वाराणसी: ओ खईके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला... 80 की दशक की मशहूर फिल्म में अमिताभ बच्चन ने मुंह में पान दबाकर जब यह गाना गाया तो छोटे-छोटे दुकानों पर बनारसियों के मुंह की शान बढ़ाने वाला पान इंटरनेशनल हो गया. बनारस के पान को एक ब्रांड के रूप में पहचान मिली. हालांकि बनारस का पान कभी किसी नाम का मोहताज नहीं था, क्योंकि बनारसी पान का जायका और मुंह में झट से घुल जाने की क्षमता दुनिया में किसी और शहर के पान में नहीं है. बनारस के पान में तरह-तरह की चीजों का इस्तेमाल होता है. इसको सजाने और बनाने में रेसिपी भी अच्छी होती है.
बनारस का नहीं बनारसी पान: अगर हम आपसे यह कहें कि बनारस का पान बनारस का है ही नहीं तो सुनकर आश्चर्य मत कीजिएगा. क्योंकि यह वह सच है जो शायद कम लोगों को ही पता है. बनारस में आने वाला पान का पत्ता, सुपारी, कत्था, चूना और सुरती दूसरे राज्यों से आते हैं. पान का पत्ता बिहार, पश्चिम बंगाल उड़ीसा से सबसे ज्यादा आता है. लेकिन बनारस आने के बाद जिस तरह से बाहर के लोगों को भी अपना कर बनारसी बना देता है. वैसे ही दूसरे राज्यों से आने वाले हर पान के पत्ते को बनारस का पानी बनारसी बना देता है.
सिर्फ बनारस में ही पान की मंडी: दरअसल, ज्यादा वैरायटी पान के पत्ते अलग-अलग राज्यों में तैयार होते हैं. बिहार के बक्सर, गया, जमशेदपुर, उड़ीसा पश्चिम बंगाल सहित बिहार के कई हिस्सों से भी पान खेती होती है, यहां से पान का पत्ता बनारस पहुंचता है. बनारस में देश की इकलौती ऐसी मंडी है, जहां पर सिर्फ पान बिकता है. बनारस में सैकड़ो साल पुरानी परंपरा के अनुरूप पान दरीबा बाजार सिर्फ पान के पत्तों के लिए जाना जाता है. यहां सुबह 5:00 से लेकर रात 8:00 बजे तक अलग-अलग राज्यों से अपने पान लेकर पहुंचने वाले किसान पान के पत्तों को बेचते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि अलग-अलग राज्यों से आने वाले पान के पत्तों का दिन भी अलग-अलग निर्धारित किया गया है.

अलग-अलग दिन पहुंचते हैं अलग-अलग पत्ते: काशी बरही सभा के अध्यक्ष इंद्रनाथ चौरसिया का कहना है कि बनारस में पान की इतनी वैरायटी आती है कि उसके लिए दिन निर्धारित करना जरूरी है. सोमवार और शुक्रवार को बिहार से अलग-अलग हिस्सों से पान के पत्ते पहुंचते हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण गया का पान का पत्ता होता है. मंगलवार और शनिवार को बंगाल और उड़ीसा से पान के पत्तों को काशी में लाया जाता है और उसकी बिक्री होती है.
ऐसे बनता है बनारसी पानः बनारस में पान का पत्ता बिहार, बंगाल, ओड़िशा, तमिलनाडु और यूपी के दूसरे ज़िलों से भी पान आता है. लेकिन यहां पहुंचते ही वो बनारसी हो जाता है. यहां पचासा (एक ढोली) में 50 पान की पत्तियाँ होती हैं, फिर सैकड़ा में इन्हें सजाया जाता है. पान की शौकीन बनारस के पान को जिंदगी जीने का एक जरिया मानते हैं. आज तेजी से युवा पीढ़ी इससे दूर हो रही है. पान के पुस्तैनी कारोबारी चंद्र मोहन चौरसिया का कहना है कि बनारस में आने वाला हर पान का पत्ता यहां पकाया जाता है. यह वह विधि है, जो हर पान के पत्ते को बनारसी बनाने का काम करती है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है गया से आने वाला हरा मगही पान. यह पान सिर्फ नवंबर से अप्रैल तक ही पैदा होता है. पौधों और पेड़ों से टूटने के बाद इसका जीवन भी कुछ ही समय का होता है. लेकिन जब इसे ट्रकों के जरिए बनारस लाया जाता है तो इसके जीवन को 6 महीना और बढ़ा दिया जाता है. चंद्रमोहन कहना है कि बनारस के पान को यहां के बरही समाज यानि जिसे चौरसिया समाज कहा जाता है, वह लोग पकाने की एक ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से दूसरे राज्यों का पान बनारसी बन जाता है.
कैसे पकाया जाता है पानः चंद्र मोहन बताते हैं कि इस विधि को पान पकाना पान तैयार करना या फिर खाद देकर पान को बनारसी बनाना कहा जाता है. इसके लिए पान कारोबारी के घरों में छोटे-छोटे कमरे होते हैं. जहां एक निश्चित तापमान को हमेशा मेंटेन रखा जाता है. इस कमरे में किसी को जाने की अनुमति नहीं होती है. डोलियों में पान को अंदर बचाने के बाद ऊपर से गीले कपड़े और फिर गीले बोरों को रखकर पान की इन टोकरियों कमरे में बनी अलग-अलग सेल्फ पर सजा कर रखा जाता है. इसके बाद शुरू होता है बाहर के पान का बनारसी बनने का प्रोसेस. सबसे बड़ी बात यह है कि पान पकाने में एक सप्ताह से 20 दिन तक का वक्त लगता है. इस दौरान इसका टेंपरेचर बार-बार चेक करना भी अपने आप में एक कला मानी जाती है. बिना किसी थर्मामीटर या तकनीक का इस्तेमाल पान के टेंपरेचर को चेक करने के लिए नहीं होता है, बल्कि अपने हाथों की हथेली और गाल पर पान को टच करके पान के टेंपरेचर को अपनी चमड़ी से चेक किया जाता है.

चौसठ कलाओं में एक है ये विधाः पान को बनारसी बनाने का कारोबार करने वाले होलसेलर विक्रेता विनोद कुमार चौरसिया का कहना है कि पान को पकाने की कला 64 कलाओं में से एक होती है. जो सिर्फ बनारिसयों के पास पानदरीबा में है और किसी के पास नही है. पान को दुनिया के किसी अन्य हिस्से में पकायेंगे तो वह मुलामियत और सुगंध नहीं रहेंगी. विनोद का कहना है कि पहले नारायणपुर, चिराई गांव, राजातालाब समेत कई क्षेत्रों में पान की खेती होती थी, लेकिन इसमें इतनी मेहनत है कि आज की युवा पीढ़ी इससे पीछे हट गई और खेती बंद हो गई है. जिसकी वजह से बनारस के पान के पत्ते दूसरे राज्यों से आते हैं. खास तौर पर उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार अलग-अलग तरह और अलग-अलग वैरायटी के पान के पत्तों को बनारस में पकाने की विधि को ही बनारसी पान तैयार करने की विधि के रूप में जाना जाता है.
सिर्फ बनारस में ही मिलता असली मगही पानः बनारस में तो वैसे 100 से ज्यादा किस्म के पान को पीकर बनारसी बनाया जाता है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हरा मगही पान, जिसे सफेद किया जाता है. जो बनारस के असली पान के पत्ते के रूप में पहचाना जाता है और जो सिर्फ यहीं मिलता हैय दूसरे शहरों में लोग मगही के नाम पर देसी जगन्नाथी या फिर कोई और पत्ता खिलाते हैं. मगही पान मुंह में जाते ही चंद सेकंड में पूरी तरह से घुल जाता है.
स्वास्थ्य और पूजान में महत्वः पान प्राचीन ही नहीं है बल्कि यह औषधीय गुणों से भरा हुआ है. आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि ने भी पान की खूबियों का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है पान खाने से पाचन शक्ति दुरुस्त होती है. प्राचीन चिकित्सा शास्त्री सुश्रुत का मानना है कि पान गले को साफ रखता है, जिसके चलते मुहँ से दुर्गंध नहीं आती है. इतना ही नहीं पान धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. किसी भी पूजा पाठ में पान के पत्ते को चढ़ाया जाता है.

सबको अपनाता है बनारसः प्रसिद्ध रंगकर्मी और बनारस को जीने वाले व्योमेश शुक्ल का कहना है कि यहां का पान अपने आप में धरोहर है. भले ही बनारस का पान का पत्ता, सुपारी कत्था कुछ भी बनारस का नहीं है, लेकिन जब बनारस में यह आता है और बनारसी प्रेम पता है तो यह बनारसी बन जाता है. बनारस ऐसा ही शहर है जहां हर किसी को अपनाया जाता है. पान के हरे पत्ते को सफेद बनाकर परोसने की जो विद्या बनारस के पास है, वह किसी के पास नहीं है. इसलिए यहां का पान अपने आप में बेहद खास है.
युवाओं के दूसरे शौक से बनारसी पान को लग रहा चूना, कारोबारियों को लाखों का नुकसान
भौकाल या दीवानगी...प्रतिदिन 30 लाख रुपये से अधिक का पान खा रहे बनारसी
जापान के राजदूत हिरोशी सुजुकी को भाया बनारसी पान और गोल-गप्पा, बोले- पीएम मोदी को देख हुआ मन