कुल्लू: भारतवर्ष में लोग जहां अब जंक फूड को अलविदा कह रहे हैं. तो वही फिर से लोग प्राकृतिक कृषि उत्पादों की ओर भी अग्रसर हुए हैं। ऐसे में छोटे बच्चों की जिद को पूरा करने के लिए अभिभावकों को कई बार उन्हें जंक फूड भी खिलाना पड़ रहे हैं. तो वहीं किस तरह से छोटे बच्चों की सेहत भी बनी रहे। इसकी भी चिंता उन्हें खाई जा रही है, लेकिन कुल्लू में जंक फूड का जलवा अब फीका पड़ने लगा है, क्योंकि अनुग्रह स्वयं सहायता समूह ने बच्चों और बड़ों के दिल जीतने वाला जादुई हथियार लॉन्च कर दिया है.
पालक और चुकंदर के रस से बने रंग-बिरंगे, पौष्टिक मोमो! ये आटे के मोमो न सिर्फ स्वाद में लाजवाब हैं, बल्कि सेहत का खजाना भी हैं. ढालपुर मेले में ये स्टॉल बच्चों की जिद और मम्मियों की चिंता का सुपरहिट फूड बनाया है. ये चाइनीज और ऑर्गेनिक फूड का फ्यूजन है.
पालक-चुकंदर से रंग-बिरंगे मोमो
महिला अनुग्रह स्वयं सहायता समूह ने पालक और चुकंदर के रस से रंग-बिरंगे मोमो तैयार किए हैं. ये मोमो मैदा की बजाय आटे से बनाए जाते हैं, ताकि स्वाद के साथ बच्चों की सेहत भी बनी रहे. कुल्लू के ढालपुर मैदान में पीपल मेले के अवसर पर राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत समूह ने एक स्टॉल लगाया है. यहां कोदरा के आटे से सिडू और पालक, चुकंदर के रस और आटे से बने मोमो तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें बच्चे और बड़े दोनों पसंद कर रहे हैं.
महिलाओं की मेहनत और कमाई
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सुबह से शाम तक मोमो और सिडू बनाने में जुटी हैं, जिससे उनकी आमदनी बढ़ रही है और लोगों को नया स्वाद मिल रहा है. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत मुफ्त स्टॉल उपलब्ध कराया गया है, जहां समूह ने पहली बार स्टॉल लगाया है. समूह की सदस्य पायल राणा ने बताया कि उनका समूह दो साल से चल रहा है और इसमें सात महिलाएं शामिल हैं.
बेटी के आइडिया से मिली प्रेरणा
पायल ने बताया कि स्टॉल लगाने की चर्चा अपनी बेटी से की, जिसने सुझाव दिया कि बाजार में हर जगह मोमो मिलते हैं, लेकिन पौष्टिक मोमो कोई नहीं बनाता. बेटी ने आटा, पालक और चुकंदर के रस में गूंथकर पौष्टिक सब्जियों से मोमो बनाने का विचार दिया. यह आइडिया समूह को पसंद आया और महिलाओं ने मिलकर इसे सफल बनाया. मेले में लोग इन मोमो के स्वाद की खूब तारीफ कर रहे हैं. लोग कहते हैं कि इससे बच्चे पालक और चुकंदर का सेवन कर रहे हैं, जिससे खून की कमी नहीं होगी.

समूह की अन्य गतिविधियां
पायल ने बताया कि समूह की महिलाएं बुनाई, सिलाई और स्थानीय व्यंजन, अचार व अन्य खाद्य पदार्थ बनाकर बाजार में ला रही हैं. राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन से अनुदानित ऋण भी मिलता है, जिससे आर्थिक मदद मिल रही है. मोमो में अजीनोमोटो का उपयोग नहीं होता और ताजी सब्जियां डाली जाती हैं, ताकि पौष्टिकता बनी रहे. पालक के रस से बने मोमो को ग्रीन मोमो और चुकंदर के रस से बने मोमो को पिंक मोमो के रूप में बेचा जा रहा है.

महिलाओं को सशक्तिकरण
समूह की सदस्य भाग दासी ने कहा कि स्वयं सहायता समूह से महिलाओं को आर्थिक लाभ के साथ अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है. सिलाई, बुनाई और अन्य कार्य सीखकर उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है. उन्होंने अन्य महिलाओं को भी समूह से जुड़ने की सलाह दी. समूह की हेमलता ने बताया कि उन्होंने ब्यूटीशियन कोर्स किया और समूह के कार्यों में योगदान दे रही हैं. इससे उनका परिवार चलाना आसान हुआ है.
बच्चे कर रहे खूब पसंद
मेले में मोमो का स्वाद लेने आए अंकित शर्मा, पूनम ठाकुर और कृष्ण कुमार ने कहा कि बच्चे मेले में जंक फूड की मांग करते हैं, लेकिन रंग-बिरंगे मोमो देखकर वे इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं. आटे से बने होने के कारण ये मोमो बच्चों की सेहत के लिए भी सुरक्षित हैं.
ये भी पढ़ें: हिमाचल का 'पहलगाम' है शाघड़ का मैदान, इसे कहते हैं हरियाली का 'समंदर'