देहरादून: उत्तराखंड में दवाओं के वैज्ञानिक, सुरक्षित और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए उसके निस्तारण (Disposal) के लिए सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. राज्य सरकार ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों को राज्य में लागू करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है. ये निर्णय सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं होगी, बल्कि उत्तराखंड को देशभर में “हरित स्वास्थ्य प्रणाली” का मॉडल बनाने की दिशा में एक पहल होगी.
एफडीए आयुक्त डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि राज्य में हरित स्वास्थ्य प्रणाली (Green Health System) लागू करने जा रहे हैं. ऐसे में एक्सपायर्ड और अनयूज्ड दवाओं के निस्तारण (Disposal) को लेकर अभी तक को बेहतर सिस्टम नहीं था. साथ ही पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में दवाओं का डिस्पोजल एक बड़ी चुनौती है. जिसको देखते हुए राज्य एक सुनियोजित प्रणाली (well planned system) के तहत नियंत्रित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. साथ ही बताया कि दवाओं के निर्माण से लेकर इस्तेमाल तक और फिर उसके डिस्पोजल तक के हर चरण को ध्यान में रखकर प्रक्रिया तय की गई है.
उन्होंने आगे कहा कि स्वस्थ नागरिक, स्वच्छ उत्तराखंड मिशन के तहत ये पहल राज्य को एक हरित और सतत स्वास्थ्य सेवा मॉडल (Continuous healthcare model) की ओर ले जाएगी. इस निर्णय से प्रदेश को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय जिम्मेदारी और स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य बनाने की संभावनाओं को बढ़ाएगा. इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े सभी पक्षों, नीति निर्धारकों, व्यावसायिक संगठनों और आम नागरिकों की सक्रिय भूमिका ही इस मिशन को सफल बना सकती है. हालांकि, राज्य इस दिशा में एक मिसाल बनने की ओर बढ़ रहा है.
स्वास्थ्य विभाग की योजना के अनुसार उत्तराखंड के शहरी, अर्ध-शहरी और पर्वतीय इलाकों में ड्रग टेक-बैक साइट्स बनाई जाएगी, जहां लोग अपने घरों में पड़ी अनयूज्ड, एक्सपायर्ड या खराब हो चुकी दवाएं जमा करा सकेंगे. इन केंद्रों से दवाओं को वैज्ञानिक ढंग से एकत्र कर प्रोसेसिंग यूनिट्स में डिस्पोजल किया जाएगा.
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की गाइडलाइन में दवाओं के सेफ डिस्पोजल के लिए एक वैज्ञानिक तरीका (Scientific method) बताया गया है. जिसमें दवाओं को एक्सपायर्ड, अनयूज्ड, रीकॉल की गई और कोल्ड चेन में खराब जैसी श्रेणियों में बांटने का प्रावधान है. निस्तारण के लिए इनसिनेरेशन और एनकैप्सूलेशन जैसी तकनीकों का सुझाव दिया गया है. कलर-कोडेड बायोमेडिकल वेस्ट बैग्स, ट्रैकिंग और लॉग बुक सिस्टम जैसी व्यवस्थाएं इसे और बेहतर बनाती हैं. ये गाइडलाइन डब्ल्यूएचओ के मानकों और बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के अनुसार तैयार की गई है, ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर दवाओं के नुकसान को कम किया जा सके.
राज्य में दवाओं के निस्तारण के लिए अभी तक जो व्यवस्था थी, वो बेहतर नहीं थी. ऐसे में इसे एक थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग सिस्टम और स्थानीय ड्रग इन्फोर्समेंट यूनिट्स के जरिए नियंत्रित किया जाएगा. निर्माता कंपनियों, थोक और खुदरा विक्रेताओं, अस्पतालों और उपभोक्ताओं के लिए जवाबदेही तय की जाएगी. क्योंकि अनियंत्रित (Uncontrolled) तरीके से दवाओं का निस्तारण से न सिर्फ पर्यावरण बल्कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन सकता है. ऐसे निस्तारण से नदियों, झीलों और भूमिगत जल स्रोतों में विषैले रसायनों का मिश्रण हो सकता है, जो प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाता है. लिहाजा, राज्य औषधि नियंत्रण विभाग को मॉनिटरिंग एजेंसी बनाया जाएगा, ड्रगिस्ट्स एंड केमिस्ट्स एसोसिएशन को टेक-बैक सिस्टम में जोड़ा जाएगा, जिलों में टास्क फोर्स गठित की जाएगी और ई-ड्रग लॉग सिस्टम के जरिए डेटा की निगरानी और ऑडिट की व्यवस्था की जाएगी.
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