लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ऐतिहासिक मूसा बाग किले के पीछे एक ऐसी मजार है, जो आस्था और इतिहास के बीच विवाद का कारण बनती जा रही है. मजार पर लोग सिगरेट, शराब और मांस से सजदा करते हैं, मन्नतें मांगते हैं. मजार अंग्रेज बाबा, गोरे बाबा, टॉम्ब बाबा के नाम से फेमस है.
मान्यता है कि "गोरे बाबा" मुरादें पूरी करते हैं. यह परंपरा न केवल इतिहास के आईने में कई सवाल खड़े करती है, बल्कि समाजिक दृष्टिकोण से भी चिंता का विषय बन गई है.
1858 के संघर्ष में निकला एक रहस्य: इतिहासकार रोशन तकी के मुताबिक, 1857 में शुरू हुआ गदर जब अवध प्रांत पहुंचा, तो अंग्रेजी हुकूमत और अवध प्रांत के क्रांतिकारियों के बीच मूसा बाग के किले से पहली जंग शुरू हुई. मार्च 1858 में लखनऊ में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई तेज हुई थी.
मूसा बाग किला स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र बना, जिसका नेतृत्व मौलवी अहमदुल्ला शाह कर रहे थे. इस जंग को अंग्रेजों ने जीत तो लिया, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के सैनिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले कैप्टन वेल्स सहित तमाम सैनिक मारे गए. इसके बाद उनके सैनिकों ने किले के पीछे उसकी समाधि बनाकर दफना दिया.

देश आजाद हुआ, तो यहां के धर्मभीरू लोग यह भूल गए कि मजार किसकी है लेकिन, इबादत शुरू कर दी. हर गुरुवार को यहां मेला भी लगने लगा, जबकि मजार पर अंग्रेज अफसर की पहचान वाला पत्थर भी लगा है.
मजार पर शराब, सिगरेट, मांस चढ़ाने की परंपरा कैसे शुरू हुई: कुछ समय बाद स्थानीय स्तर पर अफवाहें फैलने लगीं कि सफेद कपड़ों में एक बाबा गुरुवार की रात को प्रकट होते हैं और सिगरेट, शराब मांगते हैं. धीरे-धीरे यह मजार ‘अंग्रेज बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध हो गई और वहां सिगरेट, शराब, मांस चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.

एक मान्यता यह भी है कि कैप्टन वेल्स को सिगरेट का शौक था. इसलिए लोगों ने उनकी मजार पर सिगरेट चढ़ाने की परंपरा शुरू कर दी. लोग यहां पर बिस्कुट, ब्रेड, फूल, मिठाई और जीवित या पका हुआ मुर्गा भी चढ़ाते हैं
श्रद्धालुओं की मान्यता और चढ़ावा: मोहान से आए श्रद्धालु राहुल ने बताया कि वह यहां मन्नत मांगने आए हैं. उनकी एक मन्नत पहले पूरी हो चुकी है. उन्होंने पेड़ा, अगरबत्ती और सिगरेट चढ़ाई. उनका मानना है कि चाहे इतिहास कुछ भी कहे, यहां की मान्यता और अनुभव यही बताते हैं कि बाबा की कृपा से मुरादें पूरी होती हैं. इसी तरह, पास के गांव से आई बिट्टी देवी अपनी बीमार बेटी और खुद के स्वास्थ्य के लिए मन्नत लेकर आईं.

गांव की मान्यताएं और इतिहास से अनभिज्ञता: स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर यह सामने आता है कि अधिकतर श्रद्धालु इस मजार के पीछे के ऐतिहासिक तथ्यों से अनभिज्ञ हैं. एक महिला ने बताया, "हमें नहीं पता ये कौन था, लेकिन जब से यहां आने लगे हैं, घर में सुख-शांति है."
मजार का रखरखाव और अजीब परंपराएं: करीब 70 साल से मजार के पास मौजूद मौर्य बताते हैं कि यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं. शराब, सिगरेट, पैसे, मिठाई चढ़ाते हैं. कई बार लोग मजार पर चढ़ी शराब और सिगरेट उठाकर खुद पी जाते हैं. साफ-सफाई की जिम्मेदारी ‘बबलू’ नामक एक व्यक्ति निभाता है, जो चढ़ावे के पैसे भी लेता है.

पुरातत्व विभाग की मौजूदगी और सरकार की चुप्पी: मजार के ठीक सामने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बोर्ड है, जिस पर मूसा बाग किला संरक्षित घोषित किया गया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि प्रदेश में किसी आक्रांता या गद्दार का महिमामंडन नहीं किया जाएगा.
फिर यह सवाल खड़ा होता है कि जिस अंग्रेज कप्तान ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर हमला किया, उसकी मजार को संरक्षण क्यों मिला हुआ है? क्यों यहां समाज के लिए खतरनाक नशीली वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं?

यह विरासत है या विकृति: इस मजार पर सिगरेट, शराब और मांस चढ़ाने की परंपरा बच्चों और युवाओं के बीच नशे की आदत को बढ़ावा दे सकती है. जब राज्य में बहराइच और संभल जैसे स्थानों पर "गाजी मियां" के मेले पर आक्रमणकारी होने के आरोप में रोक लगी, तो फिर यहां की परंपराओं पर चुप्पी क्यों?
हाईकोर्ट ने उन मामलों में साफ कहा है कि श्रद्धालुओं के आने पर रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन सरकार की यह जिम्मेदारी है कि परंपराएं समाजहित में हों. लखनऊ के जिलाधिकारी विशाख जी ने इस मुद्दे पर कहा, “मामला हमारे संज्ञान में आया है, इसकी जांच कर जल्द ही कार्रवाई करेंगे.”

अंग्रेज बाबा की मजार तक कैसे पहुंचे: लखनऊ के चारबाद रेलवे स्टेशन से पहले आपको सिटी बस या टेम्पो से बालागंज चौराहे होते हुए हरिनगर चौराहा जाना होगा. यहां से आपको मूसा बाग किले के लिए ई-रिक्शा मिलेगा जो सीधे मजार तक पहुंचाएगा. इसके अलावा ओला-ऊबर पर मूसा बाग की लोकेशन सेट करके भी टैक्सी ऑटो लिया जा सकता है.
