नई दिल्ली: जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. शुक्रवार सुबह 10 बजे से छात्रसंघ चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हुई, जो दोपहर एक बजे तक चलेगी. इसके बाद फिर 2:30 बजे से 5:30 बजे तक मतदान होगा. इस बार के चुनाव में करीब छह हजार मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए योग्य पाए गए हैं. इस दौरान जेएनयू छात्रसंघ के केंद्रीय विद्यालय के चारों पदों के अलावा 42 काउंसलर के पदों के लिए भी मतदान होगा.
इस बार के छात्र संघ चुनाव में मुख्य मुकाबला एबीवीपी, लेफ्ट यूनाइटेड पैनल (आइसा-डीएसएफ) और लेफ्ट अंबेडकरराइट यूनाइटेड पैनल (एसएफआई-एआईएसएफ-बापसा-पीएसए) के बीच है. इस चुनाव में खास बात यह है कि वर्ष 2015 से चला आ रहा चारों प्रमुख वामपंथी छात्र संगठनों आइसा, एसएफआई, एआईएसएफ और डीएसएफ का गठबंधन टूट गया है.
इस बार आइसा और एसएफआई अलग-अलग पैनल को लीड करते हुए चुनाव लड़ रहे हैं. इससे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को फायदा मिलने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि, इस बात का फैसला 28 अप्रैल को नतीजे आने के बाद ही हो पाएगा कि गठबंधन टूटने से एबीवीपी को कितना फायदा मिला. फिलहाल तीनों प्रमुख छात्र संगठनों ने अपनी पूरी ताकत चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए झोंक दी है.
इनके अलावा एनएसयूआई, छात्र राजद, समाजवादी छात्रसभा सहित अन्य छात्र संगठनों के कुल 29 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इनमें से छात्र संघ अध्यक्ष पद पर 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. उपाध्यक्ष पद पर पांच, सचिव पद पर छह और संयुक्त सचिव पद पर पांच प्रत्याशी मैदान में हैं.
JNU में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला: वामपंथी छात्र संगठनों का गठबंधन टूटने से अब त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बन गई है. एबीवीपी जहां हर बार की तरह अकेले ही चुनाव मैदान में है तो आइसा और डीएसएफ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं एसएफआई, एआईएसएफ, बापसा और पीएसए के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. तीनों ही संगठनों के द्वारा अपनी अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं.
एबीवीपी जहां लेफ्ट गठबंधन में फूट पड़ने से जीत का दावा कर रही है तो वहीं, आइसा जेएनयू में खुद को सबसे अधिक मजबूत बताते हुए जीत का दावा कर रहा है. इसके साथ ही एसएफआई अपने साथ तीन अन्य छात्र संगठनों के होने के कारण जीत का दावा कर रहा है. बता दें कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव पर पूरे देश की नजर रहती है.
2015 के बाद से लेफ्ट का कब्जा: वर्ष 2015 के बाद से एबीवीपी का जेएनयू में किसी भी केंद्रीय पैनल की सीट पर खाता नहीं खुला है. वर्ष 2015 में संयुक्त सचिव पद पर विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी सौरभ शर्मा ने जीत दर्ज की थी. उसके बाद से चारों पदों पर लगातार लेफ्ट संगठनों का ही कब्जा बरकरार है. पिछले चुनाव में जहां अध्यक्ष पद पर आइसा ने जीत दर्ज की थी तो एसएफआई ने उपाध्यक्ष पद पर बापसा ने सचिव पद पर और एआईएसएफ ने संयुक्त सचिव पद पर जीत दर्ज की थी. वहीं डीएसएफ के प्रत्याशी का सचिव पद पर पर्चा खारिज हो गया था, जिसके बाद लेफ्ट गठबंधन ने बापसा प्रत्याशी को समर्थन देते हुए अपने गठबंधन का प्रत्याशी घोषित किया था. इससे बापसा को बड़ा फायदा मिला और पहली बार उसका केंद्रीय पैनल की एक सीट पर खाता खुला था.
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में बागी भी बन रहे चुनौती: एसएफआई के साथ गठबंधन में शामिल बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बापसा) और एबीवीपी के लिए उनके बागी भी चुनाव में चुनौती बन रहे हैं.
दरअसल, जेएनयू छात्रसंघ की मौजूदा सचिव प्रियांशी आर्य बापसा की अध्यक्ष हैं. प्रियांशी ने एसएफआई के साथ गठबंधन का ऐलान करते हुए सचिव पद पर बापसा से रामनिवास गुर्जर को प्रत्याशी घोषित किया है. लेकिन बापसा के अन्य पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस गठबंधन से सहमत नहीं हुए और उन्होंने अपने अलग पैनल से बापसा से अध्यक्ष पद पर अविचल कुमार और संयुक्त सचिव पद पर रितिका को प्रत्याशी घोषित कर दिया. दोनों नामांकन करने के बाद चुनाव मैदान में भी उतर चुके हैं. काफी समझाने के प्रयास के बावजूद दोनों प्रत्याशी अभी भी चुनाव मैदान में डटे हुए हैं. जेएनयू में बापसा के पास करीब 700 वोट बताए जाते हैं. अगर ये 700 वोट एक तरफा एसएफआई लीड लेफ्ट अंबेडकरराइट यूनाइटेड पैनल को मिलते तो इससे इनको चुनाव में फायदा मिल सकता था. लेकिन, अगर बापसा के वोटो में बंटवारा होता है तो यह भी एसएफआई के लिए नुकसानदायक होगा.
उधर, एबीवीपी के लिए उपाध्यक्ष पद पर निर्दलीय खड़े हुए आकाश कुमार रवानी चुनौती पेश कर रहे हैं. पहले उन्हें एबीवीपी से प्रत्याशी बनाए जाने की उम्मीद थी. लेकिन, टिकट न मिलने पर वह निर्दलीय खड़े हुए हैं. जेएनयू के एक छात्र ने बताया कि आकाश नवोदय विद्यालय से पढ़े हैं. जेएनयू में नवोदय के 200 से अधिक छात्र हैं और उनका समर्थन आकाश को मिल रहा है. इससे उपाध्यक्ष पद पर भी मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
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