बूंदी : शहर के रनिंग क्लब के सदस्य पिछले कुछ वर्षों से साइकिल चलाकर बूंदी सहित प्रदेश के युवाओं को जागरूक करने के साथ फिट बूंदी-फिट इंडिया का संदेश दे रहे हैं. बूंदी में इन युवाओं की जागरूकता से अन्य लोग प्रभावित हुए. इनमें सबसे विशेष बात यह है कि यह शहर में साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं और कई सदस्य एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर तक साइकिलिंग कर चुके हैं. साइकिल चलाओ मुहिम की शुरुआत कोरोना काल से 6 युवाओं के समूह ने की थी. इनसे प्रेरित होकर साइकिल चालकों के दल में वर्तमान में 100 से ज्यादा युवा जुड़ चुके हैं.
साइकिल चलाना एक थेरेपी : बूंदी रनिंग क्लब के अध्यक्ष शक्ति तोषनीवाल ने बताया कि हमारा क्लब बना हुआ है, जिसमें हम सभी युवाओं को साइकिलिंग, योगा और रनिंग के माध्यम से फिट रखना चाहते हैं. कोविड के समय हमने देखा कि लगातार शरीर में इम्यूनिटी कमजोर होने से लोग कोरोना का शिकार हो रहे थे. इसी समय हमने आमजन और युवाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए साइकिलिंग क्लब का गठन किया. उस समय हमने बूंदी से कोटा, रावतभाटा, भीमलत, केशवराय पाटन, इंद्रगढ़, सवाई माधोपुर, देवली, टोक यहां तक निवाई तक की कई किलोमीटर तक साइकिलिंग कर लोगों को फिट रहने का संदेश दिया.
साइकिलिंग को बढ़ावा देने के पीछे उद्देश्य : तोषनीवाल ने बताया कि फिट बूंदी फिट इंडिया से लगातार युवा जागरूक होते गए, शुरू में 6 युवाओं का दल था, देखते ही देखते कई युवा साइकिलों के साथ हमारे साथ शामिल हो गए. साइकिलिंग एक थेरेपी है, जिससे शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है. साइकिलिंग को बढ़ावा देने के पीछे का एक उद्देश्य यह भी है कि इससे पर्यावरण संतुलित रहता है. कोई प्रदूषण नहीं होता है. इसमें कोई पैसा भी नहीं लगता है. हेल्थ अवेयरनेस, शोर-वायु प्रदूषण कम करने के साथ हमारा मकसद लोगों को हेरिटेज वॉक, पौधे लगाने का संदेश भी देना है. उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में घोषित किया है, जो कि पर्यावरण के अनुकूल है.
यूरोपीय देशों के नागरिक साइकिल का उपयोग करते हैं : गोविंद प्रजापत बताते हैं कि वह स्कूल के दिनों से अब तक साइकिल ही चलाते आ रहे हैं. चाहे कॉलेज जाना हो या कोचिंग वह साइकिल से ही जाते हैं. यूरोपीय देशों के नागरिक साइकिल का उपयोग करते हैं तो क्यों न हम बूंदीवासी साइकिल का प्रयोग कर खुद को फिट रखें. साइकिल चलाने से आर्थिक और शारीरिक लाभ होता है. आर्थिक लाभ के रूप में हमारे पेट्रोल के पैसे बच जाते हैं. वहीं, शारीरिक लाभ के रूप में हमें कई बीमारियों से सुरक्षा कवच मिलता है. हम साइकिलिंग को लेकर लोगों को जागरूक करने में लगे हैं. अगर प्रतिदिन नहीं भी हो तो सप्ताह में एक या दो बार साइकिल चलाना चाहिए.

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कोविड के बाद काफी युवा जागरूक हुए : योग गुरु दीपक गुर्जर ने बताया कि हम सभी संगठन के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हैं. इसके लिए ग्रुप के माध्यम से भी जिले के अन्य कस्बों में साइकिल चलाकर युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं. कोविड के बाद लोग काफी जागरूक हुए हैं. उनकी दिनचर्या में बहुत हद तक परिवर्तन नजर आ रहा है. साइकिल चलाकर हम स्वस्थ जीवनशैली अपना सकते हैं.
100 किलोमीटर तक की साइकिलिंग कर चुके : भूपेंद्र योगी ने बताया कि बूंदी खेल कूद विकास समिति के नाम से संगठन चलता है. इसमें हम साइकिल रैली या अन्य प्रतियोगियों के माध्यम से भी लोगों को साइकिल चलाकर युवाओं को फिट रहने के लिए जागरूक कर रहे हैं. लोगों को कम से कम गाड़ियों का इस्तेमाल करने और ज्यादा से ज्यादा साइकिल का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. हम सभी लोग भी शहर में तो साइकिल का ही उपयोग करते हैं. क्लब के सदस्य लोगों को फिट रखने के उद्देश्य से कई बार तो 100 किलोमीटर तक की साइकिलिंग तक कर लेते हैं.
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साइकिल रैली निकाल दिया फिटनेस का संदेश : महेश नवमी के उपलक्ष्य में आयोजित हो रहे कार्यक्रमों की श्रृंखला में श्रीमाहेश्वरी पंचायत ने वाहन रैली के बजाय 150 से ज्यादा साइक्लिस्ट की रैली निकाली. फिटनेस के लिए साइकिल चलाने का संदेश दिया है. शक्ति तोषनीवाल बताते हैं कि कोरोनाकाल में समय मिला तो लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना शुरू किया. माहेश्वरी पंचायत की ओर से महेश नवमी पर आयोजित हो रहे कार्यकमों की कड़ी में वाहन रैली के बजाय साइकिल रैली निकाल कर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया.
जीवन का उद्देश्य सिखाती है साइकिल : चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रभाकर व्यास साइकिल से अपने कार्यालय पहुंचे और कार्य क्षेत्र का दौरा किया. नियमित 25 से 30 किलोमीटर रोज साइकिल चलाने वाले डॉ. व्यास ने बताया कि साइकिल पर्यावरण के प्रति समरसता दर्शाती हुई खुशहाल जीवन के लिए नैतिक मूल्यों का संदेश देती है. साइकिल के माध्यम से जीवन के उद्देश्य को समझाते हुए डॉ. व्यास ने बताया कि पैडल पर सही दिशा में किए गए कर्म के फल स्वरुप दोनों पहियों के रूप में सामाजिक और पारिवारिक दायित्व की निरंतरता में सामंजस्य स्थापित करते हुए अग्रसर होते रहना ही मूल मंत्र है. पहले आवागमन का मुख्य साधन साइकिल हुआ करती थी. बढ़ते भौतिकतावाद और आधुनिकरण से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर कुछ रूप में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.