सास न हो तो कौन दे सकता है करवा चौथ की सरगी, जानें क्या है इसका महत्व
करवा चौथ का व्रत सरगी खाने के बाद ही शुरू होता है. सरगी सास की ओर से अपनी बहू को दी जाती है

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team
Published : October 9, 2025 at 5:43 PM IST
शिमला: सनातन धर्म में महिलाओं के लिए करवा चौथ के व्रत खासा महत्व है. करवा चौथ का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं. इस साल करवा चौथ 10 अक्तूबर को मनाया जाएगा. करवा चौथ के व्रत में सरगी का भी विशेष महत्व है. सरगी सास अपनी बहू को देती है.
करवा चौथ की सुबह सूर्योदय से पहले सास की दी गई 'सरगी' से दिन की शुरुआत होती है. सरगी के बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता है. आचार्य परम स्वरूप ने बताया कि इस बार हिन्दू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ के दिन सरगी के लिए ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:40 से 05:30 बजे तक रहेगा.
क्या होती है सरगी?
आचार्य परम स्वरूप ने बताया कि 'सरगी एक परंपरा है, जो व्रत शुरू करने के लिए निभाई जाती है. सरगी के बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता है. इस थाली में फल, सूखे मेवे, मिठाई, नारियल, फैनिया और सोलह श्रृंगार का सामान होता है. करवा व्रत निर्जला ही रखा जाता है. इसलिए सरगी का महत्व बढ़ जाता है. ये व्रत पर न केवल पोषण देती है, बल्कि ये सास का आशीर्वाद और बहू के लिए शुभकामनाएं भी होती हैं.'
मां पार्वती से जुड़ी है सरगी की मान्यता
सरगी के पीछे एक माता पार्वती से एक किस्सा जुड़ा है. शिमला के कालीबाड़ी मंदिर में पुजारी पंडित मुक्ति चक्रवर्ती का कहना है कि 'जब माता पार्वती ने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था. तब उनकी मां रानी मैना ने उन्हें सरगी दी थी, क्योंकि उनकी कोई सास नहीं थी. ऐसे में यहां से इस परंपरा की शुरुआत भी हुई कि जिस महिला की सास न हो, उसे मां भी सरगी दे सकती है. इसके अलावा अगर मां न हो तो परिवार की कोई भी सुहागन महिला बहू को सरगी दे सकती है.'
सरगी का महत्व
पारंपरिक रूप से, फल (अनार, सेब, केले) और मेवे (ड्राई फ्रूट्स) सरगी थाली का प्रमुख हिस्सा होते हैं. इनमें मौजूद नेचुरल शुगर, विटामिन, फाइबर और प्रोटीन निर्जला व्रत के दौरान एनर्जी लेवल को बनाए रखने और भूख को कम करने में मदद करते हैं.
अलग अलग इलाकों में सरगी की अलग परंपरा
पंडित मुक्ति चक्रवर्ती का कहना है कि 'भारत के अलग-अलग इलाकों में इसकी परंपरा अलग-अलग है. कहीं सरगी खाने का रिवाज है, तो कहीं बिना सरगी के व्रत रखा जाता है, इसलिए महिलाओं को अपने कुल या क्षेत्रीय रीति-रिवाज के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए.'
सास न होने पर कौन दे सकता है सरगी?
सरगी सास की ओर से अपनी बहू को दी जाती है, लेकिन अगर किसी की सास न हो तो सरगी कौन देगा. इसके बारे में आचार्य परम स्वरूप बताते हैं कि 'अगर किसी महिला की सास न हो, तो वह अपनी मां से भी सरगी ले सकती है, या फिर उसे कोई भी अन्य सुहागन महिला जैसे कि जेठानी, ननद या चाची सास भी सरगी दे सकती है.'
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