मंडी: हिमाचल की हरी-भरी वादियों से निकली ये कहानी बताती है कि गांव की महिलाएं जब ठान लें, तो वे आत्मनिर्भरता की उड़ान में किसी से पीछे नहीं रहतीं. मंडी जिले की बल्ह घाटी की रक्षा देवी ने साबित किया है कि हुनर, मेहनत और सही मार्गदर्शन के साथ एक साधारण गृहिणी भी सफल उद्यमी बन सकती है. हिमाचल सरकार की 'जायका' योजना के अंतर्गत चल रही फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना ने रक्षा देवी और उनके जैसे कई महिलाओं की जिंदगी बदल दी है.. अब वे सिर्फ घर नहीं संभालतीं, बल्कि लाखों रुपये का कारोबार भी संभाल रही हैं.
‘जायका’ ने बदली किस्मत
हिमाचल प्रदेश सरकार और 'जायका' के सहयोग से शुरू की गई फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना ने प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आत्मविश्वास की नई किरण जगाई है. मंडी जिले की बल्ह घाटी के मैरमसीत क्षेत्र के बैरी गांव की रक्षा देवी इसका जीवंत उदाहरण हैं. कभी एक साधारण गृहिणी रहीं रक्षा देवी ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर फूड प्रोसेसिंग में सफलता की नई इबारत लिखी है.
रक्षा देवी ने कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर से मल्टीग्रेन सिड्डू, कोदरे की चाय, कचौरी जैसे उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने क्षेत्र के अन्य महिलाओं के साथ मिलकर 'जायका' परियोजना के अंतर्गत कृषि एवं हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण और विक्रय केंद्र शुरू किया.
महीने की कमाई एक लाख रुपये
सुंदरनगर में एसडीएम कार्यालय के पास ‘शीतला स्वयं सहायता समूह’ के नाम से खोले गए इस विक्रय केंद्र में अब वे न केवल अपने उत्पाद बेचती हैं, बल्कि 15 अन्य स्वयं सहायता समूहों की भी मार्केटिंग कर रही हैं. महीने की कमाई लगभग एक लाख रुपये तक पहुंच गई है.
यहां बिकने वाले उत्पादों में मल्टीग्रेन आटा, जौ, कोदरे, लाल चावल, अलसी, सीरा जैसी पारंपरिक वस्तुएं शामिल हैं. महिलाएं इन्हें घर पर तैयार करती हैं और विक्रय केंद्र के ज़रिए ग्राहकों तक पहुंचाती हैं.
रक्षा देवी का कहना है कि "हमारे उत्पाद शुद्ध, जैविक और स्वास्थ्यवर्धक हैं. बाजार में इनकी अच्छी मांग है. सितंबर 2024 से हमने मोटे अनाज से बने उत्पादों का उत्पादन भी शुरू किया है. अब सिड्डू, सरसों का साग-मक्की की रोटी, और राजमाह-चावल जैसे व्यंजन भी खूब पसंद किए जा रहे हैं." आज रक्षा देवी के साथ तीन महिलाएं प्रत्यक्ष रूप से और कई महिलाएं परोक्ष रूप से इस काम से जुड़ी हुई हैं.
इस विक्रय केंद्र में काम कर रहीं चंपा देवी और दया देवी जैसी महिलाएं कहती हैं कि 'जायका' परियोजना ने उन्हें न केवल आर्थिक संबल दिया है, बल्कि आत्मनिर्भर बनने का आत्मबल भी. वे अब अपने परिवार की आय में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं और खुद को समाज में एक सशक्त महिला उद्यमी के रूप में देखती हैं.
स्वयं सहायता समूह की सदस्य चंपा देवी का कहना है कि "पहले सिर्फ घर की जिम्मेदारी थी, अब आय भी हाथ में है. हमने कभी नहीं सोचा था कि अपने बनाए उत्पादों से इतनी कमाई होगी."
स्वयं सहायता समूह की सदस्य दया देवी बताती है कि "सरकार की इस योजना ने हमें पहचान दी है. अब हम गर्व से कह सकती हैं कि हम उद्यमी हैं." यह सफलता सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो आत्मनिर्भर भारत की नींव बन रही है.
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