रामनगर: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर फैले घास के मैदान यहां के शाकाहारी जीवों जैसे चीतल, पाड़ा और सांभर के लिए मुख्य भोजन क्षेत्र हैं, यही हिरण बाघों का प्रमुख शिकार होते हैं. इस पूरी श्रृंखला का संतुलन इन घास के मैदानों पर ही टिका है, लेकिन अब यह पारिस्थितिकी तंत्र लैंटाना नाम की एक विदेशी झाड़ी से खतरे में है. लैंटाना का पौधा बहुत तेजी से फैलता है और अन्य देशी घासों को नष्ट कर देता है. सबसे बड़ी समस्या ये है कि ना तो इसे कोई शाकाहारी जीव खाता है और ना ही इससे पर्यावरण को कोई लाभ होता है. नतीजतन, ये झाड़ी धीरे-धीरे पूरे ग्रासलैंड पर कब्जा कर रही है, जिससे बाघों के लिए शिकार की उपलब्धता कम होती जा रही है.
कॉर्बेट प्रशासन ने इस गंभीर स्थिति को भांपते हुए अब एक बार फिर लैंटाना उन्मूलन का काम शुरू करने की योजना बनाई है. इसके लिए प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सी आर बाबू द्वारा विकसित एक प्रभावशाली पद्धति को अपनाया जा रहा है. जिसमें लैंटाना को जड़ से हटाकर देशी घासों और वनस्पतियों को दोबारा रोपा जाएगा.
ग्रासलैंड कॉर्बेट के लिए बहुत जरूरी है, खासकर बाघों के लिए, लैंटाना की वजह से इनका स्वरूप बिगड़ रहा है, एक वैज्ञानिक तरीके से इसे हटाकर फिर से ग्रासलैंड को पुनर्जीवित किया जाएगा, जिससे बाघों और अन्य वन्यजीवों का पारिस्थितिक तंत्र मजबूत होगा.
डॉ. साकेत बडोला, डायरेक्टर, सीटीआर
सी आर बाबू की पद्धति में लैंटाना को मैन्युअली हटाने के साथ-साथ फॉलोअप में बार-बार निगरानी और पुनः वृक्षारोपण शामिल है. इसका सफल परीक्षण पहले भी देश के कई संरक्षित क्षेत्रों में हो चुका है. बता दें कि ग्रासलैंड किसी भी वन क्षेत्र के लिए रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं और इनका संरक्षण पूरे वन्यजीव तंत्र की रक्षा करना है, कॉर्बेट प्रशासन का यह कदम बाघ संरक्षण की दिशा में एक अहम पहल है. उम्मीद की जा रही है कि इस प्रयास से बाघों के पर्यावास को फिर से संतुलित किया जा सकेगा. बता दें कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का प्राकृतिक वातावरण विशेष रूप से बाघों और उनके शिकार के लिए आदर्श माना जाता है, लेकिन अब इस जैविक संतुलन पर लैंटाना खतरा पैदा कर रहा है.
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