भरतपुर: राजस्थान की रेत और सूखी हवाओं के बीच केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान एक ऐसा स्थान है, जहां जीवन अब भी शिद्दत से धड़कता है. कभी यहां के जलाशयों में ऑटर तैरते थे और कैट फिश की हलचल होती थी, लेकिन समय बदला, मौसम रूखा हुआ, पानी की कमी से जलस्रोत सूखने लगे. इन बदलावों की मार सबसे पहले उन्हीं नाजुक प्रजातियों पर पड़ी, जो इस तंत्र की रीढ़ थीं, फिर भी घना आज भी राजस्थान की सबसे समृद्ध जैव विविधता को अपने छोटे से क्षेत्र में संजोए हुए है.
यह मात्र एक अभयारण्य नहीं, बल्कि उन हजारों प्रजातियों की जीवित आशा है, जिन्हें एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र चाहिए. घना में मौजूद पक्षी, सरीसृप, उभयचर, कछुए, तितलियां और वनस्पतियां अब भी समृद्ध जैव विविधता की मिसाल पेश कर रहे हैं.
बदलते मौसम की मार : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान कभी वर्ष भर जल से भरा रहता था. भरतपुर रियासत द्वारा बनवाए गए इस मानव निर्मित जलाशय का उपयोग पहले शिकार के लिए होता था, लेकिन समय के साथ यह एक पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित हुआ, लेकिन बीते कुछ वर्षों में मानसून की अनियमितता, स्थानीय जल स्रोतों का क्षय और अपर्याप्त जल आपूर्ति के कारण यहां के प्राकृतिक आवास पर सीधा असर पड़ा. जिन जीवों के लिए पानी जीवन था जैसे कि ऑटर, कैट फिश और कुछ दुर्लभ जल पक्षी वे या तो लुप्त हो गए या पलायन कर गए.

जैव विविधता की अब भी गूंज : उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि मौसमिय बदलावों के बावजूद घना आज भी राजस्थान का सबसे समृद्ध जैव विविधता क्षेत्र बना हुआ है. यहां पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां देखी जाती हैं, जिनमें स्थानीय के साथ-साथ प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं. साथ ही सरीसृप, तितलियां, उभयचर, कछुए, स्तनधारी जीव और दुर्लभ वनस्पतियों की उपस्थिति इसे एक पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र बनाती है. इतने छोटे क्षेत्र में इतनी व्यापक जैव विविधता का होना खुद में एक अद्भुत बात है. यह इस बात का प्रमाण है कि अगर प्रकृति को थोड़ा भी संरक्षण मिले, तो वह खुद को संभाल लेती है.

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पुनर्स्थापना की कोशिशें : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने के प्रयास भी जारी हैं. कुछ साल पहले तक यहां काले हिरण सामान्य रूप से देखे जाते थे, लेकिन वे भी विलुप्त हो गए थे. अब रिइंट्रोड्यूस प्रोग्राम के तहत इन्हें फिर से यहां बसाया गया है और उनकी संख्या में वृद्धि भी दर्ज की गई है. ऑटर को भी पुनः लाने की योजना पर काम चल रहा है, जिसमें उनके प्राकृतिक आवास और भोजन की उपलब्धता को प्राथमिकता दी जा रही है.

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान बीते दो दशक से जल संकट झेल रहा है. घना का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र पानी पर निर्भर है और बिना स्थायी जल स्रोत के यहां की जैव विविधता धीरे-धीरे क्षीण होती जाएगी. यदि पांचना बांध से तय मात्रा में पानी हर साल उपलब्ध हो तो न केवल विलुप्त होती प्रजातियों की वापसी संभव है, बल्कि यह उद्यान फिर से जल-जीवों और प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग बन सकता है.

22 साल से मनाया जा रहा जैव विविधता दिवस : अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस हर वर्ष 22 मई को जैव विविधता के महत्व और संरक्षण को लेकर वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इसकी नींव 1992 में पड़ी, जब ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में जैव विविधता पर कन्वेंशन के पाठ को आधिकारिक रूप से अपनाया गया. इसके एक वर्ष बाद, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 मई को जैव विविधता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.
वर्ष 2000 में इस तिथि को औपचारिक मान्यता दी गई, ताकि सभी देश जैव विविधता संरक्षण के प्रति अपने दायित्व को समझें और जागरूकता अभियान चला सकें. 2001 में इस दिवस को संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष संकल्प के तहत वैश्विक स्तर पर मान्यता दी गई, जिससे यह दुनिया भर के पर्यावरणीय और विकासशील एजेंडे में एक प्रमुख तिथि बन गई.

दिवस मनाने का उद्देश्य : इस दिवस का मूल उद्देश्य जैव विविधता के महत्व को समझाना, उसके संरक्षण को बढ़ावा देना और इसके क्षरण को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्यवाही को प्रेरित करना है. जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और अंधाधुंध दोहन के चलते दुनिया भर में जैव विविधता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

ऐसे में यह दिवस हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के हर छोटे से जीव और पौधे का इस पारिस्थितिकी तंत्र में विशेष स्थान है. आज यह दिवस कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचे के कार्यान्वयन को समर्थन देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है, जो 2030 तक जैव विविधता हानि को रोकने और पुनर्स्थापित करने के लिए एक वैश्विक रोडमैप प्रदान करता है.