चंडीगढ़: गर्मियों के मौसम में अलग-अलग तरह के फल और सब्जियां मार्केट में उपलब्ध होती है. लेकिन इस बीच देखा जा रहा है कि अक्सर जून-जुलाई में दिखने वाले फल अभी से मार्केट में दिख रहे हैं. इन्हें केमिकल्स इंजेक्शन की मदद से पकाया जाता है. इस तरह के फलों का सेवन करने से कैंसर तक हो सकता है. ऐसे फलों के घातक परिणामों पर ईटीवी भारत ने पीजीआई के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के प्रोफेसर सोनू गोयल से खास बातचीत की है.
कैल्शियम कार्बाइड का होता है इस्तेमाल : प्रोफेसर सोनू गोयल ने बताया कि इस समय मिलने वाले फलों में ज्यादातर केमिकल इंजेक्शन और दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो न सिर्फ शरीर के अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंचता है, बल्कि कैंसर जैसी घातक बीमारी का भी मरीज बनाता है. डॉक्टर की माने तो फलों के सेवन से मानव शरीर को विटामिन और मिनरल्स मिलते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर डॉक्टर दिन में 50 फीसदी फल सब्जियां और 50 फीसदी अनाज का सेवन करने की सलाह देते हैं. यहां तक की बीमार व्यक्ति को भी ज्यादातर फल खाने की ही सलाह दी जाती है, लेकिन जब ये फल केमिकल में लिपटे हुए लोगों की प्लेट में पहुंचते हैं तो जहर का काम करते हैं. फलों को कैल्शियम कार्बाइड (CaC₂) और एथेफॉन जैसे रसायनों का उपयोग करके पकाया जाता है. एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस रसायन का खाद्य पदार्थों में उपयोग करने का कई देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन अभी भी कुछ देशों के बाजारों में इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि जून के महीने में दिखने वाले तरबूज, आम, केला और खरबूजा अभी से ही मार्केट में सजने लगे हैं.
आर्टिफिशियल तरीके से फलों को पकाते हैं : डॉ. सोनू गोयल ने बताया कि आज के समय में फलों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए फल विक्रेता फलों को तेज केमिकल के इस्तेमाल से जल्दी पका देते हैं, जिससे कि वो उन्हें मार्केट में बेच सके. गर्मियों में आने वाले फल कुदरती तरीके से पकते हैं. अप्रैल के महीने में जो फल मार्केट में देखे जाते हैं, वो कैल्शियम कार्बाइड जैसे केमिकल से पकाए होते हैं. कैल्शियम कार्बाइड इंडस्ट्रील वेल्डिंग करते समय इस्तेमाल किया जाने वाला रसायन होता है, जिसके सेवन से कार्सिनोजेन यानी कैंसर हो सकता है.
इस तरह करें इंजेक्शन वाले फलों की पहचान : डॉ. सोनू गोयल ने बताया कि किन फलों में इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया है, ये पता लगाना मुश्किल है. लेकिन कॉमन सेंस यानि आम धारणा के जरिए हम इस फर्क को समझ सकते हैं. उन्होंने बताया कि फलों की खरीदारी करते समय उनकी बनावट और सुगंध से फलों की पहचान की जा सकती है. कुदरती तरीके से पकने वाला फल अक्सर खुशबूदार होता है. इंजेक्शन और केमिकल की मदद से पकने वाला फल में खुशबू नहीं आती है. उदाहरण के तौर पर अगर आम को सूंघने पर मीठी खुशबू नहीं आती है तो वह केमिकल से पका हुआ है. वहीं केला अगर दो दिन बाहर रखने पर पूरी तरह गल जाता है तो वह केमिकल से पका हुआ है.
इन फलों और सब्जियों की पहचान कैसे करें?
1). एकसमान रंग: प्राकृतिक रूप से पके फलों का रंग अक्सर असमान होता है, जबकि केमिकल से पके फलों का रंग एक समान होता है. |
2). बनावट: केमिकल से पकाए गए फल और सब्जियां बहुत नरम होती हैं. |
3). सुगंध का अभाव: प्राकृतिक रूप से पके फल और सब्जियां प्राकृतिक सुगंध देती हैं, जो अक्सर केमिकल से पके फलों में कम सुगंध होती है. |
4). स्वाद: इन फलों में जैविक रूप से पके फलों की प्राकृतिक मिठास और स्वाद की कमी हो सकती है. |
पके फलों और सब्जियों के सेवन से बचने के लिए निम्नलिखित सुरक्षा उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- अपने फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से धोएं ताकि उन पर बचे हुए रसायन निकल जाएं.
- मौसमी फल खाएं, क्योंकि मौसमी फलों को पकाने के लिए किसी इंजेक्शन की जरूरत नहीं होती.
- फल के दिखने और स्वाद पर ध्यान दें, क्योंकि केमिकल से पकाए गए फल केवल बाहर से पके होते हैं और प्राकृतिक रूप से पके फलों की तुलना में कम मीठे और कम स्वादिष्ट हो सकते हैं.
लगातार केमिकल वाले फल खाने पर शरीर पर पड़ता है असर : लगातार केमिकल वाले फल खाने से अक्सर सिर दर्द, पेट में गड़बड़ी, उल्टी, पाचन शक्ति में बदलाव महसूस होते हैं, जो शरीर को कमजोर बना सकते हैं. अधिक गंभीर मामलों में ये मस्तिष्क और तंत्रिकाओं को प्रभावित कर सकता है, जिससे स्मृति हानि, दौरे या यहां तक की स्ट्रोक भी हो सकता है. इससे हृदय और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान पहुंच सकता है, जिससे उच्च रक्तचाप और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.
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