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'जूठण की बावड़ी' : ताने से जन्मी एक ऐतिहासिक धरोहर, भोजन में परोसी गई मोहरें बनीं जल स्रोत - JHOOTHAN KI BAWDI JAIPUR

कैसे एक मजाक बन गया प्रेरणा का प्रतीक, कैसे जूठी हुई मोहरों ने जल स्रोत बनकर समाज की प्यास बुझाई. पढ़िए ये खास रिपोर्ट.

'जूठण की बावड़ी'
'जूठण की बावड़ी' (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : June 17, 2025 at 2:40 PM IST

4 Min Read

जयपुर: कहते है देश के इतिहास से अगर राजस्थान को हटा दिया जाए, तो किस्से कहानियों कुछ ज्यादा बताने और कहने को नही बचेगा. यहां के रणबांकुरों का शौर्य और पराक्रम अपने आप में अद्भुत है, वीरांगनाओं किस्से सुनने मात्र से रूह कांप उठती है. स्वामी भक्ति के साथ यहां के भामाशाह की अपनी कहानियां है. यहां के महल-बावड़ी भी अपने आप मे इतिहास को समेटे हुए है. राजस्थान की वीर भूमि जहां शौर्य, परंपरा और स्वाभिमान की गाथाएं हर कण में बसी हैं, वहीं सांगानेर की 430 साल पुरानी एक अनोखी बावड़ी– ‘जूठण की बावड़ी’ आज फिर से चर्चा में है. यह बावड़ी न केवल वास्तुकला की मिसाल है, बल्कि सामाजिक सद्भाव, ताना-व्यंग्य के उत्तर में परोपकार और जल संरक्षण की प्रेरणा भी है.

जयपुर के सांगानेर में बनी 430 साल से अधिक पुरानी ऐतिहासिक जूठण की बावड़ी. जैसा नाम सुनने से लगता है कि जूठन यानी जूठा भोजन. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बारातियों को भोजन में परोसी मोहरों से सांगानेर में जूठण की बावड़ी निर्माण हुआ था. जो यहां के आसपास के लोगों और मवेशियों के सबसे बड़ा जलश्रोत रहा. हालांकि वक्त के साथ यह ऐतिहासिक धरोहर अतिक्रमण और गंदगी की भेंट चढ़ी हुई है. अब कुछ सामाजिक संगठनों ने वंदे गंगाजल जनअभियान के तहत जब इस बावड़ी की कुछ सफाई हुई तो स्वरूप निखरा हुआ दिखा.

बारातियों को भोजन में परोसी मोहरों से सांगानेर में बनी थी जूठण की बावड़ी (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

इसे भी पढ़ें: कासेड़ा में 300 साल पुरानी बावड़ी में किया श्रमदान, ग्रामीणों ने की जीर्णोद्धार की मांग

इतिहासविद डॉ. अर्चना शर्मा बताती हैं कि तब जयपुर नहीं बसा था. आमेर महाराजा मानसिहं प्रथम का ढूंढाड़ पर शासन था. आमेर के राजपुरोहित के पोते की सगाई सांगानेर के पुरोहित खानदान में हुई थी. उन दिनों बरातें कई दिन तक ठहरती थी. आमेर के राजपुरोहित श्रीधरजी के पोते की बरात भी बहुत ही शाही अंदाज से सांगानेर में जोगाजी राज पुरोहित के यहां आई थी. श्रीधरजी पुरोहित की तरफ से आमेर महाराजा सिंह प्रथम विवाह में शामिल हुए थे. बरात जीमने में बैठी तब पुरसगारी में कुछ देर होने पर एक बाराती ने मजाक में कह दिया कि " अजी जोगाजी मोहरां की पुरसगारी करैला काईं ." अर्थात क्या भोजन में सोने की मोहरें खिलाई जा रही है. बात तो मजाक में थी, लेकिन लड़की के दादाजी जोगाजी ने बराती के इस मजाक को ताने में ले लिया.

सांगानेर की 'जूठण की बावड़ी'
सांगानेर की 'जूठण की बावड़ी' (फोटो ईटीवी भारत GFX)

इसके बाद मिष्ठानों के भंडार पर ताला लगवा दिया और सभी बारातियों की थालियों में स्वर्ण मोहरों की ही पुरसगारी करवा दी. लड्डू, जलेबी के स्थान पर सोने की मोहरें रखने से अचंभित बारातियों ने कारण पूछा तब जोगा जी ने कहा कि आपने ही मोहरें जीमाने का हुकम दिया था. बराती भी कम नहीं निकले उन्होंने हाथ धोने के बाद पंगत से उठ गए और कहा कि आपकी स्वर्ण मोहरें जूठण हो गई है. इसलिए झूठी हो चुकी मोहरों को उठाने की व्यवस्था करें. इसके बाद दोनों पक्षों की बैठक हुई और उन मोहरों से सांगानेर में बावड़ी बनाने का निर्णय किया. इस लिए इसे 'जूठण की बावड़ी' कहते हैं.

संरक्षण की दरकार !
संरक्षण की दरकार ! (फोटो ईटीवी भारत GFX)

इसे भी पढ़ें: ऐसा कुआं जिसका पानी पीने की सलाह देते थे डॉक्टर और वैद्य, संरक्षण के अभाव में बन गया कचरे का गड्ढा

बात बढ़ती-बढ़ती सम्मान और आपसी समझदारी तक पहुंची. मोहरों का उपयोग किसी भव्य जनहित के कार्य में करने का निर्णय हुआ और वहीं से जन्म हुआ इस ऐतिहासिक ‘जूठण की बावड़ी’ का. अतिक्रमण और गंदगी के अंबार में ऐतिहासिक पहचान खोती इस बावड़ी में श्रम दान के जरिये स्वरूप निखारने का काम मान द वैल्यू फाउंडेशन की ओर से किया गया. फाउंडेशन की संस्थापिका डॉ मनीषा सिंह कहती है कि ये बावड़ी न केवल वास्तुकला का प्रतीक बनी बल्कि स्वाभिमान, ठसक और सामाजिक सेवा की एक अविस्मरणीय मिसाल बनी.

मान द वैल्यू फाउंडेशन की पहल
मान द वैल्यू फाउंडेशन की पहल (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

यह बावड़ी संदेश देती है कि जब कोई ताना मारे, तो उसे ठसक और सेवा से जवाब दो . जब कोई मज़ाक उड़ाए, तो उसका उत्तर समाज के हित में एक स्थायी काम करके दो. आज हम सबका कर्तव्य है कि इस विरासत को जानें, समझें और आगे पहुंचाएं. राज्य सरकार के वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान के तहत मान द वैल्यू फाउंडेशन की ओर से "पौधारोपण और श्रमदान ” गया, जिसमे युवाओं और सांगानेर के स्थानीय लोग सहयोग किया. इसके साथ सभी ने जल संचय के लिए अपने अपने स्तर पर आगे भी प्रयास जारी रखने का संकल्प लिया.

430 साल पुरानी बावड़ी
430 साल पुरानी बावड़ी (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

जयपुर: कहते है देश के इतिहास से अगर राजस्थान को हटा दिया जाए, तो किस्से कहानियों कुछ ज्यादा बताने और कहने को नही बचेगा. यहां के रणबांकुरों का शौर्य और पराक्रम अपने आप में अद्भुत है, वीरांगनाओं किस्से सुनने मात्र से रूह कांप उठती है. स्वामी भक्ति के साथ यहां के भामाशाह की अपनी कहानियां है. यहां के महल-बावड़ी भी अपने आप मे इतिहास को समेटे हुए है. राजस्थान की वीर भूमि जहां शौर्य, परंपरा और स्वाभिमान की गाथाएं हर कण में बसी हैं, वहीं सांगानेर की 430 साल पुरानी एक अनोखी बावड़ी– ‘जूठण की बावड़ी’ आज फिर से चर्चा में है. यह बावड़ी न केवल वास्तुकला की मिसाल है, बल्कि सामाजिक सद्भाव, ताना-व्यंग्य के उत्तर में परोपकार और जल संरक्षण की प्रेरणा भी है.

जयपुर के सांगानेर में बनी 430 साल से अधिक पुरानी ऐतिहासिक जूठण की बावड़ी. जैसा नाम सुनने से लगता है कि जूठन यानी जूठा भोजन. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बारातियों को भोजन में परोसी मोहरों से सांगानेर में जूठण की बावड़ी निर्माण हुआ था. जो यहां के आसपास के लोगों और मवेशियों के सबसे बड़ा जलश्रोत रहा. हालांकि वक्त के साथ यह ऐतिहासिक धरोहर अतिक्रमण और गंदगी की भेंट चढ़ी हुई है. अब कुछ सामाजिक संगठनों ने वंदे गंगाजल जनअभियान के तहत जब इस बावड़ी की कुछ सफाई हुई तो स्वरूप निखरा हुआ दिखा.

बारातियों को भोजन में परोसी मोहरों से सांगानेर में बनी थी जूठण की बावड़ी (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

इसे भी पढ़ें: कासेड़ा में 300 साल पुरानी बावड़ी में किया श्रमदान, ग्रामीणों ने की जीर्णोद्धार की मांग

इतिहासविद डॉ. अर्चना शर्मा बताती हैं कि तब जयपुर नहीं बसा था. आमेर महाराजा मानसिहं प्रथम का ढूंढाड़ पर शासन था. आमेर के राजपुरोहित के पोते की सगाई सांगानेर के पुरोहित खानदान में हुई थी. उन दिनों बरातें कई दिन तक ठहरती थी. आमेर के राजपुरोहित श्रीधरजी के पोते की बरात भी बहुत ही शाही अंदाज से सांगानेर में जोगाजी राज पुरोहित के यहां आई थी. श्रीधरजी पुरोहित की तरफ से आमेर महाराजा सिंह प्रथम विवाह में शामिल हुए थे. बरात जीमने में बैठी तब पुरसगारी में कुछ देर होने पर एक बाराती ने मजाक में कह दिया कि " अजी जोगाजी मोहरां की पुरसगारी करैला काईं ." अर्थात क्या भोजन में सोने की मोहरें खिलाई जा रही है. बात तो मजाक में थी, लेकिन लड़की के दादाजी जोगाजी ने बराती के इस मजाक को ताने में ले लिया.

सांगानेर की 'जूठण की बावड़ी'
सांगानेर की 'जूठण की बावड़ी' (फोटो ईटीवी भारत GFX)

इसके बाद मिष्ठानों के भंडार पर ताला लगवा दिया और सभी बारातियों की थालियों में स्वर्ण मोहरों की ही पुरसगारी करवा दी. लड्डू, जलेबी के स्थान पर सोने की मोहरें रखने से अचंभित बारातियों ने कारण पूछा तब जोगा जी ने कहा कि आपने ही मोहरें जीमाने का हुकम दिया था. बराती भी कम नहीं निकले उन्होंने हाथ धोने के बाद पंगत से उठ गए और कहा कि आपकी स्वर्ण मोहरें जूठण हो गई है. इसलिए झूठी हो चुकी मोहरों को उठाने की व्यवस्था करें. इसके बाद दोनों पक्षों की बैठक हुई और उन मोहरों से सांगानेर में बावड़ी बनाने का निर्णय किया. इस लिए इसे 'जूठण की बावड़ी' कहते हैं.

संरक्षण की दरकार !
संरक्षण की दरकार ! (फोटो ईटीवी भारत GFX)

इसे भी पढ़ें: ऐसा कुआं जिसका पानी पीने की सलाह देते थे डॉक्टर और वैद्य, संरक्षण के अभाव में बन गया कचरे का गड्ढा

बात बढ़ती-बढ़ती सम्मान और आपसी समझदारी तक पहुंची. मोहरों का उपयोग किसी भव्य जनहित के कार्य में करने का निर्णय हुआ और वहीं से जन्म हुआ इस ऐतिहासिक ‘जूठण की बावड़ी’ का. अतिक्रमण और गंदगी के अंबार में ऐतिहासिक पहचान खोती इस बावड़ी में श्रम दान के जरिये स्वरूप निखारने का काम मान द वैल्यू फाउंडेशन की ओर से किया गया. फाउंडेशन की संस्थापिका डॉ मनीषा सिंह कहती है कि ये बावड़ी न केवल वास्तुकला का प्रतीक बनी बल्कि स्वाभिमान, ठसक और सामाजिक सेवा की एक अविस्मरणीय मिसाल बनी.

मान द वैल्यू फाउंडेशन की पहल
मान द वैल्यू फाउंडेशन की पहल (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

यह बावड़ी संदेश देती है कि जब कोई ताना मारे, तो उसे ठसक और सेवा से जवाब दो . जब कोई मज़ाक उड़ाए, तो उसका उत्तर समाज के हित में एक स्थायी काम करके दो. आज हम सबका कर्तव्य है कि इस विरासत को जानें, समझें और आगे पहुंचाएं. राज्य सरकार के वंदे गंगा जल संरक्षण जन अभियान के तहत मान द वैल्यू फाउंडेशन की ओर से "पौधारोपण और श्रमदान ” गया, जिसमे युवाओं और सांगानेर के स्थानीय लोग सहयोग किया. इसके साथ सभी ने जल संचय के लिए अपने अपने स्तर पर आगे भी प्रयास जारी रखने का संकल्प लिया.

430 साल पुरानी बावड़ी
430 साल पुरानी बावड़ी (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)
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