जाता है. परिणामस्वरूप दीवारें बदरंग और जीर्ण होती जा रही हैं, जिससे देशी-विदेशी पर्यटक भी निराश लौटते हैं.

विश्व धरोहर का तमगा भी खतरे में: देवेंद्र कुमार भगत ने गंभीर चेतावनी दी है कि यदि जल्द सुधार नहीं हुआ तो जयपुर भी लिवरपूल की तरह विश्व धरोहर का दर्जा खो सकता है. पुरानी हवेलियों का अपार्टमेंट में तब्दील होना और परकोटे की दीवारों पर अवैध निर्माण गंभीर संकट के संकेत हैं. हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश भी दिए थे, लेकिन हेरिटेज नगर निगम और हेरिटेज सेल निष्क्रिय बने हुए हैं. भगत ने सुझाव दिया कि परकोटे के संरक्षण के लिए अलग विभाग बनाया जाए, जो इसके संवर्धन और संयोजन का कार्य करे. अन्यथा यह ऐतिहासिक धरोहर किताबों तक सिमट जाएगी और आने वाली पीढ़ियां सिर्फ अफसोस करेंगी.

गुलाबी शहर जयपुर
गुलाबी शहर जयपुर (ETV Bharat Jaipur)

भगत ने कहा कि जयपुर का परकोटा केवल ईंट और चूने की दीवार नहीं है, बल्कि सवाई जयसिंह द्वितीय की दूरदृष्टि और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है. इसकी रक्षा न केवल प्रशासन की, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है. यदि आज भी जागरूकता और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो हम एक ऐसी धरोहर खो देंगे, जिसे फिर कभी वापस नहीं पाया जा सकेगा.

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