पटना: बिहार की आधी आबादी हर सेक्टर में सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. पिछले कुछ सालों में आधी आबादी ने जिस प्रकार से उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, इसके बाद शिक्षाविद कह रहे हैं कि बिहार में सामाजिक क्रांति हो रहा है. उच्च शिक्षा से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बिहार की बेटियां अपना परचम लहरा रही हैं. 5 साल पहले तक बिहार की आधी आबादी 10 हजार के करीब ही विदेश जाती थीं. आज यह संख्या बढ़ कर 1 लाख तक पहुंच गयी है.
विदेश जाने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी: पासपोर्ट कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार 5 साल पहले तक बिहार की महिलाएं और बेटियां 11 हजार से भी कम की संख्या में विदेश जा रही थीं. इस साल अब तक एक लाख 5000 महिलाओं और बेटियों ने विदेश की उड़ान पकड़ी है. यानी पिछले 5 सालों में ही 10 गुना से अधिक बिहार की आधी आबादी विदेश गई हैं. बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कंपनियां नौकरी से लेकर प्रशिक्षण तक के लिए बेटियों को विदेश भेज रही हैं.
आधी आबादी में जागरूकता: पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य एन के चौधरी का कहना है कि शिक्षा के कारण बिहार की आधी आबादी में जागरूकता आ रही है. पटना विश्वविद्यालय में जब हम अपने 1960 के दशक में आए थे तो उसे समय लड़कियों की संख्या काफी कम हुआ करता था लेकिन आज 50% से अधिक लड़कियां क्लास में होती हैं तकनीकी शिक्षण संस्थानों में तो लड़कियां ओनके जाती ही नहीं थी मेडिकल कॉलेज में कुछ नामांकन कराती थी लेकिन अब तकनीकी संस्थानों में बड़ी संख्या में लड़कियां पढ़ने लगी हैं.
"बहुराष्ट्रीय कंपनियां लड़कियों को बड़े पैमाने पर नौकरी उपलब्ध करा रही हैं. विदेशी भी भेज रही हैं. विदेश जाने वालों में बड़ी संख्या उच्च शिक्षा के लिए होती है, नौकरी के लिए भी होती है. कुछ शादी के लिए भी होती है. बिहार के लिए यह एक बड़े बदलाव का संकेत यह जरूर है."- प्रो एनके चौधरी, पूर्व प्रचार्य, पटना कॉलेज
अमेरिका के कैलिफोर्निया में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करने वाली आशिता प्रिया अकेले विदेश की यात्रा करती हैं. आशिता प्रिया की मां सुषमा साहू का कहना है कि "बिहार की बेटियां किसी से पीछे नहीं है. हर क्षेत्र में है बिहार की बेटियां सफलता के झंडे लहरा रही हैं. मेरी बेटी भी अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कंपनी में लगातार अवार्ड जीत रही है. सुषमा साहू भी अमेरिका की यात्रा कर चुकी हैं. आशिता प्रिया जैसी कई बेटियां अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों में नौकरी के लिए जा रही हैं."
अकेले यात्रा करने में परेशानी नहींः रागिनी झा दरभंगा की रहने वाली है. अकेले विदेश की यात्रा करती हैं. उनके पति इंग्लैंड में बैंक में काम करते हैं. रागिनी झा के अनुसार अब विदेश यात्रा करने में कोई परेशानी नहीं होती है. मुजफ्फरपुर की रहने वाली आकांक्षा बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिलने के बाद कंपनी ने ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भेजा था. अमेरिका में ट्रेनिंग लेने के बाद बेंगलुरु में अभी काम कर रही हैं. यह सब चंद उदाहरण है जो बिहार की आधी आबादी की सफलता की कहानी को दर्शा रहा है.
पासपोर्ट बनवाने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ीः पिछले 6 वर्ष 2018-19 से 2022-23 में बिहार के 20.42 लाख लोगों को पासपोर्ट मिला है. कुछ वर्ष पहले तक आधी आबादी की संख्या काफी कम हुआ करती थी. लेकिन अब इसमें काफी इजाफा हो रहा है. इसी वित्तीय वर्ष में पासपोर्ट बनाने वाले में आधी आबादी की संख्या लगभग आधी है. कुल पासपोर्ट बनाने वाले बिहार के लोगों में आधी आबादी की संख्या पिछले दो-तीन वर्षों में लाख से ऊपर पहुंच गयी है. पहले 50 हजार के आसपास भी नहीं पहुंच पाती थी.
जीविका दीदी भी जा रही विदेशः विदेश जाने वाली बेटियों में सबसे अधिक शोध और पढ़ाई के मकसद से जा रही है. पढ़ाई के लिए जाने वाली छात्राओं को 5 साल तक के लिए वीजा मिलता है. इसके अलावा सोशल सेक्टर में भी बड़ी संख्या में काम करने बिहार की आधी आबादी जा रही हैं. जीविका में काम करने वाली महिलाओं को कई देशों से ट्रेनिंग के लिए भी बुलाया जाता है, जिसमें अमेरिका भी है. यही कारण है कि विदेश जाने वाली बिहार की महिलाओं और बेटियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.
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