कुल्लू: सनातन धर्म में महिलाओं के लिए कई तरह के व्रत और पूजा का विधान है. इन्हीं में से एक व्रत करवा चौथ का व्रत है. करवा चौथ का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं. इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा. करवा चौथ के व्रत में सरगी का भी विशेष महत्व है, जो सास अपनी बहू को देती है.
सास न होने पर कौन दे सकता है सरगी?
करवा चौथ पर सुबह के समय महिलाओं द्वारा सरगी खाई जाती है और उसके बाद निर्जला व्रत शुरू किया जाता है. रात के समय चंद्रमा के दर्शन करने के बाद महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं. ऐसे में सास द्वारा अपनी बहू को सरगी दी जाती है, लेकिन अगर किसी बहू की सास नहीं है, तो ऐसे में उसे सरगी कौन देगा? आचार्य विजय कुमार ने बताते हैं कि अगर किसी की सास न हो तो वो महिला अपनी मां से भी सरगी ले सकती है, या फिर उसे कोई भी सुहागन महिला जैसे कि जेठानी, ननद या चाची सास कोई भी सरगी दे सकती है.
क्या होती है सरगी?
आचार्य विजय कुमार ने बताया कि करवाचौथ के दिन व्रत शुरू करने के लिए सरगी नामक एक परंपरा निभाई जाती है. सरगी के बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता है. व्रत के दिन सूर्योदय से पहले सास अपनी बहू को सरगी देती है. सरगी में फल, मिठाई, ड्राई फ्रूट और पूजा की सामग्री होती है और 16 श्रृंगार का सामान भी होता है. सरगी खाकर ही महिलाएं करवाचौथ का व्रत शुरू करती हैं. सरगी सास द्वारा दी जाती है जिसमें खाने-पीने की वस्तुओं सहित 16 श्रृंगार की सभी वस्तुएं और पूजन सामग्री होती है. सरगी एक तरह से सास का आशीर्वाद और प्यार होता है.
मां पार्वती से जुड़ी है सरगी की मान्यता
वहीं, सरगी के बारे में एक मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था. तब उनकी मां रानी मैना ने उन्हें सरगी दी थी, क्योंकि उनकी कोई सास नहीं थी. ऐसे में यहां से इस परंपरा की शुरुआत भी हुई कि जिस महिला की सास न हो, उसे मां भी सरगी दे सकती है. इसके अलावा अगर मां न हो तो परिवार की कोई भी सुहागन महिला बहू को सरगी दे सकती है.