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वन भूमि पर मिलेगा मालिकाना हक, कब्जे के बाद क्या बेची जा सकती है ये जमीन - WORKSHOP ON FRA IN MANDI

मंडी में वन अधिकार अधिनियम पर कार्यशाला का आयोजन किया गया.

वन अधिकार अधिनियम पर कार्यशाला का आयोजन
वन अधिकार अधिनियम पर कार्यशाला का आयोजन (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : April 3, 2025 at 8:26 PM IST

4 Min Read

शिमला: वन अधिकार अधिनियम पर छोटी काशी मंडी में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में लंबित पड़े मामलों को अधिकारियों की ओर से जानबूझ कर लटकाने का मुद्दा खूब गर्माया. इस पर राजस्व मंत्री ने अधिकारियों को चेतावनी दे डाली.

राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि, 'सरकार ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को आम लोगों को ध्यान में रखकर बनाया है. इस अधिनियम को पूरी तरह से सरल बनाया गया है और संबधित अधिकारी अपनी ओर से इस अधिनियम में कोई भी कानून न जोडें. साथ ही गैर कानूनी तरीक से कार्य करने पर भी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी. इस अधिनियम के तहत सरकार तीन पुश्तों से वन विभाग की जमीन पर अपना निर्वाह कर रहे लोगों को मालिकाना हक देने जा रही है. अधिकार मिलने के बाद ये लोग जमीन को केवल इस्तेमाल कर सकते हैं, इस जमीन को कभी बेचा नहीं जा सकेगा. मालिकाना हक मिलने के बाद ये जमीन पुश्त दर पुश्त आने वाली पीढ़ियों के नाम चढ़ेगी.'

वन अधिकार अधिनियम पर कार्यशाला का आयोजन (ETV BHARAT)

एफसीए और एफआरए दोनों ही अलग-अलग कानून

वहीं, मंत्री जगत सिंह नेगी ने बताया कि, 'एफसीए और एफआरए दोनों ही अलग-अलग कानून हैं. कई अधिकारी एफआरए को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति में हैं. इस कार्यशाला में उन अधिकारियों को वन अधिकार अधिनियम की बारीकियों से अवगत करवाने का प्रयास किया गया है. आने वाले समय मे इस तरह की कार्यशालाओं का उपमंडल स्तर पर भी आयोजन किया जाएगा. इस अधिनियम के तहत लंबे समय से लोगों के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारियों को भी विभाग के साथ काम करने का मौका दिया जाएगा, ताकि लोगों को जल्द से जल्द इस अधिनियम का लाभ मिल सके. इस अधिनियम को पूरी तहस से आम जनता के लिए ही बनाया गया है और एफआरए (2) (3)में सड़क, स्कूल भवन के साथ 13 तरह के अन्य कार्य 12 बीघा तक बिना एफसीए रिपोर्ट के पूर्ण किए जा सकते हैं.'

कई अधिकारी रहे नदारद

गौरतलब है कि मंडी शहर के संस्कृति सदन में संपन्न हुई इस कार्यशाला में मंडी डिवीजन के तहत आने वाले जिलों के अधिकारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, जिसमें मंडी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, बिलासपुर और हमीरपुर जिला के उपायुक्त, एसडीएम, उपमंडल स्तरीय समिति के सदस्य शामिल रहे. इस कार्यशाला में मंडी व इसके साथ लगते अन्य जिलों के हलकों के कई विधायक भी विशेष रूप से मौजूद रहे. बैठक से कुछ अधिकारी नदारद भी पाए गए, जिन्हें मंत्री जगत सिंह नेगी ने शिमला तलब किया है.

ऐसे करना होगा आवेदन

वहीं, गुरुवार को कांगड़ा के धर्मशाला में आयोजित कार्यशाला में वन मंत्री ने कहा था कि, 'वन भूमि पर निर्वाह करने वाले लोगों को कब्जे के लिए निर्धारित फार्म पर आवेदन करना होगा. इसके लिए ग्राम सभा का अनुमोदन और दो लोगों की गवाही जरूरी होगी. इसके अलावा कोई खर्चा नहीं होगा. दावेदार का कब्जा इस भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पुश्तों तक होना चाहिए. आवेजन फार्म पर पत्नी का नाम भी जरूरी होगा पत्नी बराबर की हिस्सेदार होगी. अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग से हैं तो प्रमाण पत्र लगाना होगा, सामान्य वर्ग से हैं तो गांव के निवासी होने का पहचान पत्र वोटर आईडी कार्ड या आधार कार्ड लगाना होगा. साक्ष्य के लिए दो बुजुर्गों के बयान लगेंगे जो पुष्टि करेंगे कि दावेदार का कब्जा इस भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पुश्तों तक का है, जिस भूमि पर दावा जता रहे हैं उसकी लंबाई और चैड़ाई की जानकारी खुद नक्शा नजरी बनवा कर दें सकते हैं यदि उसका राजस्व रिकॉर्ड नहीं ह.। अन्यथा भूमि का राजस्व रिकॉर्ड पेश करना होगा.'

ये भी पढ़ें: हिमाचल में 3 पुश्तों से वन भूमि पर कब्जा होगा नियमित, 50 बीघा तक जमीन का मिलेगा मालिकाना हक

शिमला: वन अधिकार अधिनियम पर छोटी काशी मंडी में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में लंबित पड़े मामलों को अधिकारियों की ओर से जानबूझ कर लटकाने का मुद्दा खूब गर्माया. इस पर राजस्व मंत्री ने अधिकारियों को चेतावनी दे डाली.

राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि, 'सरकार ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को आम लोगों को ध्यान में रखकर बनाया है. इस अधिनियम को पूरी तरह से सरल बनाया गया है और संबधित अधिकारी अपनी ओर से इस अधिनियम में कोई भी कानून न जोडें. साथ ही गैर कानूनी तरीक से कार्य करने पर भी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी. इस अधिनियम के तहत सरकार तीन पुश्तों से वन विभाग की जमीन पर अपना निर्वाह कर रहे लोगों को मालिकाना हक देने जा रही है. अधिकार मिलने के बाद ये लोग जमीन को केवल इस्तेमाल कर सकते हैं, इस जमीन को कभी बेचा नहीं जा सकेगा. मालिकाना हक मिलने के बाद ये जमीन पुश्त दर पुश्त आने वाली पीढ़ियों के नाम चढ़ेगी.'

वन अधिकार अधिनियम पर कार्यशाला का आयोजन (ETV BHARAT)

एफसीए और एफआरए दोनों ही अलग-अलग कानून

वहीं, मंत्री जगत सिंह नेगी ने बताया कि, 'एफसीए और एफआरए दोनों ही अलग-अलग कानून हैं. कई अधिकारी एफआरए को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति में हैं. इस कार्यशाला में उन अधिकारियों को वन अधिकार अधिनियम की बारीकियों से अवगत करवाने का प्रयास किया गया है. आने वाले समय मे इस तरह की कार्यशालाओं का उपमंडल स्तर पर भी आयोजन किया जाएगा. इस अधिनियम के तहत लंबे समय से लोगों के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारियों को भी विभाग के साथ काम करने का मौका दिया जाएगा, ताकि लोगों को जल्द से जल्द इस अधिनियम का लाभ मिल सके. इस अधिनियम को पूरी तहस से आम जनता के लिए ही बनाया गया है और एफआरए (2) (3)में सड़क, स्कूल भवन के साथ 13 तरह के अन्य कार्य 12 बीघा तक बिना एफसीए रिपोर्ट के पूर्ण किए जा सकते हैं.'

कई अधिकारी रहे नदारद

गौरतलब है कि मंडी शहर के संस्कृति सदन में संपन्न हुई इस कार्यशाला में मंडी डिवीजन के तहत आने वाले जिलों के अधिकारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, जिसमें मंडी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, बिलासपुर और हमीरपुर जिला के उपायुक्त, एसडीएम, उपमंडल स्तरीय समिति के सदस्य शामिल रहे. इस कार्यशाला में मंडी व इसके साथ लगते अन्य जिलों के हलकों के कई विधायक भी विशेष रूप से मौजूद रहे. बैठक से कुछ अधिकारी नदारद भी पाए गए, जिन्हें मंत्री जगत सिंह नेगी ने शिमला तलब किया है.

ऐसे करना होगा आवेदन

वहीं, गुरुवार को कांगड़ा के धर्मशाला में आयोजित कार्यशाला में वन मंत्री ने कहा था कि, 'वन भूमि पर निर्वाह करने वाले लोगों को कब्जे के लिए निर्धारित फार्म पर आवेदन करना होगा. इसके लिए ग्राम सभा का अनुमोदन और दो लोगों की गवाही जरूरी होगी. इसके अलावा कोई खर्चा नहीं होगा. दावेदार का कब्जा इस भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पुश्तों तक होना चाहिए. आवेजन फार्म पर पत्नी का नाम भी जरूरी होगा पत्नी बराबर की हिस्सेदार होगी. अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग से हैं तो प्रमाण पत्र लगाना होगा, सामान्य वर्ग से हैं तो गांव के निवासी होने का पहचान पत्र वोटर आईडी कार्ड या आधार कार्ड लगाना होगा. साक्ष्य के लिए दो बुजुर्गों के बयान लगेंगे जो पुष्टि करेंगे कि दावेदार का कब्जा इस भूमि पर 13 दिसंबर 2005 से पहले तीन पुश्तों तक का है, जिस भूमि पर दावा जता रहे हैं उसकी लंबाई और चैड़ाई की जानकारी खुद नक्शा नजरी बनवा कर दें सकते हैं यदि उसका राजस्व रिकॉर्ड नहीं ह.। अन्यथा भूमि का राजस्व रिकॉर्ड पेश करना होगा.'

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