नई दिल्लीः विश्व भर में जब वेस्ट मैनेजमेंट एक चुनौती बनता जा रहा है, ऐसे में कुछ लोग इस वेस्ट को अवसर में बदल रहे हैं. प्राकृतिक कचरा, पुराने कपड़े, गन्ने, भुट्टे के छिलके, केले के तने और पत्ते, अखबार, पीपल के पत्ते, बरगद की जड़ें, लकड़ी के छिलके, कांच की बोतलें, नारियल की छिलकियां, जैसे सैकड़ों तरह के मटेरियल्स जिन्हें आमतौर पर कूड़े में डाल दिया जाता है, लेकिन इन्ही चीजों से करोड़ों रुपये का कारोबार खड़ा हो रहा है. यह कहानी सिर्फ पुनर्चक्रण (रीसायक्लिंग) की नहीं बल्कि नवाचार, पर्यावरण संरक्षण व रोजगार सृजन की भी है.
सीमा जैन का विवाह मध्य प्रदेश के ही निवासी प्रवीण जैन से हुआ. दोनों लोग शादी के बाद दिल्ली आ गए. प्रवीण एक निजी कंपनी में कार्यरत थे और सीमा एक गृहिणी के रूप में अपने जीवन को संवार रही थीं. लेकिन उनके मन में हमेशा एक चाह थी कुछ नया और अपना करने की, कुछ ऐसा जो उनके हुनर को दुनिया के सामने लाए.
सीमा और प्रवीण जैन ने मिलकर वेस्ट मैनेजमेंट का बनाया रोल मॉडल (ETV BHARAT)
घर पर बेकार पड़ी चीजों को देख कर सीमा का रचनात्मक मन सक्रिय हुआ. वह अखबार, कॉर्न के छिलके, गन्ने का वेस्ट, कांच की बोतलें और पुराने कपड़ों से छोटी-छोटी चीजें बनाने लगीं, लेकिन ये शौक जल्द ही एक जुनून में बदल गया. उन्होंने इस विचार को अपने पिता से साझा किया. उनके पिता ने आशीर्वाद स्वरूप 500 रुपये दिए और कहा "शुरुआत करो, बेटी."
500 रुपये से शुरू हुआ सीमा जैन का सफर (ETV BHARAT)
500 रुपये से शुरू हुआ सफरः 500 रुपये में न कोई बड़ी मशीन खरीदी जा सकती थी न ही कोई बड़ी योजना बनाई जा सकती थी, लेकिन सीमा जानती थीं कि उनके पास जो सबसे बड़ा संसाधन है. वो है उनकी रचनात्मक सोच और मेहनत करने का जज्बा. सीमा ने घर में ही वेस्ट मटेरियल से डेकोरेटिव आइटम्स बनाने लगीं हैंगिंग लैंप, टेबल लैंप, बास्केट, लैंप शेड्स, सजावटी मिरर जैसी चीजें. शुरुआत में उन्हें लोकल मार्केट में खास प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
सीमा और प्रवीण जैन ने मिलकर वेस्ट मैनेजमेंट का बनाया रोल मॉडल (ETV BHARAT)
पहली बड़ी चुनौती, फिर बड़ा मौकाः सीमा ने बताया कि भारत में लोग रीसायकल्ड और वेस्ट मटेरियल से बनी चीजों को लेकर उतने जागरूक नहीं थे. सीमा ने जब यूरोप और अमेरिका के बाजारों की ओर रुख किया, तब उन्हें असली पहचान मिली. इन देशों में उनके प्रोडक्ट्स को काफी सराहा गया. हाथ से बना हुआ, वेस्ट से बना हुआ, सस्टेनेबल प्रोडक्ट इन सब बातों ने उनके सामान को अंतरराष्ट्रीय बाजार में खास पहचान दी.
वेस्ट मैनेजमेंट की मिसाल-जैन परिवार ने वेस्ट से बनाया लैंप (ETV BHARAT)
पति से मिला सबसे बड़ा सहाराः सीमा बताती हैं कि जब उन्होंने काम शुरू किया था तब उनके पति प्रवीण जैन नौकरी में थे, लेकिन जब देखा कि सीमा का काम धीरे-धीरे आकार ले रहा है तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. सीमा के बिजनेस में पूरी तरह से जुड़ गए और सीमा के प्रोडक्ट मार्केटिंग करने लगे.
सीमा जैन के पति प्रवीण जैन ने हर परिस्थिति में बनाए रखा हौंसला :प्रवीण जैन ने कई बार इंटरनेशनल एग्जीबिशन में भाग लिया. कुछ में अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो कुछ में पैसा भी डूब गया, लेकिन इस जोड़ी ने हार नहीं मानी. कई बार पूरी-पूरी रात जगकर काम किया. हर परिस्थिति में एक-दूसरे का हौसला बनकर खड़े रहे.
खुद की कंपनी बनायी : संघर्ष की इस यात्रा में सीमा ने अपनी एक कंपनी खड़ी कर दी है, जिसका नाम बाहुबली क्रिएटिव डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड रखा. जहां न केवल प्रोडक्ट बनते ही नहीं, बल्कि रोजगार भी सृजित होता है. आज उनका सालाना टर्नओवर 7 से 8 करोड़ रुपये के बीच पहुंच चुका है और उनका सामान 56 देशों में निर्यात हो रहा है.
हर वेस्ट चीजों से बनता है कुछ खासः सीमा की बेटी बेटी नमोश्री जैन अब इस बिजनेस में पूरी तरह से शामिल हैं. वह बताती हैं कि उनकी फैक्ट्री में भुट्टे के छिलके, गन्ने का वेस्ट, केले के तने, बरगद की जड़ें, पुराने कपड़े, कांच की बोतलें. कतरन को रिसाइकल कर बने फैब्रिक आदि का उपयोग कर सजावटी सामान बनाया जाता है, जो चीजें आम लोगों को बेकार लगती हैं, वही उनके लिए कला का माध्यम बन जाती हैं.
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक (ETV BHARAT)
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक : आज उनके प्रोडक्ट इतने आकर्षक व एग्जोटिक होते हैं कि दुनिया के बड़े-बड़े डेकोर ब्रांड्स उनसे सामान लेते हैं. पूरी तरह से हैंडमेड और इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स जो लोगों के घरों को सजाते हैं. साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी फैलाते हैं. नमोश्री बताया कि उन्होंने इसी क्षेत्र में बैचलर इन प्रोडक्ट डिजाइन किया और फिर एमबीए किया. अब वो बिजनेस का क्रिएटिव और स्ट्रैटजिक दोनों पक्ष संभालती हैं. फैक्ट्री में सीधे तौर पर 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं, जबकि गांवों में बैठकर दर्जनों महिलाएं वऔर पुरुष प्रोडक्ट्स बनाते हैं, जिन्हें बाद में फैक्ट्री लाया जाता है.
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक (ETV BHARAT)
ग्रामीणों को मिला रोजगार और सम्मानः सीमा जैन के साथ काम करने वाली ज्ञानवती बताती हैं कि जो चीजें गांव में बेकार समझी जाती थीं, अब उन्हीं से आकर्षक सजावटी सामान बनते हैं. चार साल से काम कर रहीं अनीता कहती हैं कि यह काम सिर्फ रोजगार ही नहीं, बल्कि गर्व देता है. रत्ना और कृष्णा जैसी महिलाएं, जो पहले कभी घर से बाहर नहीं निकली थीं, अब बड़ी-बड़ी एग्जीबिशन में अपने बनाए लैंप स्टैंड्स और लाइट शेड्स देखकर खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं. सीमा जैन कहती हैं कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए. अंधेरे के बाद उजाला आता ही है. अगर आज उजाला है तो कल अंधेरा भी आएगा, लेकिन हिम्मत रखेंगे तो हर बार उजाले की जीत होगी.
नई दिल्लीः विश्व भर में जब वेस्ट मैनेजमेंट एक चुनौती बनता जा रहा है, ऐसे में कुछ लोग इस वेस्ट को अवसर में बदल रहे हैं. प्राकृतिक कचरा, पुराने कपड़े, गन्ने, भुट्टे के छिलके, केले के तने और पत्ते, अखबार, पीपल के पत्ते, बरगद की जड़ें, लकड़ी के छिलके, कांच की बोतलें, नारियल की छिलकियां, जैसे सैकड़ों तरह के मटेरियल्स जिन्हें आमतौर पर कूड़े में डाल दिया जाता है, लेकिन इन्ही चीजों से करोड़ों रुपये का कारोबार खड़ा हो रहा है. यह कहानी सिर्फ पुनर्चक्रण (रीसायक्लिंग) की नहीं बल्कि नवाचार, पर्यावरण संरक्षण व रोजगार सृजन की भी है.
सीमा जैन का विवाह मध्य प्रदेश के ही निवासी प्रवीण जैन से हुआ. दोनों लोग शादी के बाद दिल्ली आ गए. प्रवीण एक निजी कंपनी में कार्यरत थे और सीमा एक गृहिणी के रूप में अपने जीवन को संवार रही थीं. लेकिन उनके मन में हमेशा एक चाह थी कुछ नया और अपना करने की, कुछ ऐसा जो उनके हुनर को दुनिया के सामने लाए.
सीमा और प्रवीण जैन ने मिलकर वेस्ट मैनेजमेंट का बनाया रोल मॉडल (ETV BHARAT)
घर पर बेकार पड़ी चीजों को देख कर सीमा का रचनात्मक मन सक्रिय हुआ. वह अखबार, कॉर्न के छिलके, गन्ने का वेस्ट, कांच की बोतलें और पुराने कपड़ों से छोटी-छोटी चीजें बनाने लगीं, लेकिन ये शौक जल्द ही एक जुनून में बदल गया. उन्होंने इस विचार को अपने पिता से साझा किया. उनके पिता ने आशीर्वाद स्वरूप 500 रुपये दिए और कहा "शुरुआत करो, बेटी."
500 रुपये से शुरू हुआ सीमा जैन का सफर (ETV BHARAT)
500 रुपये से शुरू हुआ सफरः 500 रुपये में न कोई बड़ी मशीन खरीदी जा सकती थी न ही कोई बड़ी योजना बनाई जा सकती थी, लेकिन सीमा जानती थीं कि उनके पास जो सबसे बड़ा संसाधन है. वो है उनकी रचनात्मक सोच और मेहनत करने का जज्बा. सीमा ने घर में ही वेस्ट मटेरियल से डेकोरेटिव आइटम्स बनाने लगीं हैंगिंग लैंप, टेबल लैंप, बास्केट, लैंप शेड्स, सजावटी मिरर जैसी चीजें. शुरुआत में उन्हें लोकल मार्केट में खास प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
सीमा और प्रवीण जैन ने मिलकर वेस्ट मैनेजमेंट का बनाया रोल मॉडल (ETV BHARAT)
पहली बड़ी चुनौती, फिर बड़ा मौकाः सीमा ने बताया कि भारत में लोग रीसायकल्ड और वेस्ट मटेरियल से बनी चीजों को लेकर उतने जागरूक नहीं थे. सीमा ने जब यूरोप और अमेरिका के बाजारों की ओर रुख किया, तब उन्हें असली पहचान मिली. इन देशों में उनके प्रोडक्ट्स को काफी सराहा गया. हाथ से बना हुआ, वेस्ट से बना हुआ, सस्टेनेबल प्रोडक्ट इन सब बातों ने उनके सामान को अंतरराष्ट्रीय बाजार में खास पहचान दी.
वेस्ट मैनेजमेंट की मिसाल-जैन परिवार ने वेस्ट से बनाया लैंप (ETV BHARAT)
पति से मिला सबसे बड़ा सहाराः सीमा बताती हैं कि जब उन्होंने काम शुरू किया था तब उनके पति प्रवीण जैन नौकरी में थे, लेकिन जब देखा कि सीमा का काम धीरे-धीरे आकार ले रहा है तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. सीमा के बिजनेस में पूरी तरह से जुड़ गए और सीमा के प्रोडक्ट मार्केटिंग करने लगे.
सीमा जैन के पति प्रवीण जैन ने हर परिस्थिति में बनाए रखा हौंसला :प्रवीण जैन ने कई बार इंटरनेशनल एग्जीबिशन में भाग लिया. कुछ में अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो कुछ में पैसा भी डूब गया, लेकिन इस जोड़ी ने हार नहीं मानी. कई बार पूरी-पूरी रात जगकर काम किया. हर परिस्थिति में एक-दूसरे का हौसला बनकर खड़े रहे.
खुद की कंपनी बनायी : संघर्ष की इस यात्रा में सीमा ने अपनी एक कंपनी खड़ी कर दी है, जिसका नाम बाहुबली क्रिएटिव डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड रखा. जहां न केवल प्रोडक्ट बनते ही नहीं, बल्कि रोजगार भी सृजित होता है. आज उनका सालाना टर्नओवर 7 से 8 करोड़ रुपये के बीच पहुंच चुका है और उनका सामान 56 देशों में निर्यात हो रहा है.
हर वेस्ट चीजों से बनता है कुछ खासः सीमा की बेटी बेटी नमोश्री जैन अब इस बिजनेस में पूरी तरह से शामिल हैं. वह बताती हैं कि उनकी फैक्ट्री में भुट्टे के छिलके, गन्ने का वेस्ट, केले के तने, बरगद की जड़ें, पुराने कपड़े, कांच की बोतलें. कतरन को रिसाइकल कर बने फैब्रिक आदि का उपयोग कर सजावटी सामान बनाया जाता है, जो चीजें आम लोगों को बेकार लगती हैं, वही उनके लिए कला का माध्यम बन जाती हैं.
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक (ETV BHARAT)
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक : आज उनके प्रोडक्ट इतने आकर्षक व एग्जोटिक होते हैं कि दुनिया के बड़े-बड़े डेकोर ब्रांड्स उनसे सामान लेते हैं. पूरी तरह से हैंडमेड और इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स जो लोगों के घरों को सजाते हैं. साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी फैलाते हैं. नमोश्री बताया कि उन्होंने इसी क्षेत्र में बैचलर इन प्रोडक्ट डिजाइन किया और फिर एमबीए किया. अब वो बिजनेस का क्रिएटिव और स्ट्रैटजिक दोनों पक्ष संभालती हैं. फैक्ट्री में सीधे तौर पर 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं, जबकि गांवों में बैठकर दर्जनों महिलाएं वऔर पुरुष प्रोडक्ट्स बनाते हैं, जिन्हें बाद में फैक्ट्री लाया जाता है.
हैंडमेड और इको-फ्रेंडली ये प्रोडक्ट्स काफी हैं आकर्षक (ETV BHARAT)
ग्रामीणों को मिला रोजगार और सम्मानः सीमा जैन के साथ काम करने वाली ज्ञानवती बताती हैं कि जो चीजें गांव में बेकार समझी जाती थीं, अब उन्हीं से आकर्षक सजावटी सामान बनते हैं. चार साल से काम कर रहीं अनीता कहती हैं कि यह काम सिर्फ रोजगार ही नहीं, बल्कि गर्व देता है. रत्ना और कृष्णा जैसी महिलाएं, जो पहले कभी घर से बाहर नहीं निकली थीं, अब बड़ी-बड़ी एग्जीबिशन में अपने बनाए लैंप स्टैंड्स और लाइट शेड्स देखकर खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं. सीमा जैन कहती हैं कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए. अंधेरे के बाद उजाला आता ही है. अगर आज उजाला है तो कल अंधेरा भी आएगा, लेकिन हिम्मत रखेंगे तो हर बार उजाले की जीत होगी.