बगहा: बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में आग लगने की घटनाएं आए दिन हो रही है. गर्मी आते ही अब तक मदनपुर, नौरंगिया, जटाशंकर और चम्पापुर गोनौली वन क्षेत्रों में आग लग चुकी है. इससे कई एकड़ सदाबहार जंगल को नुकसान पहुंचा है. शुक्रवार की शाम चम्पापुर वन क्षेत्र में आग लगने से तकरीबन 8 एकड़ जंगल को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में लगातर लग रही आग: वन विभाग की पेट्रोलिंग टीम लगातार चौकसी बरत रही है. बावजूद आग लगने की घटनाएं नहीं थम रही. बता दें कि पतझड़ के दिनों में पेड़ से सूखे पत्ते गिरे रहते हैं. ऐसी परिस्थिति में आग की थोड़ी सी चिंगारी भी जंगल के लिए आफत बन जाती है. ज्यादातर गांव या मुख्य सड़क की तरफ से गुजरने वाले राहगीरों द्वारा जलती बीड़ी या सिगरेट फेंके जाने से सूखे पत्तों में आग लगती है और जंगल धू-धू कर जलने लगता है.
जंगल की आग के पीछे किसका हाथ?: कई बार जंगल से सटे खेतों में पराली जलाने से भी आग लग जाती है. आग लगने से वन्य जीवों में अफरातफरी मचती है और वे रिहायशी इलाकों का रुख कर लेते हैं. जो मानव और वन्य जीवों के बीच संघर्ष का कारण बनती है. वन संरक्षक सह निदेशक डॉ. नेशामणि के. ने बताया कि जंगल में आग लगने से सदाबहार जंगल को नुकसान तो पहुंचता है, साथ ही वन्य जीवों की जान भी खतरे में पड़ जाती है.

रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं वन्य जीव: जब ग्रामीण क्षेत्रों से सटे जंगल में आग लगती है तब सांप, बाघ, तेंदुआ और भालू जैसे खतरनाक जीव बचने के लिए रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं. यहीं वजह है कि खेतों में काम करने वाले किसान और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है और कई घटनाएं घटती हैं. पिछले हफ्ते ही खेत में काम कर रहे एक किसान पर भालू ने हमला कर दिया था जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गया था.

"वन विभाग द्वारा अलग-अलग इलाकों में टीम बनाकर निगरानी भी की जाती है लेकिन असामाजिक तत्वों द्वारा जलती हुई बीड़ी या सिगरेट कहीं भी फेंक दिया जाता है. जिससे आग लग जाती है. सूचना मिलने पर वन विभाग की फायर बिग्रेड टीम और वनकर्मी मौके पर पहुंचते हैं और काफी कोशिश के बाद आग पर काबू पाते हैं. कई बार आग बुझाने के क्रम में वनकर्मी झुलस भी जाते हैं, इसके अलावा आग की लपटें इतनी तेज रहती हैं कि उसे सहन करना मुश्किल हो जाता है."- डॉ. नेशामणि के, वन संरक्षक सह निदेशक, वीटीआर

वन संरक्षक ने की लोगों से अपील: डॉ. नेशामणि के ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि थोड़ी सा सावधानी बरतने पर प्रकृति के अनमोल धरोहरों को बचाया जा सकता है. खासकर राहगीरों से अपील है कि वे बीड़ी, सिगरेट या किसी भी तरह का ज्वलनशील पदार्थ जंगल में न फेंके.
जन जीवन पर असर: जंगल में आग लगने से वन संपदा को नुकसान तो पहुंचता है और वन्य जीवों की जान पर भी आफत आन पड़ती है. यहीं नहीं जंगल में लगी आग की चिंगारी से ग्रामीण रिहायशी इलाकों में फूस के झोपड़ियों में आग लग सकती है. इसके अलावा धुंआ वातावरण को प्रदूषित करता है, जिसका असर आम जनजीवन पर भी पड़ सकता है.
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