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विश्व पृथ्वी दिवस 2025 : प्रदूषण कम कर रहा सांसें, हो जाएं होशियार, एक्सपर्ट से जानें धरती को कैसे बचाएं - EARTH DAY 2025

पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है.

विश्व पृथ्वी दिवस.
विश्व पृथ्वी दिवस. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : April 22, 2025 at 6:09 AM IST

9 Min Read

लखनऊ : जलवायु परिवर्तन किसी एक कारण से नहीं हुआ है. इसके पीछे बहुत से कारण है. जलवायु परिवर्तन एक दिन में हो गया, ऐसा नहीं है. बरसों से प्रकृति का दोहन हो रहा है. अब उसकी समय अवधि पूरी हो चुकी है. लंबे समय से प्रकृति का दोहन होने के कारण वर्तमान में इस कदर जलवायु परिवर्तन हुआ है, जिसका दुष्परिणाम हर कोई देख रहा है. गर्मी, बरसात और सर्दी यह तीनों मौसम अब अपने समय अवधि पर नहीं होते हैं. इनका निश्चित समय अवधि बदल गया है. यह बातें ईटीवी भारत से पर्यावरणविद् प्रो. अजय आर्या ने कही.

उन्होंने कहा कि हर साल 22 अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए प्रेरित करना है. साथ ही लोगों को उन कारणों के विषय में भी अवगत कराना है, जिनकी वजह से पृथ्वी पर प्रदूषण बढ़ रहा है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. इस साल विश्व पृथ्वी दिवस 2025 का विषय 'हमारी शक्ति, हमारा ग्रह' रखा गया है.

धरती को बचाने के लिए एक्सपर्ट ने दी राय. (Video Credit; ETV Bharat)

रिन्यूएबल एनर्जी पर्यावरण के लिए बेस्ट ऑप्शन : उन्होंने कहा कि यह थीम रिन्यूएबल एनर्जी की ओर ग्लोबल बदलाव लाने और क्लाइमेट चेंज से मुकाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देता है. इस वर्ष का मुख्य लक्ष्य 2030 तक वैश्विक स्तर पर स्वच्छ बिजली उत्पादन को तीन गुना करना है. इस थीम के तहत न केवल रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण के लिए बेस्ट ऑप्शन है, बल्कि यह एक ह्यूमन रिवॉल्यूशन भी ला सकती है, जिससे सभी के लिए कम लागत वाली और लगभग असीमित ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. रिन्यूबल एनर्जी में इन्वेस्ट करने से वायु प्रदूषण कम होगा, गंभीर बीमारियों का खतरा घटेगा और अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के कई कारण हैं. फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और दूषित रसायन, अपशिष्टों का अनुचित निस्तारण, जैविक ईंधन से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं और शोर, पेड़ों की अधाधुंध कटान से बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी और जल स्रोतों का प्रदूषण, अति भूजल दोहन, परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ आदि दीर्घकालिक प्रदूषण का कारण बनते हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रो. अजय आर्या.
लखनऊ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रो. अजय आर्या. (Photo Credit; ETV Bharat)

अमृत सरोवर योजना से होगा बचाव : ग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग पर लंबे समय से काम कर रहे फारूख रहमान खान ने बताया कि प्रदेश सरकार ने 'अमृत सरोवर योजना' के तहत 10,000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का दावा किया है. इन सरोवरों से भूगर्भ जलस्तर सुधार में लाभ होता है और पशुओं को पेयजल भी सुलभ होता है. जनवरी 2025 तक 68,000 से अधिक सरोवरों का निर्माण किया जा चुका है. इस योजना से विभिन्न क्षेत्रों में सतही और भूजल उपलब्धता में वृद्धि हुई है. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. धीरे-धीरे इनकी संख्या और बढ़ाई जाएगी.

उन्होंने बताया, अमृत सरोवर योजना से कई फायदे हैं. ये योजना जल संकट की समस्या को कम करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने और समुदाय के लिए स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराने में मदद करती है. इसके अलावा, यह योजना ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के अवसरों का विस्तार करने और पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद करती है. जन भागीदारी में सुधार, कृषि में सुधार, स्वास्थ्य में सुधार और सबसे अहम जलवायु परिवर्तन से बचाव होगा.

जागरूकता की कमी : उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को लेकर आमजन जागरूक नहीं हैं. भूजल दोहन और बर्बादी के साथ ही कई अन्य प्रकार के प्रदूषण के लिए शिक्षित वर्ग भी जिम्मेदार है. इसकी शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी चाहिए. अपने आस पड़ोस से करने चाहिए. सरकार के कदम उठाने के अलावा हर व्यक्ति को भी अपना पहला कदम आगे उठाना है. अपने पर्यावरण को बचाना है. इसके लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने घर के आसपास साफ सफाई का ध्यान रखें.

पेड़ पौधे लगाए. वनों को काटा न जाए. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्र में जमीन और बाग बगीचे होते हैं. आज के दौर में वह लोग भी अपने बाग बगीचों को खत्म कर रहे हैं. उन्हें जागरूक होने की जरूरत है. ताकि जो हाल शहरीय क्षेत्र का हुआ है, वह हाल ग्रामीण क्षेत्र का न हो. लोग हरे भरे पेड़ पौधों को नष्ट न करें.

नियमों के ताक पर प्लास्टिक का इस्तेमाल : आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सख्त कानून बने हुए हैं. लेकिन, नियमों को ताक पर रखकर लोग प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. दुकानों पर धड़ल्ले से प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. पुलिस विभाग के अधिकारी प्लास्टिक बेचने वाले व समान लेते वक्त ग्राहक का चालान काटते हैं, तो लोगों में डर बनेगा. अब जरूरत है सरकार व पुलिस विभाग को सख्ती बरतनें की.

आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे.
आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे. (Photo Credit; ETV Bharat)

बढ़ता प्रदूषण से बढ़ी दिक्कत : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहा है. अस्थमा, सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर आदि बीमारियां हो रही हैं. वहीं, दूषित जल पीने से डायरिया और अन्य रोग फैल रहे हैं. आंखों में होने वाली एलर्जी से आए दिन लोग परेशान हैं.

इस समय मौसम में काफी बदलाव हुआ है. हमारे वातावरण में जितने भी रासायनिक तत्व हैं वह हमारे नाक और मुंह के जरीए अंदर जा रहा है. जिसके कारण फेफड़ों में दिक्कत, सांस लेने में समस्या वाले मरीज अधिक संख्या में ओपीडी में आ रहे हैं. वहीं,

सिविल अस्पताल की नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. पूजा मिश्रा ने बताया कि इस समय गर्मियों का सीजन है, भयानक गर्मी की शुरुआत हो चुकी है. हवा में धूल के कण मौजूद हैं. यह धूलकण व्यक्ति के आंखों में प्रवेश कर रहे हैं, नतीजतन लोगों की आंखों पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इन दोनों अस्पताल की ओपीडी में ढाई सौ से अधिक मरीज आंखों की एलर्जी के आ रहे हैं. इनमें ज्यादातर मामले प्रदूषण के कारण होने वाली दिक्कत के मरीज हैं.

जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता व शिक्षा अभियान : भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. भास्कर नारायण ने कहा कि इस समय जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है यह भविष्य को दर्शा रहा है. इस पर अधिक काम करने की आवश्यकता है. इसमें सबसे अहम रोल आम नागरिक का है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभावों पर एक व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. विशेष दिवसों को छोड़ दें, तो बाकी दिनों में इसकी किसी को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस विषय पर मुझे लगता है कि आम जनता को अधिक जागरूक होना ही चाहिए. उन्हें स्वयं इस विषय पर चिंतन करना चाहिए.

आईआईटीआर के निदेशक प्रो. भास्कर नारायण.
आईआईटीआर के निदेशक प्रो. भास्कर नारायण. (Photo Credit; ETV Bharat)

जलवायु परिवर्तन पर पाठ्यक्रम : उन्होंने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर विशेष पाठ्यक्रम पहले से ही है, ताकि युवा पीढ़ी इस विषय में अच्छी समझ हासिल कर सकें. लेकिन, इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. अभिभावकों को बच्चों को समझने की आवश्यकता है, जैसा अभिभावक करेंगे वैसा बच्चे सीखेंगे. अगर अभिभावक अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ और अच्छा रखें पेड़ पौधे लगाएं, बच्चे वही चीज सीखेंगे.

स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता सुधार : उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए आईआईटीआर हर वर्ष अपनी रिपोर्ट तैयार कर प्रदेश सरकार को सौंपती है. रिपोर्ट में साल भर का पूरा आंकड़ा होता है कि कब-कब प्रदूषण हुआ और इसके कारक क्या रहे. यूपी के प्रमुख शहरों जैसे लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर हो रही है.

1970 में पृथ्वी दिवस की शुरुआत हुई थी.
1970 में पृथ्वी दिवस की शुरुआत हुई थी. (Photo Credit; ETV Bharat)

भूजल दोहन बचाव के लिए सरकार को भेजे गए सुक्षाव

  1. प्रदेश को 'भूजल सुरक्षित राज्य' बनाने के लिए उथले एक्यूफर्स से हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन पर चरणबद्ध और प्रभावी ढंग से रोक लगाई जाए. इसके लिए जल्द से जल्द एक्यूफर आधारित पृथक निष्कर्षण नीति (separate extraction policy) लाई जाए.
  2. इस नीति के माध्यम से वर्तमान व भावी मांग की पूर्ति के लिए भूजल दोहन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गहरे एक्यूफर्स की क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन करके भूजल आपूर्ति की सतत व समुचित संभावना आंकलित की जाए.
  3. भूजल रिचार्ज, रीयूज, रीसाइकिल व जल कुशल विधाओं की अलग (isolated) रूप से लागू योजनाओं, वर्तमान व्यवस्था के बजाय इन कार्यों के एकीकृत ढंग से क्रियानवयन के लिए 'बहाली व संकटग्रस्त एक्यूफर्स की पुनर्स्थापना' (Restoration of depleted aquifers) की पद्धति प्राथमिकता पर अपनाए जाने के लिए प्रदेश स्तर पर नीतिगत निर्णय लेकर लागू किया जाए. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1990 में विद्यमान भूजल स्थिति व भूजल स्तर को बेंचमार्क माना जाए.
  4. छोटी व बड़ी नदियों के दोनों तटों पर एक किलोमीटर के दायरे में भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. नदियों के फ्लड प्लेन की मैपिंग करके सरंक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाए.
  5. केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन में भूजल दोहन कम प्रतिवेदित (under reported) है. वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिए कृषि व औद्यानिक क्षेत्र में फसल जल उपयोग के आधार पर दोहन की गणना तथा पेयजल, औद्योगिक, व्यवसायिक, अवस्थापना, खनन, मत्स्य क्षेत्रों में दोहन का वास्तविक क्षेत्रीय आकलन किया जाए.

यह भी पढ़ें: आम के लिए मशहूर मलिहाबाद में अब लीची की खेती; जानें कैसे किसान हो रहे मालामाल

लखनऊ : जलवायु परिवर्तन किसी एक कारण से नहीं हुआ है. इसके पीछे बहुत से कारण है. जलवायु परिवर्तन एक दिन में हो गया, ऐसा नहीं है. बरसों से प्रकृति का दोहन हो रहा है. अब उसकी समय अवधि पूरी हो चुकी है. लंबे समय से प्रकृति का दोहन होने के कारण वर्तमान में इस कदर जलवायु परिवर्तन हुआ है, जिसका दुष्परिणाम हर कोई देख रहा है. गर्मी, बरसात और सर्दी यह तीनों मौसम अब अपने समय अवधि पर नहीं होते हैं. इनका निश्चित समय अवधि बदल गया है. यह बातें ईटीवी भारत से पर्यावरणविद् प्रो. अजय आर्या ने कही.

उन्होंने कहा कि हर साल 22 अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए प्रेरित करना है. साथ ही लोगों को उन कारणों के विषय में भी अवगत कराना है, जिनकी वजह से पृथ्वी पर प्रदूषण बढ़ रहा है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. इस साल विश्व पृथ्वी दिवस 2025 का विषय 'हमारी शक्ति, हमारा ग्रह' रखा गया है.

धरती को बचाने के लिए एक्सपर्ट ने दी राय. (Video Credit; ETV Bharat)

रिन्यूएबल एनर्जी पर्यावरण के लिए बेस्ट ऑप्शन : उन्होंने कहा कि यह थीम रिन्यूएबल एनर्जी की ओर ग्लोबल बदलाव लाने और क्लाइमेट चेंज से मुकाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देता है. इस वर्ष का मुख्य लक्ष्य 2030 तक वैश्विक स्तर पर स्वच्छ बिजली उत्पादन को तीन गुना करना है. इस थीम के तहत न केवल रिन्यूएबल एनर्जी और पर्यावरण के लिए बेस्ट ऑप्शन है, बल्कि यह एक ह्यूमन रिवॉल्यूशन भी ला सकती है, जिससे सभी के लिए कम लागत वाली और लगभग असीमित ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. रिन्यूबल एनर्जी में इन्वेस्ट करने से वायु प्रदूषण कम होगा, गंभीर बीमारियों का खतरा घटेगा और अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के कई कारण हैं. फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और दूषित रसायन, अपशिष्टों का अनुचित निस्तारण, जैविक ईंधन से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं और शोर, पेड़ों की अधाधुंध कटान से बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी और जल स्रोतों का प्रदूषण, अति भूजल दोहन, परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ आदि दीर्घकालिक प्रदूषण का कारण बनते हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रो. अजय आर्या.
लखनऊ विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रो. अजय आर्या. (Photo Credit; ETV Bharat)

अमृत सरोवर योजना से होगा बचाव : ग्राउंड वाटर हार्वेस्टिंग पर लंबे समय से काम कर रहे फारूख रहमान खान ने बताया कि प्रदेश सरकार ने 'अमृत सरोवर योजना' के तहत 10,000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का दावा किया है. इन सरोवरों से भूगर्भ जलस्तर सुधार में लाभ होता है और पशुओं को पेयजल भी सुलभ होता है. जनवरी 2025 तक 68,000 से अधिक सरोवरों का निर्माण किया जा चुका है. इस योजना से विभिन्न क्षेत्रों में सतही और भूजल उपलब्धता में वृद्धि हुई है. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. धीरे-धीरे इनकी संख्या और बढ़ाई जाएगी.

उन्होंने बताया, अमृत सरोवर योजना से कई फायदे हैं. ये योजना जल संकट की समस्या को कम करने, जल संरक्षण को बढ़ावा देने और समुदाय के लिए स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराने में मदद करती है. इसके अलावा, यह योजना ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका के अवसरों का विस्तार करने और पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद करती है. जन भागीदारी में सुधार, कृषि में सुधार, स्वास्थ्य में सुधार और सबसे अहम जलवायु परिवर्तन से बचाव होगा.

जागरूकता की कमी : उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को लेकर आमजन जागरूक नहीं हैं. भूजल दोहन और बर्बादी के साथ ही कई अन्य प्रकार के प्रदूषण के लिए शिक्षित वर्ग भी जिम्मेदार है. इसकी शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी चाहिए. अपने आस पड़ोस से करने चाहिए. सरकार के कदम उठाने के अलावा हर व्यक्ति को भी अपना पहला कदम आगे उठाना है. अपने पर्यावरण को बचाना है. इसके लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने घर के आसपास साफ सफाई का ध्यान रखें.

पेड़ पौधे लगाए. वनों को काटा न जाए. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्र में जमीन और बाग बगीचे होते हैं. आज के दौर में वह लोग भी अपने बाग बगीचों को खत्म कर रहे हैं. उन्हें जागरूक होने की जरूरत है. ताकि जो हाल शहरीय क्षेत्र का हुआ है, वह हाल ग्रामीण क्षेत्र का न हो. लोग हरे भरे पेड़ पौधों को नष्ट न करें.

नियमों के ताक पर प्लास्टिक का इस्तेमाल : आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सख्त कानून बने हुए हैं. लेकिन, नियमों को ताक पर रखकर लोग प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. दुकानों पर धड़ल्ले से प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. पुलिस विभाग के अधिकारी प्लास्टिक बेचने वाले व समान लेते वक्त ग्राहक का चालान काटते हैं, तो लोगों में डर बनेगा. अब जरूरत है सरकार व पुलिस विभाग को सख्ती बरतनें की.

आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे.
आईआईटीआर के वैज्ञानिक प्रो. केसी खुल्बे. (Photo Credit; ETV Bharat)

बढ़ता प्रदूषण से बढ़ी दिक्कत : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहा है. अस्थमा, सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर आदि बीमारियां हो रही हैं. वहीं, दूषित जल पीने से डायरिया और अन्य रोग फैल रहे हैं. आंखों में होने वाली एलर्जी से आए दिन लोग परेशान हैं.

इस समय मौसम में काफी बदलाव हुआ है. हमारे वातावरण में जितने भी रासायनिक तत्व हैं वह हमारे नाक और मुंह के जरीए अंदर जा रहा है. जिसके कारण फेफड़ों में दिक्कत, सांस लेने में समस्या वाले मरीज अधिक संख्या में ओपीडी में आ रहे हैं. वहीं,

सिविल अस्पताल की नेत्ररोग विशेषज्ञ डॉ. पूजा मिश्रा ने बताया कि इस समय गर्मियों का सीजन है, भयानक गर्मी की शुरुआत हो चुकी है. हवा में धूल के कण मौजूद हैं. यह धूलकण व्यक्ति के आंखों में प्रवेश कर रहे हैं, नतीजतन लोगों की आंखों पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इन दोनों अस्पताल की ओपीडी में ढाई सौ से अधिक मरीज आंखों की एलर्जी के आ रहे हैं. इनमें ज्यादातर मामले प्रदूषण के कारण होने वाली दिक्कत के मरीज हैं.

जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता व शिक्षा अभियान : भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. भास्कर नारायण ने कहा कि इस समय जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है यह भविष्य को दर्शा रहा है. इस पर अधिक काम करने की आवश्यकता है. इसमें सबसे अहम रोल आम नागरिक का है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभावों पर एक व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. विशेष दिवसों को छोड़ दें, तो बाकी दिनों में इसकी किसी को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस विषय पर मुझे लगता है कि आम जनता को अधिक जागरूक होना ही चाहिए. उन्हें स्वयं इस विषय पर चिंतन करना चाहिए.

आईआईटीआर के निदेशक प्रो. भास्कर नारायण.
आईआईटीआर के निदेशक प्रो. भास्कर नारायण. (Photo Credit; ETV Bharat)

जलवायु परिवर्तन पर पाठ्यक्रम : उन्होंने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर विशेष पाठ्यक्रम पहले से ही है, ताकि युवा पीढ़ी इस विषय में अच्छी समझ हासिल कर सकें. लेकिन, इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. अभिभावकों को बच्चों को समझने की आवश्यकता है, जैसा अभिभावक करेंगे वैसा बच्चे सीखेंगे. अगर अभिभावक अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ और अच्छा रखें पेड़ पौधे लगाएं, बच्चे वही चीज सीखेंगे.

स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता सुधार : उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए आईआईटीआर हर वर्ष अपनी रिपोर्ट तैयार कर प्रदेश सरकार को सौंपती है. रिपोर्ट में साल भर का पूरा आंकड़ा होता है कि कब-कब प्रदूषण हुआ और इसके कारक क्या रहे. यूपी के प्रमुख शहरों जैसे लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर हो रही है.

1970 में पृथ्वी दिवस की शुरुआत हुई थी.
1970 में पृथ्वी दिवस की शुरुआत हुई थी. (Photo Credit; ETV Bharat)

भूजल दोहन बचाव के लिए सरकार को भेजे गए सुक्षाव

  1. प्रदेश को 'भूजल सुरक्षित राज्य' बनाने के लिए उथले एक्यूफर्स से हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन पर चरणबद्ध और प्रभावी ढंग से रोक लगाई जाए. इसके लिए जल्द से जल्द एक्यूफर आधारित पृथक निष्कर्षण नीति (separate extraction policy) लाई जाए.
  2. इस नीति के माध्यम से वर्तमान व भावी मांग की पूर्ति के लिए भूजल दोहन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गहरे एक्यूफर्स की क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन करके भूजल आपूर्ति की सतत व समुचित संभावना आंकलित की जाए.
  3. भूजल रिचार्ज, रीयूज, रीसाइकिल व जल कुशल विधाओं की अलग (isolated) रूप से लागू योजनाओं, वर्तमान व्यवस्था के बजाय इन कार्यों के एकीकृत ढंग से क्रियानवयन के लिए 'बहाली व संकटग्रस्त एक्यूफर्स की पुनर्स्थापना' (Restoration of depleted aquifers) की पद्धति प्राथमिकता पर अपनाए जाने के लिए प्रदेश स्तर पर नीतिगत निर्णय लेकर लागू किया जाए. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1990 में विद्यमान भूजल स्थिति व भूजल स्तर को बेंचमार्क माना जाए.
  4. छोटी व बड़ी नदियों के दोनों तटों पर एक किलोमीटर के दायरे में भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. नदियों के फ्लड प्लेन की मैपिंग करके सरंक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाए.
  5. केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन में भूजल दोहन कम प्रतिवेदित (under reported) है. वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिए कृषि व औद्यानिक क्षेत्र में फसल जल उपयोग के आधार पर दोहन की गणना तथा पेयजल, औद्योगिक, व्यवसायिक, अवस्थापना, खनन, मत्स्य क्षेत्रों में दोहन का वास्तविक क्षेत्रीय आकलन किया जाए.

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