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वसीयत हो या बंटवारा, अब UP के सभी जिलों में लागू होगी एकसमान व्यवस्था, जानिए क्या है CM योगी की तैयारी - UP GOVERNMENT INITIATIVES

सभी नगरीय निकायों में लागू होंगे एक जैसे प्रावधान, अभी अलग-अलग जिलों में अलग-अलग हैं नियम.

लोगों की सहूलियत के लिए योगी सरकार की बड़ी पहल.
लोगों की सहूलियत के लिए योगी सरकार की बड़ी पहल. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : April 27, 2025 at 7:50 PM IST

3 Min Read

लखनऊ : यूपी सरकार नगरीय निकायों में संपत्ति संबंधी कार्यों की प्रक्रियाओं और शुल्क संरचना में एकरूपता लाने जा रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वसीयत, बंटवारा अथवा अन्य प्रकार के नामांतरण के मामलों में सभी नगर निगमों, नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में अब एक समान प्रक्रिया और शुल्क व्यवस्था लागू की जाए.

यह कदम राज्यभर में नागरिकों को समान और पारदर्शी सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है. मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद नगर विकास विभाग की ओर से नई व्यवस्था की कार्य योजना तैयार की जा रही है. इससे लोगों को काफी सहूलियत मिलेगी.

नगरीय निकायों में प्रक्रिया-शुल्क में भिन्नता दूर करने की तैयारी : राज्य सरकार के प्रवक्ता की ओर से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि वर्तमान व्यवस्था में नगरीय निकायों में नामांतरण प्रक्रियाओं और शुल्कों में व्यापक असमानता है. इससे नागरिकों को अनावश्यक असुविधा और आर्थिक भार उठाना पड़ता है.

उदाहरण के लिए, गाजियाबाद नगर निगम में वसीयत के आधार पर संपत्ति के नामांतरण के लिए ₹5000 शुल्क लिया जाता है, जबकि लखनऊ नगर निगम में यही कार्य निशुल्क किया जाता है. मेरठ नगर निगम में संपत्ति के बंटवारे के नामांतरण के लिए संपत्ति के मूल्य का 3% शुल्क निर्धारित है, वहीं प्रयागराज नगर निगम में यह शुल्क केवल ₹2000 है.

फतेहपुर पालिका परिषद में नामांतरण फीस 2 हजार, बदायूं में निशुल्क : नगर पालिका परिषदों की बात करें तो फतेहपुर पालिका परिषद में वसीयत के आधार पर नामांतरण पर ₹2000 शुल्क लिया जाता है, जबकि बदायूं पालिका परिषद में कोई शुल्क नहीं लिया जाता. वहीं नगर पंचायतों में भी ऐसी ही स्थिति है. इसी भिन्नता के चलते एक ही तरह के मामलों में अलग-अलग शहरों में अलग व्यवहार होता है. इससे आम जनता भ्रमित होती है. कई बार एक ही प्रकृति के कार्य के लिए दो अलग-अलग जनपदों में अलग-अलग आर्थिक भार वहन करना पड़ता है.

नागरिकों की शिकायतों और जमीनी स्तर पर पनपती असुविधाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि अब राज्य में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार ही सभी नगरीय निकायों में प्रक्रिया अपनाई जाएगी.

कर निर्धारण में भी अलग-अलग प्रक्रियाएं : प्रेस नोट के अनुसार यूपी के सभी नगरीय निकायों में वसीयत, बंटवारा और संपत्ति कर निर्धारण सूची में संशोधन, परिवर्तन की प्रक्रिया तथा शुल्क को भी समान बनाया जाएगा. वर्तमान में कर निर्धारण में भी विभिन्न निकायों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रक्रिया अपनाई जाती है. इससे पारदर्शिता प्रभावित होती है.

प्रदेश के सभी नगर निगमों, पालिकाओं एवं नगर पंचायतों में प्रशासनिक स्तर के आधार पर एक समान प्रक्रिया और शुल्क निर्धारण की व्यवस्था की जाएगी.

सीएम योगी के मार्गदर्शन में नगर विकास विभाग ने इस दिशा में नई नियमावली और शुल्क की दर तय करने का कार्य शुरू कर दिया है. जल्द ही इसे संस्तुति के लिए कैबिनेट के सामने प्रस्तुत किया जाएगा. सरकार का स्पष्ट उद्देश्य है कि राज्य के नागरिकों को कहीं भी, किसी भी जनपद के नगरीय निकाय में एक समान सुविधा मिले, जिससे अनावश्यक देरी या आर्थिक शोषण से बचाव हो.

'ईज ऑफ लिविंग' को साकार करने की दिशा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कदम नगरीय प्रशासन में सुधार और नागरिक संतुष्टि बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.

यह भी पढ़ें : सरकार का बड़ा फैसला: प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर माता-पिता को अस्पताल में छोड़ने वाले बच्चों की खैर नहीं

लखनऊ : यूपी सरकार नगरीय निकायों में संपत्ति संबंधी कार्यों की प्रक्रियाओं और शुल्क संरचना में एकरूपता लाने जा रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वसीयत, बंटवारा अथवा अन्य प्रकार के नामांतरण के मामलों में सभी नगर निगमों, नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में अब एक समान प्रक्रिया और शुल्क व्यवस्था लागू की जाए.

यह कदम राज्यभर में नागरिकों को समान और पारदर्शी सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है. मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद नगर विकास विभाग की ओर से नई व्यवस्था की कार्य योजना तैयार की जा रही है. इससे लोगों को काफी सहूलियत मिलेगी.

नगरीय निकायों में प्रक्रिया-शुल्क में भिन्नता दूर करने की तैयारी : राज्य सरकार के प्रवक्ता की ओर से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि वर्तमान व्यवस्था में नगरीय निकायों में नामांतरण प्रक्रियाओं और शुल्कों में व्यापक असमानता है. इससे नागरिकों को अनावश्यक असुविधा और आर्थिक भार उठाना पड़ता है.

उदाहरण के लिए, गाजियाबाद नगर निगम में वसीयत के आधार पर संपत्ति के नामांतरण के लिए ₹5000 शुल्क लिया जाता है, जबकि लखनऊ नगर निगम में यही कार्य निशुल्क किया जाता है. मेरठ नगर निगम में संपत्ति के बंटवारे के नामांतरण के लिए संपत्ति के मूल्य का 3% शुल्क निर्धारित है, वहीं प्रयागराज नगर निगम में यह शुल्क केवल ₹2000 है.

फतेहपुर पालिका परिषद में नामांतरण फीस 2 हजार, बदायूं में निशुल्क : नगर पालिका परिषदों की बात करें तो फतेहपुर पालिका परिषद में वसीयत के आधार पर नामांतरण पर ₹2000 शुल्क लिया जाता है, जबकि बदायूं पालिका परिषद में कोई शुल्क नहीं लिया जाता. वहीं नगर पंचायतों में भी ऐसी ही स्थिति है. इसी भिन्नता के चलते एक ही तरह के मामलों में अलग-अलग शहरों में अलग व्यवहार होता है. इससे आम जनता भ्रमित होती है. कई बार एक ही प्रकृति के कार्य के लिए दो अलग-अलग जनपदों में अलग-अलग आर्थिक भार वहन करना पड़ता है.

नागरिकों की शिकायतों और जमीनी स्तर पर पनपती असुविधाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि अब राज्य में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार ही सभी नगरीय निकायों में प्रक्रिया अपनाई जाएगी.

कर निर्धारण में भी अलग-अलग प्रक्रियाएं : प्रेस नोट के अनुसार यूपी के सभी नगरीय निकायों में वसीयत, बंटवारा और संपत्ति कर निर्धारण सूची में संशोधन, परिवर्तन की प्रक्रिया तथा शुल्क को भी समान बनाया जाएगा. वर्तमान में कर निर्धारण में भी विभिन्न निकायों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रक्रिया अपनाई जाती है. इससे पारदर्शिता प्रभावित होती है.

प्रदेश के सभी नगर निगमों, पालिकाओं एवं नगर पंचायतों में प्रशासनिक स्तर के आधार पर एक समान प्रक्रिया और शुल्क निर्धारण की व्यवस्था की जाएगी.

सीएम योगी के मार्गदर्शन में नगर विकास विभाग ने इस दिशा में नई नियमावली और शुल्क की दर तय करने का कार्य शुरू कर दिया है. जल्द ही इसे संस्तुति के लिए कैबिनेट के सामने प्रस्तुत किया जाएगा. सरकार का स्पष्ट उद्देश्य है कि राज्य के नागरिकों को कहीं भी, किसी भी जनपद के नगरीय निकाय में एक समान सुविधा मिले, जिससे अनावश्यक देरी या आर्थिक शोषण से बचाव हो.

'ईज ऑफ लिविंग' को साकार करने की दिशा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कदम नगरीय प्रशासन में सुधार और नागरिक संतुष्टि बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.

यह भी पढ़ें : सरकार का बड़ा फैसला: प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर माता-पिता को अस्पताल में छोड़ने वाले बच्चों की खैर नहीं

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